सूरत  : युवक-युवतियों की शादी की उम्र को लेकर जागरूक एवं सचेत होने की जरुरत : अनिता विजय राठी 

फेरों के चक्कर में निकल जाता है फेरे होने का समय

सूरत  : युवक-युवतियों की शादी की उम्र को लेकर जागरूक एवं सचेत होने की जरुरत : अनिता विजय राठी 

आज आधुनिकता की अंधी दौड़ में समाज में विवाह देरी से करने का प्रचलन बढ़ गया है। अगर मां-बाप लड़के-लड़कियां अभी भी नहीं जागे तो परिणाम और परिस्थितियां भयानक हो सकती है। जरुरत हैं हमारे समाज को सजग एवं जागरूक होने की। माहेश्वरी समाज में लड़के-लड़कियों के विवाह में होने वाली देरी के लिए कौन  जिम्मेदार हैं उनके माँ बाप या वो खुद।

उम्मीद महिला मंडल सूरत की फाउंडर प्रेसीडेंट अनिता विजय राठी ने युवक-युवतियों की शादी की उम्र को लेकर अपनी बात  प्रस्तुत की  है। उन्होंने कहा कि  27, 28 उम्र के बाद तो आजकल माँ-बाप संबंध देखना शुरु करते हैं। उससे पहले बस यही बातें होती हैं बच्ची अभी पढ़ रही है, उसका भविष्य बनाना है। दरअसल वो देरी से विवाह करके भविष्य बना नहीं बिगाड़ रहे होते हैं। जब देखना शुरु करते हैं उसमे भी 2, 3 साल कहाँ निकल जाते हैं उन्हें पता ही नहीं चलता। कारण पहले नख़रे बहुत होते हैं कि मेरी बेटी या बेटा बहुत पढ़ा लिखा है। उसका जीवनसाथी उसके बराबर या उससे ज्यादा ही पढ़ा लिखा हो। लड़की वालों को तो जिस घर में बेटी देनी है उनकी हैसियत, पैसा, गाड़ी  बंगला, नौकर-चाकर  सभी कुछ देखकर ही आगे बढ़ते हैं। चाहे उनके घर में कुछ हो या न हो उन्हें लड़का अमीर ही चाहिए। अगर सब कुछ अच्छा हो तो बात पत्रिका मिलान पर अटक जाती हैं। कहीं गुण नहीं मिलते कहीं सूरत अच्छी नहीं मिलती। बस इन्ही फेरों के चक्कर में फेरे होने का समय ही निकल जाता हैं।

उन्होंने कहा कि आजकल हमारे समाज में 30,32 साल की बहुत लड़किया हैं जो अभी भी शादी में अपनी चॉइस ही ढूंढ रही हैं।  लड़कियों के पास समय अधिक होने की वजह से वे बहुत सारी डिग्रियां  प्राप्त कर चुकी होती हैं। वहीं वो लड़के जिन्हें फैमिली बिजनेस संभालना हो वो जल्दी बिजनेस ज्वाइन कर लेने की वजह से ज्यादा डिग्रियां नही हासिल कर पाते। परिपक्व लड़कियां जल्दी से कहीं एडजस्ट नहीं करती, उन्हें हर काम अपनी शर्तो पर ही करना होता है। जिसके परिणाम स्वरूप गृह क्लेश शुरु हो जाता है। इसी वजह से तलाक की समस्या दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही हैं। वैसे भी 30 के बाद विवाह नहीं सिर्फ समझौते ही ज्यादा होते हैं। जब एक बार लड़की घर से दूर पढ़ाई, नौकरी करने लगती हैं तो उसे उसी प्रकार फ्री रहने की आदत हो जाती हैं। घर जेल लगने लगता हैं। टोका टाकी तो वो बिल्कुल बर्दाश्त ही नहीं करती. और परिणाम हम सब आज कल देख ही रहे हैं। जरुरत हैं हमें अब जागने, सोचने समझने की। 

बकौल अनिता राठी पहले माँ बाप 20,21 की उम्र में शादी देखना शुरु कर देते थे। 22,23 आते-आते उनकी शादी हो जाती थी। कहते हैं ना कच्चा घड़ा जिस सांचे मै ढालो ढल  जाता हैं, बस वही हिसाब लड़कियों का भी था। उसे उस कच्ची उम्र में जिस तौर तरीके से ढालो वो परिवार के हिसाब से ढल जाती थी। इन दिनों एक और बात देखने में आती हैं कि लड़का नौकरी पेशा ही हो ताकि घर परिवार से दूर  लड़के के साथ अकेली अपनी आजादी से रह सके। उन पर परिवार रूपी कोई बंधन नहीं हो। 

आज कल तो उनके माँ बाप भी वहीं सोचते हैं कि हमारी बेटी पूर्ण आजादी से रहे। यही सब चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब कुंवारे लड़के-लड़कियों की संख्या बढ़ती चली जाएगी। अब भी वक्त है हमें जागरूक एवं सचेत होने की। ताकि बच्चों का विवाह समय से संपन्न 
करा सके।

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