श्मशान में चूल्हा दान करने वाले बुजुर्ग का ही चूल्हे पर हुआ सबसे पहले अंतिम संस्कार

श्मशान में चूल्हा दान करने वाले बुजुर्ग का ही चूल्हे पर हुआ सबसे पहले अंतिम संस्कार

स्मशान घाट शुरू होने के दिन ही बिगड़ी तबियत, बेटों की फेक्टरी में ही बना था चूल्हा

कोरोना ने गुजरात सहित देशभर में हाहाकार मचा रखा है। राज्य में प्रतिदिन बड़ी संख्या में कोरोना मरीज दर्ज हो रहे हैं। सरकारी अस्पताल से लेकर निजी अस्पतालों में मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इतना ही नहीं श्मशान पर भी लोगों को वेटिंग लिस्ट लगाकर देर तक इंतजार करना पड़ रहा है। सूरत में तो दो श्मशान नए बनाने पड़े हैं। ऐसे में पाटन में एक गांव में अजीब मामला सामने आया है, जिसमें कुछ ऐसा हुआ कि स्मशान घाट में मृतकों की अंतिम विधि के लिए चूल्हा दान करने वाले दाता की ही अंतिमविधि उस चूल्हे पर सबसे पहले हुई। 
प्रतिकात्मक तस्वीर
मिली जानकारी के अनुसार बालिसना गांव के युवकों ने इकट्ठा होकर पुराने श्मशान को फिर से शुरू करने का विचार किया। गांव के लोगों ने यहां साफ सफाई करके उसे ठीक तो कर लिया, लेकिन भट्ठी और चूल्हे के लिए दान की जरूरत थी। जो कि जल्होत्रा माध्यमिक स्कूल के प्रिंसिपल हरजीवन पटेल ने दिया। यह भट्ठी हरजीवन पटेल के बेटे कमलेश पटेल और राकेश पटेल की फैक्ट्री में बनी है। 15 दिन पहले यह चूल्हा बालिसना गांव के पुराने श्मशान पर लगाया गया था और शनिवार को इसकी पूरी तैयारी कर दी गई थी। स्मशान घाट के अंदर चूल्हा फिट करने के पश्चात अचानक शनिवार को हर जीवन पटेल की तबीयत खराब होने लगी और रविवार को सवेरे उनकी मौत हो गई।
हरजीवन पटेल ने पुराने मकान में जो चूल्हा दान किया था उसी चूल्हे पर उनका उनकी अंतिम विधि की गई। उल्लेखनीय है कि बालिसाना तथा आसपास के गांव के लोग सिद्ध पुरा मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार के लिए जाते थे। लेकिन सिद्धपुर मुक्तिधाम में दूर-दराज के गांव के लोगों को अंतिम विधि करने से इंकार कर दिया था। जिससे बालिसाना गांव के लोगों ने अन्य समाज के लोगों से मिलकर स्मशान घाट फिर से शुरू करवाया। इसमें चूल्हा दान में देने वाले दादा को ही इस पर सबसे पहले अंतिम दाह दिया गया।