बिना सुनवाई के कैदी को हिरासत में रखना मुकदमा पूर्व सजा के समान, जमानत नियम है: अदालत
मुंबई, 11 मई (भाषा) जमानत के सिद्धांत को नियम और इनकार को अपवाद बताते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि बिना सुनवाई के किसी कैदी को लंबे समय तक हिरासत में रखना ‘मुकदमे से पहले सजा’ के समान है।
न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की पीठ ने नौ मई को राज्य की जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के होने का भी संज्ञान लिया और कहा कि अदालतों को संतुलन बनाने की जरूरत है।
पीठ ने 2018 में अपने भाई की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार विकास पाटिल को जमानत देते हुए ये टिप्पणियां कीं।
न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि आजकल मुकदमों को पूरा होने में काफी समय लग रहा है और कुछ क्षेत्रों में जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं।
पीठ ने कहा कि वह नियमित रूप से ऐसे मामलों की सुनवाई करती है, जहां विचाराधीन कैदी लंबे समय से हिरासत में हैं तथा वह जेलों की स्थिति से भी अच्छी तरह वाकिफ है।
न्यायमूर्ति जाधव ने आर्थर रोड जेल के अधीक्षक की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जेल में स्वीकृत क्षमता से छह गुना अधिक कैदी हैं।
न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक बैरक में केवल 50 कैदियों को रखने की अनुमति होती है, लेकिन आज की तारीख में वहां 220- 250 कैदी हैं।
न्यायमूर्ति जाधव ने कहा, ‘‘इस तरह की असंगति हमें इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए प्रेरित करती है: न्यायालय दो ध्रुवों के बीच संतुलन कैसे बना सकता है?’’
अदालत ने कहा कि ये मामले विचाराधीन कैदियों की स्वतंत्रता से संबंधित हैं, जो लंबे समय से जेल में बंद हैं, जिससे उनके त्वरित न्याय पाने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार पर असर पड़ता है।
अदालत ने कहा कि मूल नियम यह है कि जमानत नियम है और इनकार अपवाद है।
न्यायमूर्ति जाधव ने दो विचाराधीन कैदियों द्वारा लिखे गए लेख ‘प्रूफ ऑफ गिल्ट’ का हवाला दिया, जिसमें मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे व्यक्तियों की लंबी कैद पर सवाल उठाया गया था।
उन्होंने कहा कि केवल लंबी कारावास अवधि को जमानत के लिए पूर्ण आधार नहीं माना जा सकता, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसपर त्वरित सुनवाई के अधिकार के साथ विचार किया जाना चाहिए।