बुन्देलखंड में श्रीकृष्ण के दीवानों ने शुरू की मौन साधना की तैयारी
सदियों पुरानी परम्परा के मौन साधना में घर छोड़ जंगल में डेरा डालते हैं मौन साधक
हमीरपुर, 09 नवम्बर (हि.स.)। बुन्देलखंड में भगवान श्रीकृष्ण के दीवाने अब मौन साधना की तैयारी में जुट गए हैं। सदियों पुरानी परम्परा मौन साधना में श्रीकृष्ण के उपासक घर छोड़कर जंगलों में डेरा डालेंगे। मौन साधक नंगे पांव रहकर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति करेंगे। साथ ही दिवाली पर नृत्य करेंगे।
बुन्देलखंड के हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, जालौन, ललितपुर और झांसी के अलावा मध्यप्रदेश के आसपास के तमाम ग्रामीण इलाकों में मौन साधना की तैयारियां शुरू हो गई हैं। मौन पंख व दिवाली नृत्य के साथ ही गांव-गांव में यह विशेष अनुष्ठान श्रीकृष्ण भक्त हर साल करते हैं। बुजुर्गों के अनुसार यह परम्परा सहज नहीं होती है क्योंकि श्रीकृष्ण के उपासकों को कई धार्मिक और सामाजिक नियमों से बांधना होता है। जो भी भक्त मौन साधना करते हैं उन्हें लगातार चौदह सालों तक मास मदिरा से दूर रहना होता है। यदि कोई नियम तोड़ता है तो अनुष्ठान का पुण्य व्यर्थ चला जाता है।
हमीरपुर जिले के विदोखर गांव निवासी समाजसेवी मिथलेश कुमार ने बताया कि मौन साधना के एक दिन पूर्व अमावस्या को किसी नदी या सरोवर में समूह के साथ पवित्रता के लिए स्नान दान करना भी जरूरी होता है। बिना मोर पंख के साधना करने की भी मनाही रहती है। श्रीकृष्ण भक्त को मौन साधना के दिन नए वस्त्र पहनने पड़ते है। गायों के एक दिन के आहार के लिए दान देना होता है। पूरे दिन मौन रहकर व्रत रखना होता है। जूते चप्पल के बिना नंगे पांव ही जंगल-जंगल भ्रमण भी करना पड़ता है।
कठिन साधना से पीछे नहीं हटते हैं श्रीकृष्ण के भक्त
मौन साधक बाबूलाल समेत तमाम लोगों ने बताया कि तड़के ही गौ पूजा करने के बाद शाम को गोधूलि की बेला में जंगलों से वापस लौटकर दोबारा गौ पूजा कर मौन तोड़ा जाता है। यदि इस बीच कोई भूल वश मौन तोड़ देता है तो अन्य मौन साधक मोर पंखों से उसकी पिटाई करते हैं। साथ ही उसे गोमूत्र पिलाया जाता है। मौन साधकों को इच्छानुसार सभी धार्मिक स्थलों और समाज के लोगों को यथा सामर्थ्य प्रसाद भी वितरित करना पड़ता है। बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की यह कठोर साधना व्यर्थ नहीं जाती है लेकिन साधना कठिन है जो सबके बस की बात भी नहीं है।
14 सालों के अनुष्ठान का बीड़ा उठाते है सैकड़ों भक्त
मौन साधकों ने बताया कि तेरह साल की मौन साधना पैतृक गांव में पहले की जाती है फिर 14 वें साल मौन साधकों को चित्रकूट या वृन्दावन जाकर यह अनुष्ठान करना होता है। तब कही भी श्रीकृष्ण की कठिन साधना का अनुष्ठान पूरा होता है। बुजुर्ग बाबूलाल यादव व फूल सिंह यादव समेत तमाम मौन साधकों ने बताया कि मौन साधकों को बड़ी ही कठिन साधना से अनुष्ठान करना होता है। हर साल जितने मौन साधकों का अनुष्ठान पूरा होता है उतने या उससे अधिक लोग मौन साधना के लिए बुन्देलखंड क्षेत्र में तैयार होते है। जिससे यह अनुष्ठान पूर्ण आस्था के साथ आज भी जारी है।