यूपीएससी परिणामों में दिखी हिन्दी की बढ़ती ताकत

इस बार हिन्दी माध्यम से कुल 54 उम्मीदवारों का चयन हुआ है, जिनमें रैंक 66, 85, 89, 105 और 120 प्रमुख हैं

यूपीएससी परिणामों में दिखी हिन्दी की बढ़ती ताकत

आर.के. सिन्हा

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की साल 2022 के परीक्षा परिणाम इस साल 23 मई को आए। यूपीएससी के परिणामों को नतीजा आने के बाद हर साल गहराई से विश्लेषण होता रहा है। पर इस बारे में अधिक चर्चा नहीं हो रही कि इस बार सफल हुए अभ्यार्थियों में हिन्दी माध्यम से परीक्षा देने वालों का आंकड़ा शानदार रहा है। यह पिछले 20-25 वर्षों का सर्वश्रेष्ठ परिणाम है।

इस बार हिन्दी माध्यम से कुल 54 उम्मीदवारों का चयन हुआ है, जिनमें रैंक 66, 85, 89, 105 और 120 प्रमुख हैं। यूपीएससी द्वारा आयोजित इस परीक्षा में हिन्दी माध्यम के विद्यार्थी पिछले कुछ सालों से लगातार अपेक्षित नतीजे नहीं दे पा रहे थे। चाहे बात चयनित विद्यार्थियों की हो या टॉप रैंक की, हिन्दी माध्यम हमेशा से संघर्ष करता रहा है। इसलिए कहा जाने लगा था कि हिन्दी माध्यम से देश की इस सबसे खास परीक्षा को उत्तीर्ण करना लगभग असंभव है। लेकिन इस साल 2022 के परिणाम बेहतरीन रहे हैं। ये एक तरह से बेहतर भविष्य की उम्मीद पैदा कर रहे हैं।

पिछले साल आए 2021 के परिणाम में हिन्दी माध्यम वाले 24 उम्मीदवार सफल हुए थे, इस बार पिछले से 30 ज्यादा। यानी हिन्दी का ग्राफ धीरे-धीरे सुधर रहा है। हिन्दी माध्यम की टॉपर 66वीं रैंक हासिल करने वाली कृतिका मिश्रा कानपुर की रहने वाली हैं। दिव्या तंवर ने इस बार 105वीं रैंक हासिल की है। 2021 बैच में भी दिव्या ने 438वीं रैंक हासिल की थी और सबसे कम उम्र ( सिर्फ 22 साल) की आईपीएस चुनी गई थीं। अब वह आईएएस हो गई हैं। दरअसल इस बार के नतीजों में सबसे खास बात यह है कि हिन्दी के माध्यम से परीक्षा देने वाले 54 उम्मीदवारों में से 29 ने वैकल्पिक विषय के रूप में हिन्दी साहित्य लेकर यह कामयाबी हासिल की है। पांच-पांच उम्मीदवार ऐसे भी सफल हुए जिन्होंने इतिहास, भूगोल व राजनीति विज्ञान विषय लिया था। दो छात्रों ने गणित विषय लेकर हिन्दी माध्यम से सफलता हासिल की, जिनमें से एक ने 120वीं रैंक हासिल की है।

अगर बात पिछले साल की जारी रखें तो राजस्थान के रवि कुमार सिहाग 18वीं रैंक के साथ हिन्दी मीडियम से परीक्षा देने वालों में टॉपर बने थे। सात साल के बाद हिन्दी माध्यम का कोई छात्र यूपीएससी पास करने वाले शीर्ष 25 उम्मीदवारों में जगह बना पाया था। इससे पहले सिविल सेवा की 2014 की परीक्षा में निशांत कुमार जैन 13वें स्थान पर रहे थे। मैं आगे बढ़ने से पहले बताना चाहता हूं कि भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक संभवत: देश के हिन्दी माध्यम से यूपीएससी की परीक्षा में सफलता पाने वाले पहले उम्मीदवार थे। वे भारत के बहुत सफल विदेश सचिव के रूप में याद किए जाते हैं। इसी तरह से दिल्ली पुलिस के आला अफसर अजय चौधरी ने भी हिन्दी को यूपीएससी में परीक्षा देने का माध्यम बनाया था। वे दिल्ली पुलिस के धाकड़ पुलिस अधिकारी रहे हैं।

इस बेहतर परिणाम में सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी के लिये कोचिंग देने वाले दृष्टि आईएएस संस्थान का विशेष योगदान है। इस बार हिन्दी माध्यम से चयनित 54 से अधिक विद्यार्थी परीक्षा के किसी न किसी स्तर पर दृष्टि संस्थान से जुड़े रहे हैं। यहां के प्रमुख विद्वान डॉ. विकास दिव्यकीर्ति कहते हैं कि हमने कुछ साल पहले हिन्दी माध्यम के परिणाम को सुधारने के लिए कई पहलों की शुरुआत कर दी थी। जैसे कि ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले विद्यार्थियों को दिल्ली में रहने और पढ़ने की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए 'अस्मिता' नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया है। इसके अलावा परिणाम में सुधार करने के लिए हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों को विशेष तौर पर मेंटरशिप और लाइब्रेरी की सुविधा भी दी जा रही है। इन्हीं तमाम प्रयासों का परिणाम रहा है कि आज इतना बेहतर हो सका है और उम्मीद है कि परिणाम भविष्य में और बेहतर हो सकेगा।

अगर बात हिन्दी से हटकर करें तो जो अभ्यार्थी आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और अन्य सेवाओं में जाएंगे उनसे देश को अनेक उम्मीदें रहेंगी। उनसे पहली अपेक्षा तो यही होगी कि वे समाज के अंतिम व्यक्ति तक सरकार के जनकल्याण के कार्यक्रमों का लाभ पहुंचाएं। सरकार की तरफ से आने वाली योजनाओं को लागू करने का काम तो अफसरों पर ही निर्भर होता है। उन्हें यह देखना होता है कि सरकारी कार्यक्रम सही से लागू हों। इस मोर्चे पर बहुत से अफसर निकम्मे ही साबित होते हैं।

कई बार ईमानदार अफसरों को जान से भी हाथ धोना पड़ा है। कुछ साल पहले चंडीगढ़ से सटे खरड़ शहर में जोनल लाइसेंसिंग अथॉरिटी में अधिकारी नेहा शौरी की उनके दफ्तर में ही गोली मार कर हत्या कर गई थी। नेहा शौरी एक बेहद मेहनती और ईमानदार सरकारी अफसर थीं। बेईमानों को छोड़ती नहीं थीं। इसका खामियाजा उन्हें जान देकर देना पड़ा। नेहा से पहले सत्येंद्र दुबे हों, मंजूनाथ हों या अशोक खेमका, इन्हें ईमानदारी की भारी कीमत अदा करनी पड़ी थी। सरकार को अपने ईमानदार अफसरों के साथ हमेशा खड़ा होना होगा,साथ देना होगा। दरअसल कड़वी दवा और कड़क ईमानदार अफसर को कम लोग ही पसंद करते हैं । ज्यादातर लोगों को बिकने वाले सरकारी बाबू चाहिए जो उनके हिसाब से काम करे।

बहरहाल, यूपीएससी की परीक्षा में हिन्दी के माध्यम से सफल हुए सभी उम्मीदवारों को अलग से बधाई। उनसे उम्मीद तो यही रहेगी कि वे शशांक और अजय चौधरी जैसे बेहतरीन अफसरों के रूप में अपने को साबित करेंगे। (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं

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