गुजरात : टोना-टोटका करने और कराने वालों की खैर नहीं, नहीं मिलेगी जमानत

गुजरात विधानसभा में अंधविश्वास विरोधी बिल सर्वानुमति से पारित, 6 महीने से 7 वर्ष तक की कैद, 5 हजार से 50 हजार रुपये तक जुर्माने का प्रावधान

गुजरात : टोना-टोटका करने और कराने वालों की खैर नहीं, नहीं मिलेगी जमानत

गांधीनगर, 21 अगस्त (हि.स.)। गुजरात विधानसभा के तीन दिवसीय मानसून सत्र में बुधवार को अंधविश्वास विरोधी बिल सर्वानुमति से पारित हो गया। इसके तहत अब राज्य में टोना-टोटका (अंधविश्वास) करने और कराने वाले को सजा दी जाएगी। गुजरात से पहले महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम में अंधविश्वास निर्मूलन कानून लागू किया गया है। इस तरह गुजरात ऐसा कानून बनाने वाला देश का 7वां राज्य है।

अंधविश्वास विरोधी कानून के प्रावधान के अनुसार कोई व्यक्ति खुद या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से कानून को भंग करते हुए मानव बलि या दूसरी अमानुषी, अनिष्ट या अघोरी प्रथा, काला जादू करता है या किसी से करवाता है, या इस तरह का विज्ञापन देता है, व्यवसाय करता है, प्रचार करता है तो यह कानूनन जुर्म माना जाएगा। आरोप सिद्ध होने पर कम से कम 6 महीना और अधिकतम 7 साल की सजा दी जाएगी। इसके साथ कम से कम 5 हजार और अधिक से अधिक 50 हजार रुपये का जुर्माना भी वसूला जा सकता है। इस तरह का अपराध गैर जमानती माना जाएगा।

इससे पूर्व मानसून सत्र के पहले दिन गुजरात विधानसभा में गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी ने मानव बलि, अमानुषी, अनिष्ट, अघोरीप्रथा, काला जादू रोकने और इसके निर्मूलन करने संबंधी विधेयक, 2024 पेश किया। गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी ने कहा कि काला जादू के तहत चलने वाली प्रवृत्तियों को रोकने के लिए किसी तरह का विशेष कानून नहीं है। वर्ष 2023 की संहिता के अनुसार अपराध दर्ज करने का काम किया जा रहा है। भारत के अलावा पश्चिम देशों में भी इस तरह का काला जादू की प्रथा है लेकिन उन देशों में भी कानून के जरिए इन पर अंकुश लगाया गया है। संघवी ने कहा कि आजादी के 78 वर्ष बाद भी इस प्रकार की घटना ध्यान में आ रही है, जिसे रोकना बहुत जरूरी है। नए कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। आस्था और मान्यताओं को ठेस नहीं पहुंचे, इसका खास ध्यान रखा गया है।

पीआईएल होने पर हाईकोर्ट ने दिया था कानून बनाने का निर्देश

अंधविश्वास को लेकर अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति और अन्य एक आवेदक ने एडवोकेट हर्ष रावल के जरिए गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जज प्रणव त्रिवेदी ने सुनवाई कर राज्य सरकार को कहा कि राज्य एक वेलफेयर स्टेट है, अंधविश्वास को रोकना राज्य की जिम्मेदारी है। इसके बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि राज्य ने अंधविश्वास रोकने के लिए क्या कदम उठाए और गृह विभाग के अधिकारी को शपथ दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने इस केस में राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पार्टी बनाने का निर्देश दिया था। इसके बाद गुजरात सरकार ने अंधविश्वास निर्मूलन ड्रफ्ट तैयार किया था।