TEDx पर सखिया का विज़न: 200 भाषाओं वाला AI डर्मेटो अवतार बनाएगा सलाह सुलभ—जहां डॉक्टर नहीं, वहां भी

"एडवांस्ड लेजर ट्रीटमेंट से गंभीर और जानलेवा त्वचा रोगों का इलाज आज संभव हुआ है"- डॉ. जगदीश सखिया

TEDx पर सखिया का विज़न: 200 भाषाओं वाला AI डर्मेटो अवतार बनाएगा सलाह सुलभ—जहां डॉक्टर नहीं, वहां भी

सूरत (गुजरात) [भारत], नवंबर 15:  AI-संचालित वर्चुअल डर्मेटोलॉजी अवतार, छोटे शहरों में 20,000 AI-सक्षम क्लीनिक, जो 200+ भारतीय भाषाओं में संवाद करने में सक्षम हो, ऐसे मोर्डन क्लीनिक स्थापित करने की डॉ. सखिया की योजना।

TEDx टॉक में, डॉ. जगदीश सखिया ने ग्रामीण गुजरात से भारत के सबसे बड़े त्वचाविज्ञान नेटवर्क में से एक के निर्माण तक के अपने सफर पर प्रकाश डाला।

सूरत सखिया स्किन क्लीनिक के संस्थापक और प्रबंध निदेशक, जाने-माने डर्मेटोलॉजिस्ट (त्वचा विशेषज्ञ) डॉ. जगदीश सखिया ने हाल ही में TEDx टॉक में अपनी जीवन यात्रा और त्वचा विज्ञान के भविष्य के लिए अपने दृष्टिकोण, उनकी भावी योजनाओं को साझा किया। इस दौरान, उन्होंने दर्शकों से

अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में साहस, दृढ़ता और अनुशासन अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने अपने बारे में बात करते हुए कहा कि, "मेरा जन्म राजकोट जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था, जिसकी आबादी मुश्किल से एक हज़ार थी।

हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए मैंने सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। 1998 में मेरा पहला क्लिनिक सिर्फ़ 600 वर्ग फुट का एक कमरा था। आज, हमारे 24 शहरों में 37+ क्लिनिक हैं और हम विश्वस्तरीय त्वचाविज्ञान को सभी के लिए सुलभ बनाने के अपने मिशन पर लगातार आगे बढ़ रहे हैं।"

मेडिकल छात्र के रूप में अपने दिनों के बारे में बताते हुए, डॉ. जगदीश सखिया ने कहा कि, कैसे डर्मेटोलॉजी को कभी चिकित्सा की एक "कमजोर शाखा" मानकर नकार दिया जाता था। "उस समय छात्र, लोग अस्थि रोग, स्त्री रोग या बाल रोग प्रवाह चुनते थे। लेकिन मेरा मानना था कि त्वचा, शरीर का सबसे बड़ा अंग होने के नाते, इसमें बेहतर संभावनाएं मौजूद हैं। सचमुच, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि, 5,000 से ज़्यादा प्रकार के त्वचा रोग होते हैं।"

सखिया स्किन क्लीनिक के प्रबंध निदेशक और चीफ डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. सखिया ने पिछले 27 वर्षों के दौरान, व्यक्तिगत रूप से छह लाख से ज़्यादा मरीज़ों का इलाज किया है। उन्होंने कहा कि, "हर मरीज़ हमें कुछ न कुछ सिखाता है। मरीज़ हमारे पास दर्द, पीड़ा और परेशानी लेकर आते हैं। हम उनकी समस्या का समाधान तो करते ही हैं, लेकिन उनसे बहुत कुछ सीखते भी हैं।"

लेज़र उपचारों को शुरुआती दौर में अपनाने के अपने अनुभव को याद करते हुए उन्होंने कहा कि, "जब मैंने 1998 में लेज़र उपचार शुरू किया था, तो लोगों का कहना था कि, यह भारतीय त्वचा पर कारगर नहीं होगा। शुरुआत में कुछ चुनौतियां ज़रूर थीं, लेकिन अगर मैंने तभी हार मान ली होती, तो आज मेरे पास 150 अलग-अलग लेज़र इस्तेमाल में नहीं होते।"

उन्होंने सौंदर्य त्वचाविज्ञान (बोटोक्स, फिलर्स, पील्स और माइक्रोडर्माब्रेशन), डर्मेटो-सर्जरी (हेयर ट्रांसप्लांट और विटिलिगो सर्जरी) तथा एक समय पर इलाज ना हो सकें ऐसी स्थितियों के लिए एडवांस्ड लेजर ट्रीटमेंट की बढ़ती स्वीकृति के साथ त्वचाविज्ञान के विकास के बारे में भी बात की।

उन्होंने आगे कहा कि, "पहले लोग कहते थे कि त्वचा के मरीज़ न तो मरते हैं और न ही पूरी तरह ठीक होते हैं। यह अब सच नहीं है, क्योंकि आज हम गंभीर और जानलेवा त्वचा रोगों का भी इलाज कर सकते हैं।"

डॉ. सखिया ने त्वचाविज्ञान के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि, आज त्वचाविज्ञान के सामने अयोग्य चिकित्सक, ऑनलाइन प्रभावशाली लोगों पर अत्यधिक निर्भरता, स्व-चिकित्सा और विशेषज्ञों की कमी आदि मुख्य चुनौतियां हैं।

उन्होंने बताया कि 140 करोड़ की आबादी वाले देश में केवल लगभग 18,000 त्वचा विशेषज्ञ हैं। इसी कमी के कारण ही वे ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए AI-आधारित और टेली-डर्मेटोलॉजी समाधानों की खोज कर रहे हैं।

उन्होंने AI-संचालित वर्चुअल डर्मेटोलॉजी अवतार, 200 से अधिक भारतीय भाषाओं में संवाद करने में सक्षम तथा छोटे शहरों में 20,000 AI-सक्षम क्लीनिक स्थापित करने की योजना जैसी नई पहलों के बारे में विस्तार से बात की।

उन्होंने कहा कि, "हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि, जहां डॉक्टरों की कमी है, वहां पर भी पेशेवर त्वचा विशेषज्ञ की सलाह उपलब्ध हो सकें।"
डॉ. सखिया ने द्रष्टिकोण में बदलाव का आह्वान करते हुए कहा कि, उनका लक्ष्य गोरापन नहीं, बल्कि स्वस्थ त्वचा है।

उन्होंने अपने संबोधन का समापन एक प्रेरक संदेश के साथ किया, "पहले यह तय कीजिए कि आप कहां जाना चाहते हैं, वहां कैसे पहुंचना है और यह भी जान लीजिए कि कब पहुंचना है। हमेशा बड़े सपने देखिए, क्योंकि जिस क्षण आप डर जाते हैं, आप जीना छोड़ देते हैं।"

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