सूरत : बेमौसम बारिश का कहर, दक्षिण गुजरात में आम की फसल को 40 फीसदी नुकसान
किसानों को फल सड़ने का डर, सर्वे और मुआवजे की मांग
सूरत: दक्षिण गुजरात के सूरत, नवसारी और वलसाड जिलों में पिछले तीन दिनों से जारी बेमौसम बारिश और तेज हवाओं ने आम उत्पादक किसानों के लिए गहरी चिंता पैदा कर दी है। इस अप्रत्याशित मौसम के कारण आम की फसल को भारी क्षति पहुंची है, जिससे किसानों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
किसानों के अनुसार, इस समय आम के फल पकने की अंतिम अवस्था में थे, लेकिन अचानक आई तेज हवा और मूसलाधार बारिश के चलते बड़ी मात्रा में फल पेड़ों से टूटकर गिर गए हैं। सूरत जिले के किसानों को इस वर्ष अच्छी पैदावार की उम्मीद थी, लेकिन प्रकृति के इस प्रकोप ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। अब बाजार में आम की आपूर्ति कम होने की आशंका है, जिससे कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
किसानों का अनुमान है कि बेमौसम बारिश के कारण आम की फसल को लगभग 30 से 40 प्रतिशत का नुकसान हुआ है। पेड़ों से गिरे हुए फल पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं, वहीं पेड़ों पर बचे हुए फलों में सड़ने का खतरा मंडरा रहा है। कई इलाकों में आम के बागानों में पानी भर जाने से बचे हुए फलों की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
किसान नेता और कांग्रेस नेता दर्शन नायक ने इस स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "मौसम के इस अचानक बदलाव ने दक्षिण गुजरात में चीकू, आम और अन्य खड़ी फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। यह आम के फलों के पूरी तरह से पकने का समय था, लेकिन तुड़ाई से पहले ही तेज हवा और बारिश ने सब कुछ तबाह कर दिया।" उन्होंने राज्य सरकार से तत्काल प्रभावित क्षेत्रों में नुकसान का आकलन करने के लिए सर्वेक्षण कराने और किसानों को उचित मुआवजा प्रदान करने की मांग की है। इसके अतिरिक्त, किसानों ने कृषि विभाग से खेतों में बची हुई फसलों को बचाने के संबंध में भी मार्गदर्शन मांगा है।
हालांकि, इस बेमौसम बारिश का चावल की फसल पर कोई विशेष नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है, क्योंकि खेतों में जलभराव की कोई स्थिति नहीं है। मौसम विभाग ने अगले दो दिनों में बारिश की तीव्रता में कमी आने की संभावना जताई है, जो किसानों के लिए थोड़ी राहत की खबर हो सकती है।
यह ध्यान देने योग्य है कि पिछले कुछ वर्षों में मौसमी अनिश्चितताओं ने लगातार किसानों की फसलों को प्रभावित किया है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर दबाव बढ़ता जा रहा है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी परिस्थितियों में कृषि को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनाना आवश्यक है।