मुगलसराय बिल्डिंग पर सूरत महानगर पालिका का हक, वक्फ ट्रिब्यूनल ने बोर्ड के आदेश को किया रद्द

शाहजहां काल के मुगलसराय बिल्डिंग में 150 वर्ष से चल रहा सूरत मनपा का कार्यालय

मुगलसराय बिल्डिंग पर सूरत महानगर पालिका का हक, वक्फ ट्रिब्यूनल ने बोर्ड के आदेश को किया रद्द

सूरत, 5 अप्रैल (हि.स.)। मुगलसराय बिल्डिंग पर सूरत महानगर पालिका (एसएमसी) का हक कायम रहेगा। वक्फ ट्रिब्यूनल ने वक्फ बोर्ड के उस आदेश को अयोग्य ठहरा दिया है, जिसमें बोर्ड ने मुगलसराय बिल्डिंग को वक्फ किया था।

सूरत के 72 वर्षीय अब्दुल्लाह जरूल्लाह ने वक्फ बोर्ड में आवेदन कर सूरत के मुगलसराय में स्थित मुगलसराय बिल्डिंग को वक्फ की सम्पत्ति बताते हुए इसे वक्फ करने की मांग की थी। इस मुगलसराय बिल्डिंग में करीब 150 साल से सूरत महानगर पालिका का कार्यालय चल रहा है। करीब 5 वर्ष तक वक्फ बोर्ड ने आवेदक और सूरत महानगर पालिका (एसएमसी) की दलीलों को सुनने के बाद आवेदन को मंजूर करते हुए एसएमसी कार्यालय को वक्फ करने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद एसएससी के कमिश्नर ने वक्फ बोर्ड के निर्णय के खिलाफ वक्फ ट्रिब्यूनल के समक्ष चुनौती दी।

ट्रिब्यूनल ने एसएमसी की तरफ निर्णय करते हुए वक्फ बोर्ड के निर्णय को अयोग्य ठहराया है। वक्फ ट्रिब्यूनल में सूरत महानगर पालिका की ओर से आयुक्त एडवोकेट कौशल डी पंडया ने दलील की। केस का विवरण में सूरत के गोरधनदास चोखावाला रोड पर अब्दुल्लाह जरूल्लाह के अनुसार हुमायु सराई स्थित है। यहां एमएससी का कार्यालय है। इस बिल्डिंग को शाहजहां की पुत्री जहाआरा का जब सूरत में जागीर थी, उसके विश्वासपात्र इसकाबेग आजदी उर्फ हकीकत खान ने वर्ष 1644 में बना कर वक्फ किया था। इसका क्षेत्रफल 5663 वर्गमीटर है। हालांकि यहां पिछले 150 साल से सूरत महानगर पालिका का कार्यालय है। वक्फ बोर्ड के समक्ष इस सम्पत्ति के वक्फ होने का दावा वर्ष 2015 में किया गया था। इसका फैसला 2021में आया था। इसके बाद इस प्रोपर्टी को वक्फ घोषित किया गया था।

एसएमसी ने 2021 में वक्फ ट्रिब्यूनल के समक्ष अपील की

इसके फैसले के विरुद्ध एसएमसी ने 2021 में वक्फ ट्रिब्यूनल गांधीनगर में अपील की। एसएमसी की ओर से बताया गया कि वर्षों से यहां म्यूनिसिल कॉरपोरेशन का कब्जा है। कभी किसी ने आपत्ति नहीं दर्शायी। वक्फ बोर्ड ने विचार किए बगैर और एसएमसी के साक्ष्यों की अवगणना कर यह निर्णय किया है। वक्फ बोर्ड ने अब्दुल्लाह जरूल्लाह के मान्य नहीं रखने वाले दस्तावेजों को मान्य रखते हुए निर्णय किया है। इस सम्पत्ति का पूर्व में उपयोग सेना के लिए किया जाता था। वक्फ बोर्ड ने एकतरफा निर्णय किया है।

इसके बाद एमएसमसी ने वक्फ ट्रिब्यूनल के समक्ष दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किए। इसमें तकरारी सम्पत्ति के संबंध में ब्रिटिश राज के सूरतत कलक्टर की ओर से इशु किया गया सनदी नकल, सम्पत्ति का प्रोपर्टी कार्ड में सूरत महानगर पालिका का उल्लेख आदि का समावेश है। एसएमसी ने कहा कि वक्फ एक्ट 1995 में लागू किया गया, इसके बावजूद इस सम्पत्ति को वक्फ की सूची में समाविष्ट नहीं किया गया।

