सूरत : नगर निगम की धूल खा रही साइकिल शेयरिंग परियोजना
सूरत में सार्वजनिक उपयोग के लिए रखी गई साइकिलें कबाड़ में बदल गईं
सूरत शहर खुद को पूरे गुजरात और देश में नंबर वन कॉर्पोरेशन साबित करने के लिए लगातार नए प्रोजेक्ट लॉन्च कर रहा है। लेकिन जब उन्हें लागू करने की बात आती है, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सूरत शहर देश में आखिरी स्थान पर है। नतीजा यह हुआ कि सत्ताधारियों की यह छवि बन गई कि प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए ठेकेदारों से पैसे लेने के बाद प्रोजेक्ट कैसा चल रहा है, यह देखने में किसी की रुचि नहीं है।
एक बार फिर साइकिल शेयरिंग प्रोजेक्ट विवादों में
सूरत नगर निगम द्वारा शुरू की गई साइकिल शेयरिंग परियोजना पर विवाद खड़ा हो गया है। प्रारंभ में यह परियोजना कुछ क्षेत्रों में लोगों के लिए बहुत उपयोगी साबित हुई। लेकिन धीरे-धीरे यह प्रोजेक्ट धूल फांकता नजर आ रहा है। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत करीब 1200 साइकिलों से की गई थी। अलग-अलग जोन में करीब 250 साइकिल स्टैंड भी बनाये गये। लेकिन आज शायद 100 साइकिल स्टैंड ऐसे नहीं होंगे जहां कोई नुकसान न हुआ हो। कहीं साइकिल स्टैंड हैं तो कहीं साइकिल नहीं और जहां साइकिल हैं वहां स्टैंड नजर नहीं आते। ऐसी ही स्थिति सूरत नगर निगम परियोजना के साथ हुई है। साइकिल शेयरिंग स्टैंड का उपयोग अलग-अलग तरीकों से किया जा रहा है, कालीन ले जाने वाले लोग वहीं व्यवसाय करते हैं और वहीं सोते हैं। जबकि कुछ लोग इसे चाय के दुकान के रूप में उपयोग करते हैं।
इस प्रोजेक्ट पर नगर पालिका ने करोड़ों रुपए खर्च किए
सूरत नगर निगम ने साइकिल शेयरिंग प्रोजेक्ट पर करोड़ों रुपए खर्च किए लेकिन अब यह प्रोजेक्ट सिर्फ कागजों पर ही रह जाएगा। जितनी साइकिलें थीं, वे लाल दरवाजा के पास गोदाम में कबाड़ की तरह जमा हैं। बारिश में ऐसे ही खुले में पड़ी ये साइकिलें भीग गईं और अब मरम्मत करके दोबारा चलाने की स्थिति में नहीं हैं। तो हम कह सकते हैं कि ये साइकिलें पूरी तरह से कबाड़ में तब्दील हो चुकी हैं।
इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है?
पूर्व पार्षद दिनेश काछड़िया ने कहा कि शहर के अंदर साइकिल शेयरिंग का प्रोजेक्ट बहुत अच्छे से चल रहा था। लेकिन कई जगहों पर लोगों की लापरवाही भी देखने को मिली। जब कोई प्रोजेक्ट शुरू किया जाता है तो उसकी निगरानी कैसे करनी है, सब कुछ तय हो जाता है। लेकिन जब ऐसी स्थिति आती है तो समझ नहीं आता कि इसका जिम्मेदार कौन है। कोई भी यह कहने को तैयार नहीं है कि अगर साइकिल शेयरिंग परियोजनाओं पर खर्च किए गए करोड़ों रुपये बर्बाद हो जाएं तो किस उच्च अधिकारी को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। अगर जवाबदेही तय नहीं होगी तो हम और आप भलीभांति समझ सकते हैं कि किसे परवाह है।