‘बेटा पढ़ाओ-संस्कार सिखाओ’ अभियान कितना आवश्यक, आखिर विदेशियों को भी आया समझ!

‘बेटा पढ़ाओ-संस्कार सिखाओ’ अभियान कितना आवश्यक, आखिर विदेशियों को भी आया समझ!

बोर्नमाउथ - (इंग्लैंड) -: आज के दौर में दुनिया भारतीय संस्कृति की कायल है और अपनाने को आतुर है वहीं भारतीय लोग पाश्चात्य संस्कृति या यों कहिये कि हकीकत में जो संस्कृति है ही नहीं उसके पीछे दौड़ रहे हैं। लक्ष्मणगढ़ - (सीकर) निवासी कवि हरीश शर्मा के द्वारा 'बेटा पढ़ाओ-संस्कार सिखाओ' अभियान चलाया जा रहा है। जिसका उद्देश्य है कि बेटों को पढ़ाओगे और संस्कार सिखाओगे तो बेटियों को  सुरक्षा की आवश्यकता ही कहां रहेगी। जब बेटे समझदार और संस्कारी होंगे तो बेटियों को खतरा ही कहां।

बेटा पढ़ाओ-संस्कार सिखाओ अभियान की महासचिव डॉ.निरुपमा उपाध्याय इन दिनों इंग्लैंड गई हुई है। उन्होंने वहां इसी अभियान के तर्ज पर इंग्लैंड के बोर्नमाउथ शहर के एक रेस्टोरेंट पर लिखा देखा PROTECT YOUR DAUGHTER जिसे क्रॉस कर रखा है और नीचे लिखा है EDUCATE YOUR SON 'प्रोटेक्ट योर डॉटर, एजुकेट योर सन' तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि कवि शर्मा द्वारा छोटे से शहर में चलाये जा रहे इस अभियान का कितना महत्व है। 'प्रोटेक्ट योर डॉटर, एजुकेट योर सन' अर्थात् यदि बेटियों को सुरक्षित रखना है तो अपने बेटों को पढ़ाओ, बेटा पढ़ेगा, तो आगे बढ़ेगा, उन्नति करेगा, अच्छा क्या है, बुरा क्या है ये समझने की बुद्धि आयेगी, संस्कार मिलेंगे और समाज को दिशा मिलेगी। बेटे अच्छे होंगे, संस्कारी होंगे तो बेटियां तो सुरक्षित स्वयं ही हो जायेंगी। न तो किसी की बेटी के साथ वो गलत करेंगे और नही किसी को करने देंगे। आज विदेशियों को भी ये बात समझ में आने लगी है।

वास्तव में बेटा पढ़ाओ-संस्कार सिखाओ अभियान की आज के समाज में बहुत ही आवश्यकता है। किसी शायर ने कहा था 'बात निकली है तो दूर तलक जायेगी' तो एक कवि हृदय पत्रकार के मन की आवाज की गूंज दूर-दूर तक सुनाई देने लगी है। लोगों को अजीब लगने वाला विषय समाजोपयोगी बन चुका है। ये किसी एक का नहीं हम सबका अभियान होना चाहिए। बेटी सभी हमारी हैं और बेटे भी हमारे ही हैं। भारतीय संस्कृति वसुधेव कुटुम्बकम को जीवन में धारण किए हुए है, फिर देश की भावी पीढ़ी को दिशा दिखाने के लिए उठाया गया कोई भी कदम मेरा और तुम्हारा अलग कैसे हो सकता है। इसमें अस्वीकार्य करने योग्य तो कुछ भी नहीं है। इस अभियान की सफलता के लिए हम सबका संयुक्त प्रयास समाज को सुधारने में  निश्चित रूप से मील का पत्थर साबित होगा। 

विदेशों में हम देख रहे है कि हमारी सामाजिक परंपराएं यहां के लोगों को बहुत प्रभावित करती हैं। हमारे उत्सव, त्यौहार, मेले, सामाजिक आयोजन, विवाह पद्धति, भोजन प्रणाली सभी का विशेष महत्व है लेकिन यदि हमारे बच्चे अपनी परंपराओं के प्रतिकूल आचरण करेंगे तो हमारी संस्कृति का मूल्य ही क्या रह जायेगा।

अतः हम सबको अपने बच्चों के प्रति उत्तदायित्व निभाते हुए बेटा हो या बेटी दोनों को ही शिक्षित और संस्कारी बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए। बच्चे सुखी तो हम भी सुखी। इसलिए 'बेटा पढ़ाओ-संस्कार सिखाओ' अभियान नही आवश्यकता है।

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