सिलसिलेवार बम धमाका मामले में अजमेर की टाडा कोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला 29 फरवरी को
इस मामले में उत्तर भारत की अजमेर टाडा कोर्ट में सुनवाई की जा रही थी
अजमेर, 27 फरवरी (हि.स)। लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई की ट्रेनों में 6 दिसंबर, 1993 को हुए सिलसिलेवार बम धमाके को लेकर अजमेर की टाडा कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। इस मामले में फैसला अब 29 फरवरी को सुनाया जाएगा।
अयोध्या में वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद गिराने की बरसी पर सिलसिलेबार बम धमाके किए गए थे। इस मामले में उत्तर भारत की अजमेर टाडा कोर्ट में सुनवाई की जा रही थी। आरोपित आतंकी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा, इरफान अहमद, हम्मीदुद्दीन पर लगे आरोपों पर न्यायालय में आखिरी बहस पूरी हो गई। टाडा कोर्ट ने अंतिम फैसला सुनाने के लिए 29 फरवरी की तारीख तय की।
अयोध्या में बाबरी विध्वंस की बरसी पर देश भर में सिलसिलेवार बम धमाके करने के तीन आरोपित आतंकी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा, इरफान, हमीमुद्दीन जेल में बंद हैं। टुंडा की ओर से पैरवी शफकत सुल्तानी, इरफान व हमीमुद्दीन की ओर से एडवोकेट अब्दुल रशीद, सीबीआई की ओर से भवानीसिंह रोहिल्ला व राज्य सरकार की ओर से ब्रजेश पांडे पैरवी कर रहे हैं।
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार आतंकी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद जेल में बंद था। 24 सितंबर को उसको गाजियाबाद जेल से अजमेर भेजा गया। तब से वह अजमेर जेल में ही बंद हैं। टुंडा आखिरी बार साल-2013 में नेपाल बॉर्डर से पकड़ा गया था। 6 दिसंबर 1993 को ट्रेनों में विस्फोट के वक्त करीम टुंडा लश्कर का विस्फोटक विशेषज्ञ था। मुंबई के डॉक्टर जलीस अंसारी, नांदेड के आजम गौरी और करीम टुंडा ने 'तंजीम इस्लाम उर्फ मुसलमीन' संगठन बनाकर बाबरी विध्वंस का बदला लेने के लिए 1993 में पांच बड़े शहरों में ट्रेनों में बम धमाके किए थे।
दिल्ली पुलिस मुख्यालय के सामने 1996 में बम धमाके का आरोप भी टुंडा पर है। 1996 में सुरक्षा एजेंसी इंटरपोल ने उसका रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था। साल-2000 में टुंडा के बांग्लादेश में मारे जाने की खबरें आईं लेकिन 2005 में दिल्ली में पकड़े गए लश्कर के आतंकी अब्दुल रज्जाक मसूद ने टुंडा के जिंदा होने का खुलासा किया। 2001 में संसद भवन पर हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से जिन 20 आतंकियों के प्रत्यर्पण की मांग की थी, उसमें टुंडा भी था। राजस्थान के टोंक जिले की एक मस्जिद के जिहाद की मीटिंग लेते समय किसी हादसे में एक हाथ खो देने के बाद अब्दुल करीम का नाम 'टुंडा' पड़ा। उस पर करीब 33 क्रिमिनल केस हैं और करीब 1997-98 में करीब 40 बम धमाके कराने के आरोप हैं।
अब्दुल करीम उर्फ टुंडा उत्तर प्रदेश में हापुड़ जिले के कस्बा पिलखुवा का रहने वाला है। अपने जीवन की शुरुआत में वह पिलखुवा कस्बे में कारपेंटर (बढ़ई) का काम करता था। बाद में वह कपड़े का कारोबार करने मुंबई चला गया। मुंबई के भिवंडी इलाके में उसके कुछ रिश्तेदार रहते थे। 1985 में भिवंडी के दंगों में उसके कुछ रिश्तेदार मारे गए। इनका बदला लेने के लिए उसने आतंकवाद की राह पकड़ी। 1980 के आसपास वह आतंकी संगठनों के संपर्क में आया। 80 के दशक में अब्दुल करीम उर्फ टुंडा ने लश्कर से जुड़ गया।