सिनेमा केवल उद्योग नहीं, समाज को जागृत करने का सशक्त माध्यम भी: राष्ट्रपति मुर्मू
नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में फिल्मकारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि सिनेमा केवल एक उद्योग नहीं, बल्कि समाज और देश को जागृत करने का माध्यम भी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि सिनेमा नागरिकों को अधिक संवेदनशील बनाने में भूमिका निभाता है।
मुर्मू ने कहा, ‘‘सिनेमा सिर्फ एक उद्योग नहीं है; यह समाज और राष्ट्र को जागृत करने और नागरिकों को अधिक संवेदनशील बनाने का एक सशक्त माध्यम भी है। किसी फिल्म के लिए लोकप्रियता अच्छी बात हो सकती है, लेकिन जनहित, खासकर युवा पीढ़ी के हित का ध्यान रखना उससे भी बड़ा गुण है।’’
उन्होंने कहा कि भारतीय सिनेमा कई अलग-अलग भाषाओं, बोलियों, क्षेत्रों और स्थानीय परिवेशों में आगे बढ़ रहा है, और महिलाओं पर केंद्रित अच्छा सिनेमा भी बन रहा है और उसे सराहा जा रहा है।
मुर्मू ने कहा, ‘‘...यह एक बहुत अच्छा सामाजिक संदेश है। आज पुरस्कृत फिल्मों में, माताओं द्वारा बच्चों के नैतिक निर्माण पर आधारित फिल्में, उन साहसी महिलाओं की कहानियां शामिल हैं जो सामाजिक वर्जनाओं का सामना करने, पारिवारिक और सामाजिक ढांचों की जटिलताओं से निपटने और पितृसत्ता के खिलाफ आवाज उठाने के लिए एकजुट होती हैं।’’
उन्होंने प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त करने वाली महिला फिल्म निर्माताओं की कम संख्या पर भी टिप्पणी की।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘जिस तरह शैक्षणिक संस्थानों के पुरस्कार समारोहों में बेटियों की ज्यादा संख्या एक विकसित भारत की छवि को दर्शाती है, उसी तरह फिल्म पुरस्कारों में भी यही प्रयास होना चाहिए। मेरा मानना है कि अगर महिलाओं को समान अवसर दिए जाएं, तो वे असाधारण प्रदर्शन कर सकती हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कला और सिनेमा जैसे क्षेत्रों में भी महिलाओं की जन्मजात प्रतिभा के अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं। सिनेमा से जुड़ी ऐसी उत्कृष्ट महिला प्रतिभाएं उचित सम्मान की हकदार हैं। जूरी के केंद्रीय और क्षेत्रीय पैनल में भी महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व होना चाहिए।’’
मुर्मू ने अपने भाषण में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेताओं और इस वर्ष दादा साहब फाल्के पुरस्कार के विजेता मलयालम अभिनेता मोहनलाल को भी बधाई दी।
उन्होंने मोहनलाल को ‘संपूर्ण अभिनेता’ की संज्ञा देते हुए उनकी प्रशंसा की।
मुर्मू ने कहा, ‘‘उन्होंने (मोहनलाल ने) कोमल से कोमल और कठोर से कठोर भावनाओं को सहजता से प्रस्तुत किया है... मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि उन्होंने महाभारत के कर्ण पर आधारित एक लंबे संस्कृत नाटक में कर्ण की भूमिका निभाई है। एक तरफ 'वानप्रस्थम' जैसी गंभीर फिल्म है और दूसरी तरफ कई लोकप्रिय फिल्में भी हैं।’’