सूरत : डॉक्टरों की मेहनत लाई रंग, जन्म के दस दिन बाद ही संक्रमित बच्चे ने हराया कोरोना को

सूरत : डॉक्टरों की मेहनत लाई रंग, जन्म के दस दिन बाद ही संक्रमित बच्चे ने हराया कोरोना को

सात दिन के इलाज के बाद हुआ बालक स्वस्थ, जन्म से ही कोरोना संक्रमित था बच्चा

वर्तमान में देश में कोरोना की स्थिति बहुत गंभीर और बेकाबू हो चुकी है। पिछले कुछ दिनों में हर दिन 3 लाख से अधिक नए संक्रमित मामले सामने आ रहे हैं। साथ ही हर दिन 2 हजार से अधिक लोग मर रहे हैं। सरकार लोगों से बचाव और सुरक्षा के सभी उपाय अपनाने को कह रही है। सरकार लोगों से मास्क पहनने, अतिआवश्यक होने पर ही घर से बाहर निकलने और सामाजिक दुरी का पालन करने की बात कह रही है।  इस कोरोना के नए संस्करण का बच्चों पर भी गहरा असर हो रहा है। इसी बीच सूरत से एक अच्छी खबर सामने आई है।
जानकारी के अनुसार वराछा के एक हाल में जन्में नन्हे मासूम ने कोरोना को मात दे दिया है। वराछा में रहने वाले महेशभाई पतोनियाना की पत्नी गर्भवती थी। 2 अप्रैल के दिन अचानक पत्नी को प्रसव पीड़ा होने से उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया जहाँ उन्होंने एक सुन्दर से अच्छे को जन्म दिया। जन्म के समय कोरोना जाँच करने पर माँ और बच्चा दोनों ही नेगेटिव पाए गए। दस दिन के बाद जब यह दंपति अपने बच्चे को लेकर अस्पताल आया तो वहां जाँच के समय उनका दस दिन का मासूम कोरोना संक्रमित पाया गया।
इस बच्चे की रैपिड और आरटीपीसीआर जाँच की गई और दोनों में यह कोरोना संक्रमित ही पाया गया। नन्हे मासूम के संक्रमित होने पर उसे वराछा के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया और इस बच्चे को ऑक्सीजन पर रखा गया। हालांकि मध्यमवर्गीय परिवार एक निजी अस्पताल का खर्च उठाने में सक्षम नहीं था इसलिए बच्चे को सिविल अस्पताल में भर्ती कार्य गया। 13 अप्रैल को सिविल आने के कुछ समय बाद ही डॉक्टरों की मेहनत रंग लाई और ये मासूम कोरोना संक्रमण से मुक्त हो गया।
इस बारे में सिविल के पीडियाट्रिक विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अपूर्व शाह ने बताया कि बीते एक महीने में सिविल में 35 जितनी गर्भवती महिलाओं ने बच्चे को जन्म दिया। जिनमें से कोई भी बच्चा कोरोना संक्रमित नहीं पाया गया। 13 अप्रैल को एक निजी अस्पताल से आने वाले इस कोरोना संक्रमित बालक को भर्ती किया गया और इलाज शुरू किया गया। शुरू में मात्र 11 दिन के बालक का इलाज करना कठिन था पर डॉक्टरों की मेहनत और माता के धैर्य से सात दिन के इलाज के बाद बालक पूरी तरह ठीक हो गया।