उच्चतम न्यायालय ‘डिजिटल अरेस्ट’ के सभी मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने के पक्ष में
नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह ‘डिजिटल अरेस्ट’ के मामलों की पूरे भारत में व्यापकता को देखते हुए इनकी जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने का इच्छुक है।
न्यायालय ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ संबंधी मामलों में विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दर्ज प्राथमिकियों का ब्यौरा मांगा।
‘डिजिटल अरेस्ट’ ऑनलाइन धोखाधड़ी है, जिसमें जालसाज खुद को फर्जी तरीके से किसी सरकारी एजेंसी या पुलिस का अधिकारी बताकर लोगों पर कानून तोड़ने का आरोप लगाते हुए उन्हें धमकाते हैं और गलत तरह से धन वसूली की कोशिश करते हैं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ के मामलों पर सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किए और धोखेबाजों द्वारा ठगी की शिकार एक बुजुर्ग महिला की शिकायत पर स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज किए गए मामलों की सुनवाई तीन नवंबर के लिए स्थगित कर दी।
शीर्ष अदालत ने सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस दलील पर गौर किया कि साइबर अपराध और ‘डिजिटल अरेस्ट’ के मामलों का मूल म्यांमा और थाईलैंड जैसे विदेशी स्थानों से है। साथ ही न्यायालय ने जांच एजेंसी को इन मामलों की जांच के लिए एक योजना बनाने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा, ‘‘हम सीबीआई जांच की प्रगति की निगरानी करेंगे और आवश्यक निर्देश जारी करेंगे।’’
पीठ ने सीबीआई से पूछा कि क्या उसे ‘डिजिटल अरेस्ट’ के मामलों की जांच के लिए पुलिस बल से बाहर के साइबर विशेषज्ञों सहित अधिक संसाधनों की आवश्यकता है ?
न्यायालय ने देश में ऑनलाइन धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं, विशेषकर फर्जी न्यायिक आदेशों के माध्यम से नागरिकों को ‘डिजिटल अरेस्ट’ करने के मामलों का संज्ञान लेते हुए इस संदर्भ में केंद्र और सीबीआई से 17 अक्टूबर के जवाब मांगा था और कहा था कि इस तरह के अपराध न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास की नींव पर कुठाराघात हैं।
शीर्ष अदालत ने हरियाणा के अंबाला में अदालत और जांच एजेंसियों के फर्जी आदेशों के आधार पर एक बुजुर्ग दंपति को ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर उनसे 1.05 करोड़ रुपये की उगाही की घटना का संज्ञान लिया है।
उसने कहा था कि यह साधारण अपराध नहीं है जिसमें पुलिस से कह दिया जाए कि तेजी से जांच करे और मामले को तार्किक परिणति तक पहुंचाए बल्कि यह ऐसा मामला है जिसमें आपराधिक उपक्रम का पूरी तरह पर्दाफाश करने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के बीच समन्वित प्रयास जरूरी हैं।
