सूरत की डाइंग-प्रिंटिंग मिलों में श्रमिकों की कमी से उत्पादन प्रभावित

बाजार में छाई मंदी के कारण अधिकांश मिलें आधा-अधूरा संचालन करने को मजबूर 

सूरत की डाइंग-प्रिंटिंग मिलों में श्रमिकों की कमी से उत्पादन प्रभावित

सूरत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री, जो देशभर में अपनी डाइंग और प्रिंटिंग मिलों के लिए जानी जाती है, इन दिनों मंदी के दौर से गुजर रही है। उत्पादन इकाइयों में श्रमिकों की भारी कमी और बाजार में छाई मंदी के कारण अधिकांश मिलें आधा-अधूरा संचालन करने को मजबूर हैं।

मिल टेम्पो डिलीवरी कॉन्ट्रैक्टर चेरीटेबल ट्रस्ट के प्रमुख राजेंद्र उपाध्याय के अनुसार, हर वर्ष होली के बाद बड़ी संख्या में मजदूर अपने गांवों की ओर लौट जाते हैं। यह सिलसिला शादी-विवाह और धान की रोपाई तक चलता है, जिससे गर्मियों के महीनों में श्रमिकों का टोटा बना रहता है। हालांकि इस वर्ष स्थिति कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है और 20-25 प्रतिशत तक लेबरों की कमी देखी जा रही है।

सूरत और दक्षिण गुजरात क्षेत्र में तकरीबन 375 डाइंग-प्रिंटिंग यूनिट्स कार्यरत हैं। जिसमें 250 से अधिक डाइंग यूनिट हैं, इन एकमों में औसतन चार सेंटर भी काम कर रहे हों तो करीब 1 करोड़ मीटर कपड़ों की जरुरत एक युनिट्स के लिए होगी। हाल मंदी के दिनों में कुछ मिलों में इतना कपड़ा नहीं मिल पाता है तो कुछ मिलों में ओवर प्रोडक्शन भी है। जबकि यही हाल लगभग प्रिंटिंग युनिट्स में भी है। मौजूदा समय में श्रमिकों की संख्या पर्याप्त नहीं है।

उन्होंने कहा कि हाल में कई मिलें केवल एक पाली (12 घंटे) ही संचालन कर रही हैं। जबकि कुछ मिलों में दोनों पाली चालू है तो वहां सप्ताह में दो दिन का अवकाश (काम बंदी) घोषित कर दिया गया है। जिन मिलों में दोनों पाली अभी भी चालू हैं, वहाँ भी श्रमिकों की अनुपस्थिति के चलते प्रोडक्शन क्षमता प्रभावित हो रही है।

वर्तमान में हर दिन करोड़ों मीटर कपड़ों की आवश्यकता है, लेकिन मिलों में कच्चे माल से लेकर तैयार माल तक की आपूर्ति में बाधा आ रही है। बाजार में मांग में गिरावट (मंदी) के कारण मिल मालिकों के पास ऑर्डर भी कम हैं, जिससे वे पूर्ण क्षमता से उत्पादन करने में संकोच कर रहे हैं। 

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