सूरत : शवों की पैकिंग करने वाले कर्मियों के हृदय-वेदना का पार नहीं!

सूरत : शवों की पैकिंग करने वाले कर्मियों के हृदय-वेदना का पार नहीं!

सिविल अस्पताल में 34 कर्मचारी कर रहे है लाश को पैक करने का काम

कोरोना के कठिन समय में भी सुरत की सिविल अस्पताल में डॉक्टर और पेरा मेडिकल स्टाफ अपना तन-मन देकर कोरोना के मरीजों की सेवा में लगे हुये है। महामारी के दौरान सभी अपना काम काफी निष्ठा से कर रहे है। ऐसे में सबसे कोरोना के कारण मृत लोगों ली लाश को पेकिंग करने वाले कर्मचारी के मन काफी विचलित हो चुका है। किसी के पिता, किसी की माता तो किसी के भाई या बहन के मृत देह को जब वह पैक करते है तो उनका दिल भी दहल जाता है। 
संदेश की रिपोर्ट के अनुसार सिविल अस्पताल में कुल 34 कर्मचारी लाश को पैक करने की जिम्मेदारी निभा रहे है। अंतिम दर्शन करने के लिए रो रहे लोगों को देखकर उनका मन भी पसीज जाता है। पर दिल पर पत्थर रख कर उन्हें अपना काम करना पड़ता है। पिछले कुछ दिनों से कोरोना के कारण मृत्यु की संख्या काफी बढ़ चुकी है। जिसके कारण अब वह भी थक जाते है, पर एक के बाद एक मृतदेह के पैकिंग की सूचना आती ही रहती है। अस्पताल में लाश की पैकिंग के साथ जुड़े कुछ लोगों से जो बातचीत हुई है उसकी रिपोर्ट आप भी पढिए। 
रिपोर्ट में परेशभाई पवार ने बताया कि पिछले एक साल से वह यह काम कर रहे है। मृतदेहों को पैक करते समय उनका मन रोने लगता है। बाहर रो रहे मृतक के परिजनों को देखकर उनका मन भी रोने का करता है। पिछले एक साल के दौरान उन्होंने डेढ़ साल के बालक से लेकर 70 साल के बुजुर्ग की लाश भी उन्होंने पैक की है। 
उधर नरेश सोलंकी कहते हैं कि पिछले एक साल में उन्होंने लगभग एक हजार से अधिक लोगों की लाशों को पैक किया है। जिसमें दो महीने के बालक से लेकर 75 साल के बुजुर्ग भी शामिल है। सदभाग्य से अब तक उन्हें कोई तकलीफ नहीं हुई है। पर मृतक के परिजनों को रोता देखकर वह सहन नहीं कर पाते है।
वहीं मुश्ताक शेख ने कहा कि सालों से वह बिना वारिस की मृतदेहों का अंतिम संस्कार करते है। वैसे तो उन्होंने कई लाशों की पेकिंग की है। पर अभी जो स्थिति है वह उनकी हिम्मत के बाहर है। जब से उन्होंने यहाँ नौकरी शुरू की उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को कह दिया था यदि वह वापिस आए तो उनके नहीं तो खुदा के हो जाएगे।