25 वें महाप्रयाण दिवस पर विशेष : "असाम्प्रदायिक धर्म के व्याख्याता आचार्य श्री तुलसी" -मुनि कमलकुमार
By Loktej
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भारत देश वीर और वीरांगनाओं की जन्मभूमि है। इस धरती पर अनेक वीरों ने जन्म लेकर देश का गौरव बढ़ाया है। उसी क्रम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में नवमाधिशास्ता आचार्य श्री तुलसी का नाम भी बहुत सम्मान के साथ लिया जा सकता है।
आचार्य तुलसी का जन्म विक्रम संवत 1971 में राजस्थान के मारवाड़ संभाग में नागौर जिले के प्रसिद्ध शहर लाडनूं में पिता झूमरमलजी माता वंदना जी की कुक्षी में कार्तिक शुक्ला द्वितीया को हुआ। आप अपने परिवार में सबसे छोटे थे। बचपन में ही आपके पिताजी का स्वर्गवास हो गया हो गया था। घर की सारी जिम्मेदारी श्री मोहनलाल जी खटेड़ कुशलता पूर्वक वहन कर रहे थे।
आपकी आदरणीय माताजी वंदना जी एक धर्मनिष्ठ श्राविका थी। बचपन से ही माता से धार्मिक संस्कार प्राप्त हुए। आपके बड़े भाई श्री चम्पालालजी आपसे एक वर्ष पूर्व ही पूज्य कालूगणी के कर कमलों से चूरू में दीक्षित हुए। आपका साधु साध्वियों से निरंतर सम्पर्क था।आप प्रतिदिन साधु साध्वियों के दर्शन के पश्चात ही प्रातराश किया करते थे।
पूज्य कालूगणी का लाडनूं में पावन पादार्पण आपके सौभाग्य का सूचक बना। पूज्य कालूगणी का मनमोहक व्यक्तित्व आपके मन मानस में छा गया। मन में दीक्षा के भाव जगे और भाई-बहन (तुलसी और लाड़ां) की दीक्षा हो गई। दीक्षा के पश्चात आपने अपना अमूल्य समय अध्ययन और साधना में लगा दिया। मात्र सोलह वर्ष की अवस्था में आप एक कुशल अध्यापक बन गए। गुरुकुल वास में सन्तों को अध्ययन कराते हुए आपकी अप्रमत्त चर्या सभी के लिए प्रेरणा बनती गई। आपके कंठ सुरीले थे, प्रवचन के समय जनता झूम उठती थी। आपकी अनेक विशेषताओं को देखकर अष्टमाचार्य कालूगणी ने मात्र 22 वर्ष की अवस्था में आपको अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया।
आचार्य श्री तुलसी ने आचार्य बनने के बाद तेरापंथ को नये नये आयाम दिए, जिससे व्यक्ति-व्यक्ति का उद्धार हो। उन्होंने केवल जैसे धर्म और तेरापंथ के लिए ही नहीं जन-जन के कल्याण का अभियान चलाया। उनके द्वारा चलाया गया अणुव्रत आंदोलन,प्रेक्षाध्यान जैन-अजैन सबके लिए ग्राह्य हुआ। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद,प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी इसकी हृदय से प्रसंशा की और उन्होंने इस आंदोलन को गति प्रदान की। समाज के लिए नये मोड़ का आंदोलन बहुत कारगर हुआ। बाल विवाह, मृत्यु भोज, घूंघट प्रथा महिलाओं की शिक्षा मुख्य थे। आज जो महिलाओं का विकास नज़र आ रहा है उसमें गुरुदेव तुलसी का दूरदर्शी चिंतन का सुश्रम बोल रहा है।
तेरापंथ समाज में ज्ञानशाला,किशोर मंडल,कन्या मंडल,युवक परिषद, महिला मंडल आदि के कारण हम नित नई प्रतिभाओं को देख रहें हैं। साहित्य निर्माण का कार्य संघ प्रभावना का मुख्य कारण है। आगम संपादक, अणुव्रत साहित्य,प्रेक्षाध्यान साहित्य,जीवन विज्ञान साहित्य इतिहास तत्व,कथा गीत आदि-आदि अनेक विधाओं से लिखा गया साहित्य जन प्रिय बना।
आचार्य श्री तुलसी ने पंजाब से कन्याकुमारी तक की पैदल यात्रा करके इन्सान को इन्सान बनाने का महनीय कार्य किया। उनके अवदानों को प्रस्तुत करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान होगा। पूर्ण स्वस्थ अवस्था में अपने आचार्य पद का विसर्जन कर अपने समक्ष उतराधिकारी युवाचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य महाप्रज्ञ बनाकर श्लाघनीय कार्य किया। जो आज के इस पद लिसिप्त युग के लिए बोधपाठ बन गया।
आपको सरकार,धर्मसंघ समाज और संस्थाओं से समय-समय पर सम्मानित किया गया। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार,भारत ज्योति,युगप्रधान वागपति,गणाधिपति,हकीम खां सूर खां आदि-आदि।
गुरुदेव के 25 वें महाप्रयाण दिवस पर सादर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यहीं कामना करता हूं कि आप द्वारा दर्शित पथ का अनुसरण करते हुए आचार्य श्री महाश्रमणजी की अनुशासना में अपनी साधना कर अपने संयम जीवन को सफल बना सकूं।
श्रीमान संपादक महोदय
की और सचित्र आलेख प्रकाशनार्थ हेतु सादर प्रेषित
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