गोस्वामी तुलसीदास को चित्रकूट के रामघाट पर हुए थे प्रभु श्री राम के दर्शन

चित्रकूट प्राचीन काल से ही अत्री आदि महान ऋषि मुनियों की तपोभूमि रही है

गोस्वामी तुलसीदास को चित्रकूट के रामघाट पर हुए थे प्रभु श्री राम के दर्शन

चित्रकूट, 11 फरवरी (हि.स.)। विश्व प्रसिद्ध पौराणिक तीर्थ के रूप में विख्यात भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों की लीला भूमि चित्रकूट में भगवान श्री राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास काल के साढ़े 11वर्ष व्यतीत किए थे। इसी पावन धरा में माता सती अनुसुईया के तपोबल से निकली पतित पावनी मां मंदाकिनी के रामघाट तट पर ही रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास को पवन पुत्र हनुमान ने तोते का रूप धर कर प्रभु श्री राम के दर्शन कराए थे।

चित्रकूट प्राचीन काल से ही अत्री आदि महान ऋषि मुनियों की तपोभूमि रही है। इसी पावन धरा पर ही भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि रचना से पूर्व यज्ञ किया था। पवित्र तीर्थ की महिमा को दृष्टिगत रख प्रभु श्री राम ने 14वर्षों के वनवास के लिए चित्रकूट को चुना था।

संतों का मानना है कि चित्रकूट के कण-कण में आज भी भगवान श्री राम, देवी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ वास करते हैं। भगवान श्रीराम के मर्यादित चरित्र को रामचरित मानस के माध्यम से जनजन तक पहुंचाने वाले गोस्वामी तुलसीदास को चित्रकूट में ही प्रभु श्री राम के साक्षात दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

मंदाकिनी के रामघाट तट पर स्थित तोता मुखी हनुमान मंदिर के महंत मोहित दास महाराज चित्रकूट की महिमा का बखान करते हुए बताते हैं कि रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास भगवान की खोज में सभी तीर्थ में गए। लेकिन किसी तीर्थ में उन्हें भगवान श्रीराम के दर्शन नहीं हुए। तुलसीदास को बनारस में हनुमान जी के दर्शन हुए। यहां पर उन्हें प्रेरणा मिली कि भगवान के दर्शन चित्रकूट में होंगे। तुलसीदास बनारस से चित्रकूट आए। मंडिकिनी के रामघाट के किनारे एक छोटी सी मिट्टी की गुफा बनाकर अखंड ज्योत जलाकर भगवान श्री राम के नाम का जाप करने लगे। रोज कामतानाथ जी की परिक्रमा लगाते हुए 21 वर्ष तक तुलसीदास ने चित्रकूट में तपस्या की। तुलसीदास को कई बार भगवान का दर्शन हुआ। हर बार वह प्रभु श्री राम को पहचानने में चूक जाते थे।

मान्यता है कि माघी अमावस्या के दिन तुलसीदास महाराज रामघाट में चंदन घिस रहे थे जो भी स्नान करके आता सबको तुलसीदास तिलक लगाते थे। हजारों संतों की भीड़ में भगवान राम लक्ष्मण दोनों बालक के रूप में आए और उन्होंने तुलसीदास से चंदन लगाने के लिए मांगा लेकिन उस समय भी तुलसीदास प्रभु को नहीं पहचान सके। हनुमान ने देखा कि तुलसीदास को आज फिर दर्शन नहीं हो रहा। जब तक दर्शन नहीं होगा तब तक इस संसार कल्याण के लिए रामचरितमानस की रचना कैसे होगी। इसलिए हनुमान जी तोता बनाकर तुलसीदास को दोहा सुनाया "चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसैं तिलक देत रघुवीर" जैसे ही तुलसीदास जी ने यह दोहा सुना, तुरंत समझ गए कि यह प्रभु श्री राम हैं और उन्होंने फौरन चरणों को पकड़ लिया। प्रभु श्रीराम ने अपने दिव्य स्वरूप का संवत 1607 में आज से 473 वर्ष पहले दर्शन करवाया। आज भी संत कहते हैं कि माघ की मौनी अमावस्या को भगवान स्वयं स्नान करने आते हैं।

महंत मोहित दास महाराज ने बताया कि मंदिर में इस अवसर पर अखंड रामचरितमानस का पाठ, भंडारा का आयोजन किया जाता है। चित्रकूट के संत, महंत और स्थानीय लोग एकत्रित होकर इस अवसर को तुलसी रघुवीर दर्शन महोत्सव के रूप में मनाते हैं। इस स्थान पर आज भी तोता मुखी हनुमान का दिव्य रूप विराजमान है। जिनके दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। आज भी इस स्थान पर तुलसीदास की जलाई हुई अखंड ज्योत और चंदन घिसने का पत्थर आज मौजूद है।

Tags: Feature