पर्दे पर ऐसे महिला किरदार दिखाने की जरूरत, जो आज की वास्तविकता दिखाते हों: शबाना आजमी
मुंबई, 14 नवंबर (भाषा) जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) ने दिग्गज अभिनेत्री शबाना आजमी को सम्मानित करते हुए एक विशेष सत्र आयोजित किया, जिसमें उन्होंने इस बात पर चर्चा की कि पितृसत्ता किस प्रकार महिलाओं और पुरुष दोनों को प्रभावित करती है और इसे पर्दे पर दिखाने की जरूरत क्यों है।
पांच बार की राष्ट्रीय पुरसकार विजेता शबाना आजमी ने अपने सफर, सिनेमा में स्त्रीत्व को समझने की उनकी बढ़ती समझ और भारतीय सिनेमा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के बदलते स्वरूप पर बातचीत की।
बृहस्पतिवार को आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भारत एक ‘‘अजीब’’ देश है, जहां एक ओर कुछ महिलाएं असाधारण ऊंचाइयां छू रही हैं, वहीं दूसरी ओर आज भी कुछ लड़कियों को जन्म लेते ही दफन कर दिया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि अब यह समझ बढ़ रही है कि हमें ऐसी महिलाओं को पर्दे पर दिखाना चाहिए जो हमारे समय को अधिक सटीक रूप से दर्शाती हों। लेकिन भारत एक अजीब देश है, यह कई सदियों को एकसाथ जीता है। एक तरफ आप देखेंगी कि महिलाएं कितनी ऊंचाई तक पहुंची हैं और दूसरी तरफ आज भी लड़कियों को जन्म के समय ही दफन कर दिया जाता है, सिर्फ इसलिए कि वे लड़की पैदा हुईं। यह विरोधाभास गहराई से पितृसत्ता में निहित है।’’
आज़मी ने यह भी कहा कि पितृसत्ता केवल महिलाओं को ही नहीं बल्कि पुरुषों को भी प्रभावित करती है और वह अब एक ऐसे संतुलन को पर्दे पर देखना चाहती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हम अक्सर भूल जाते हैं कि पितृसत्ता की शिकार महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी होते हैं। पुरुषों से कहा जाता है कि वे रो नहीं सकते या कमजोरी नहीं दिखा सकते, क्योंकि वे पुरुष हैं। किसी व्यक्ति के संपूर्ण होने के लिए जरूरी है कि उसके भीतर स्त्री और पुरुष दोनों गुण 50-50 मौजूद हों। जब यिन और यांग का यह संतुलन बनता है, तभी व्यक्ति पूर्ण होता है। मैं भारतीय सिनेमा में ऐसे ही पात्र देखना चाहती हूं।’’
जागरण फिल्म फेस्टिवल का 13वां संस्करण 16 नवंबर को मुंबई के अंधेरी वेस्ट स्थित फन रिपब्लिक मॉल के सिनेपोलिस में ग्रांड फाइनल के साथ समाप्त होगा।
