देश के प्रसिद्ध जादूगर के बेटे ने घर से निकाला, वृद्धाश्रम बना सहारा

बेटा और बहू अध्यापक, माँ-बाप वृद्धाश्रम में रहने को लाचार

देश के प्रसिद्ध जादूगर के बेटे ने घर से निकाला, वृद्धाश्रम बना सहारा

आलीशान मकान, फिर भी वृद्धाश्रम में रहने को विवश

(विश्व परिवार दिवस पर विशेष)

गोण्डा, 15 मई (हि.स.)। जिनकी जादू देखने के लिए हर कोई उनकी प्रतिभा का कायल हो जाता था। बचपन में जादूगरी सीखने के लिए पिता के लाखों के कारोबार को ठुकरा दिया हो। जिन्हें उत्तर प्रदेश की सरकार ने दो बार जादूगर सम्राट की उपाधि से नवाजा हो, जो लाखों की सम्पत्ति के मालिक हों, उनके बेटे ने की करतुत ने आज उन्हें वृद्धाश्रम में रहने को विवश कर दिया है।

समाज कल्याण विभाग की ओर से संचालित शहर के बादशाह बाग स्थित वृद्धाश्रम में मिले जगदीश भारती ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि मेरे बेटे ने मेरे मकान में ताला लगाकर, मुझे अलग कर दिया। मेरा जादूगरी का सामान भी जप्त कर लिया। जिस मकान में उन्होंने ताला लगाया। वह मकान मेरे नाम है। फिर भी बेटे ने हमें घर से निकाल दिया।

जादूगर बनने के लिए लाखों का कारोबार ठुकराया

उल्लेखनीय है कि जगदीश भारती किसी नाम के मोहताज नहीं है। जादूगरी की दुनिया में जगदीश भारती के लाखों फैंस हैं। उन्होंने देश के लाखों करोड़ों लोगों के दिलों में अपनी जादूगरी के बल पर जगह बनाई है। बताते हैं कि आज से करीब 70 साल पहले पिता के लाखों का कारोबार छोड़कर जादू की दुनिया में हाथ आजमाना शुरू किया। जादूगर बनने का बचपन से ही सपना रहा। मेरे जूनन का ही कमाल है कि करीब 90 वर्ष की अवस्था में आज भी जगदीश वृद्धाश्रम में रहते हुए वहां के लोगों का मनोरंजन करते रहते हैं। बेटे के घर से निकालने से दु:खी जगदीश भारती ने अपने हृदय से कुछ उद्गार व्यक्त किये, जो मानवता को झकझोरने वाली है।

मरने के बाद आश्रम में बनवा देना समाधि

बेटे से दु:खी जगदीश भारती कहते हैं कि मेरे हृदय के उदगार यही है कि मेरे मरने के बाद समाधि आश्रम में बनवा देना। पैसा ना हो तो मित्रों भीख मांगकर बनवा देना। यदि भीख भी मांगे ना मिले तो कफन बेचकर बनवा देना।

बेटा और बहू अध्यापक, माँ-बाप वृद्धाश्रम में रहने को लाचार

किसी जमाने में संयुक्त परिवार की एक लम्बी श्रृंखला होती थी। समाज की प्रतिष्ठा होती थी। संयुक्त परिवार सुख और समृद्धि की मिसाल माने जाते थे। आज ऐसे परिवार की संख्या बहुत कम देखने को मिल रही है। टूटते परिवार के कारण जिंदगी के अंतिम पड़ाव में बेटे-बहू, बेटी, धन-दौलत, घर-मकान सबकुछ होने के बाद कई ऐसे लोग हैं, जो वृद्धा आश्रम में जीवन यापन करने को विवश हैं। वृद्धाश्रम में ऐसे भी वृद्ध दंपत्ति मिले। जिनके बेटे-बहू सरकारी नौकरी में और उनके मां-बाप वृद्ध आश्रम में रहने को लाचार हैं।

आलीशान मकान, फिर भी वृद्धाश्रम में रहने को विवश

शहर के बादशाह बाग स्थित समाज कल्याण विभाग के नेतृत्व में संचालित वृद्धाश्रम में दो बेटों और दो बेटियों के माता-पिता वृद्धाश्रम में रहते हैं। वृद्धा आश्रम में रह रहे दंपत्ति अजय कुमार मिश्र का आश्रम से महज अधिकतम एक किलोमीटर की दूरी पर आलीशान मकान है। जहां इनके अध्यापक बहू-बेटे रहते हैं। वैसे आश्रम में रहने वाले अधिकांश लोग कुछ भी बताने से इनकार करते हैं।

अजय मिश्र कहते हैं कि उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं। एक बेटा और बहू प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं। दूसरी बहू टेलीकॉम कंपनी में काम करती है। दूसरे नंबर का बेटा भी जॉब कर रहा है। बेटी की शादी भी शहर के नैयर कॉलोनी में की है। वह अपने परिवार के साथ रह रही हैं। उन्होंने बताया कि बेटी हमारी नहीं जानती है कि हम वृद्धश्रम में रहते हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी बेटों से इन्हें कोई शिकवा शिकायत नहीं है।

अजय मिश्रा पुलिस विभाग में कांस्टेबल के पद पर तैनात थे। कुछ कारणों से सर्विस से निकाल दिए गए। अब पति-पत्नी दोनों आश्रम में रहते हैं। इनका कहना है उम्र के इस अंतिम पड़ाव में उन्हें मनी नहीं, बल्कि मैनपावर की जरूरत है।

पहली बार 1994 में मनाया गया विश्व परिवार दिवस

विश्व परिवार दिवस 1994 में मनाया गया था। हालांकि इस दिन की नींव 1989 में ही रख दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जीवन में परिवार के महत्व को बताने के उद्देश्य से 9 दिसंबर, 1989 के 44/82 के प्रस्ताव में हर साल अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाने की घोषणा की थी। बाद में साल 1993 में यूएन जनरल असेंबली ने एक संकल्प में परिवार दिवस के लिए 15 मई की तारीख तय कर दी। इसके बाद से हर साल 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाने लगा।