वक्फ एक्ट लागू होने के 21 वर्ष बाद आवेदन किया गया है। 1867 से यहां किसी तरह की यात्री सराय की प्रवृत्ति नहीं होती है। वहीं अब्दुल जरूल्लाह और वक्फ बोर्ड की ओर से दलील की गई कि पूना के पुरातात्विकविद् आर डी बनर्जी को 1921 में मुगल सराय से फारसी भाषा में लिखा दो शिलालेख मिला था। इन दोनों शिलालेखों को प्रिंस विलियम म्यूजियम मुंबई (छत्रपति शिवाजी महाराज म्यूजियम) में रखा गया है। इस शिलालेख के अनुसार यह सम्पत्ति वक्फ बोर्ड की है। इसकी सूचन एमएससी की वेबसाइट पर है।

वक्फ बोर्ड ने अब्दुल्लाह के आवेदन पर साढ़े 5 साल तक जांच कर निर्णय दिया है। इस संबंध में अब्दुल्लाह ने हाइकोर्ट में भी आवेदन किया है, जिसे वापस खींच लिया गया था। शिलालेखों और आर्टिकल्स को बाबरी मस्जिद के फैसले में भी महत्पूर्ण साक्ष्य के रूप में माना गया था। एक वक्त वक्फ की सम्पत्ति हो जाने के बाद वह हमेशा के लिए वक्फ का ही रहता है। अब्दुल्लाह ने इंडो मुस्लिम एपिग्राफी की फोटो कॉपी भी वक्फ बोर्ड के समक्ष पेश किया था।

बादशाह के पैसे से नहीं बना मुगलसराय

दोनों पक्ष को सुनने के बाद वक्फ ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है। वक्फ ट्रिब्यूनल ने उल्लेख किया कि अब्दुल्लाह जरूल्लाह मूल दस्तावेज नहीं, बल्कि उसकी फोटो कॉपी वक्फ बोर्ड के समक्ष पेश किया है। आवेदक सम्पत्ति का ट्रस्टी नहीं है। वक्फ बोर्ड की सूचना के अनुसार वक्फ करने के संबंध में अर्जी या आपत्ति सुनने के लिए अखबारों में विज्ञापन नहीं दिया गया। आवेदक ने जो फोटो कॉपी दी है, वह भी पढ़ने में नहीं आता है।

आवेदक ने सेंट्रल वक्फ काउंसिल और उसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी को वक्फ बोर्ड पर दबाव डालने के लिए दिल्ली के जमियत उलेमा-ए-हिंद महमद मदनी को भी पत्र लिखा। तकरार वाली जमीन पर किसी तरह का सर्वे नहीं किया गया। यह प्रोपर्टी यदि वक्फ नहीं होता है तो अब्दुल्लाह या संलग्न लोगों का हक, मूलभूत अधिकार किस तरह भंग होता है, इसकी जानकारी नहीं दी गई है। वर्तमान इमारत सरकार के राजस्व रिकॉर्ड में शामिल हुआ, तब भी किसी ने आपत्ति नहीं की। सभी नियमों के तहत इमारत को रेवन्यू रिकॉर्ड में शामिल कर प्रोपर्टी कार्ड इशु किया गया। बिजली बिल भी नगर पालिका के नाम से आता है। इस सम्पत्ति का साक्ष्य अब प्राप्त करना भी कठिन है।

तकरार वाली सम्पत्ति में पहले म्यूनिसिप्लिटी, नगरपालिका और बाद में 1966 में महानगर पालिका आ गई। इस प्रोपर्टी का उपयोग एक समय मिलिट्री के हथियार रखने, गोदाम और जेल के रूप में होता था। वक्फ बोर्ड में आवेदक ने अर्जी भी योग्य प्रारूप में नहीं किया। किस प्रकार का वक्फ है, इसका भी उल्लेख नहीं है। सम्पत्ति से आवक, कर्मचारियों का वेतन आदि का उल्लेख नहीं है। वक्फ की सम्पत्ति के रूप में चैरिटी कमिश्नर ने पीटीआर में दर्ज नहीं है। शिलालेख में भी कारवासराइ का उल्लेख है, हुमायुं सराइ का उल्लेख नहीं है। इसके अलावा वर्ष 1868 में 33080 रुपया के खर्च से सराई को म्यूनिसिप्लिटी में बदला गया था।

वक्फ बोर्ड ने प्राकृतिक सिद्धांत को भंग किया है। सूरत बंदरगाह से प्राप्त राजस्व से इस सराय का निर्माण हुआ है। इसमें बादशाह का पैसा नहीं लगा है। मुस्लिम धर्म के अनुसार सवउपार्जित सम्पत्ति को वक्फ किया जा सकता है। इस तरह वक्फ ट्रिब्यूनल ने वक्फ बोर्ड के निर्णय को ठुकराते हुए एमएससी की अपील मान्य रखा है।

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