Orange seller Harekala Hajjaba from karnataka… saved a part of income to fulfil his dream of starting a school in his village. Awarded padmashri by Modi sarkaar. pic.twitter.com/eGscpzDG4o
— अंकित जैन (@indiantweeter) November 8, 2021
जानें क्यों संतरा बेचने वाले इस आम आदमी को राष्ट्रपति द्वारा मिला पद्मश्री पुरस्कार
By Loktej
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जनवरी 2020 में ही तय कर लिया गया था पद्मश्री के लिए नाम, कोरोना के कारण हुई देरी
कर्नाटक में संतरा बेचकर लड़कों के लिए स्कूल बनाने वाले हरेकला को केंद्र सरकार ने सम्मानित किया है। अशिक्षित होते हुए भी हरेकला ने ऐसा काम किया है जो कि कई शिक्षित लोग सोच भी नहीं सकते। संतरा बेचकर जीवन यापन करने वाले हरेकला ने गाँव के लड़कों के लिए एक स्कूल शुरू किया और आज पूरे देश में उनकी सराहना की जा रही है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में हरेकला को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद रहे थे। हरेकला हज्जबा कर्नाटक के मैंगलोर में एक संतरा के व्यापारी हैं। गाँव में स्कूल न होने के कारण वे पढ़ नहीं सके, लेकिन शिक्षा के प्रति उनका समर्पण ऐसा था कि अब वे शिक्षितों के लिए भी एक मिसाल बनकर उभरे हैं।
गांव में स्कूल न होने के कारण वह खुद नहीं पढ़ सके थे। उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और हरकला में एक स्कूल बनाने की ठान ली। उनकी यह यात्रा साल 1995 में शुरू हुई थी। स्कूल के लिए अनुमति और जमीन लेने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उनका सपना 1999 में सच हुआ जब दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत ने एक स्कूल को मंजूरी दी। प्रारंभ में, स्कूल एक मस्जिद में चल रहा था जिसे दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत लोअर प्राइमरी स्कूल 'हजबा आवारा शैल' (हजबा का स्कूल) के नाम से जाना जाता था।
President Kovind presents Padma Shri to Shri Harekala Hajabba for Social Work. An orange vendor in Mangalore, Karnataka, he saved money from his vendor business to build a school in his village. pic.twitter.com/fPrmq0VMQv
— President of India (@rashtrapatibhvn) November 8, 2021
बाद में, हजबा ने जिला प्रशासन द्वारा अनुमोदित 40 सेंट भूमि पर स्कूल का निर्माण किया। उनके नाम को जनवरी 2020 में पद्म श्री के लिए मंजूरी दी गई थी, लेकिन अब उन्हें कोरोना के उन्हें यह सम्मान मिलने में एक साल कि देरी हुई।
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