टूटते परिवार, दरकते रिश्तों के दौर में 'सत्तन गुरू' का परिवार समाज के लिए नज़ीर

तीन पीढ़ियों के सदस्य रहते हैं एक ही छत के नीचे,  सदस्यों में प्रेम, स्नेह, भाईचारा और अपनत्व का एक विशिष्ट माहौल

उच्च शिक्षित बहुंए एक ही रसोई में बनाती हैं भोजन, बंधती है पाली


वाराणसी, 13 मई (हि.स.)। भारत ने पूरी दुनिया को ही अपना परिवार(वसुधैव कुटुम्बकम्) माना है। देश में एक समय था कि जब लोग संयुक्त परिवार में ही रहना पसंद करते थे। जिसका जितना बड़ा परिवार होता था वह उतना ही सम्पन्न और सौभाग्यशाली माना जाता था। पूरे इलाके में उस परिवार की खास पहचान और सामाजिक प्रतिष्ठा रहती थी। लेकिन आज दुर्भाग्य है कि भारत में ही संयुक्त परिवार टूटते जा रहे हैं।

टूटते परिवार, दरकते रिश्तों, एकल परिवार के बढ़ते चलन के बावजूद आज भी पुश्तैनी समय से चली आ रही संयुक्त परिवार की परम्परा में चंद लोग विश्वास बनाए हुए हैं। ऐसा ही एक संयुक्त परिवार वाराणसी के जगतगंज में शिक्षाविद और वरिष्ठ कांग्रेस के नेता सत्यनारायण पांडेय 'सत्तन गुरू' का है। तीन पीढ़ियों के सदस्य एक साथ मिलजुल कर एक ही छत के नीचे रहते हैं और एक साथ भोजन करते हैं।

भगवान की आराधना और गौसेवा से होती है दिन की शुरूआत

सामाजिक और आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार का खुद का गौशाला और अस्तबल भी है। भगवान की आराधना और गौसेवा से परिवार के सदस्य दिन की शुरूआत करते हैं।

उच्च शिक्षित बहुंए एक ही रसोई में बनाती हैं भोजन, बंधती है पाली

पांडेय परिवार में चालीस से अधिक सदस्यों का भोजन एक साथ रसोईघर में बनता है। परिवार की वरिष्ठ महिला सदस्य प्रेमा पांडेय और माया पांडेय, नीलिमा पांडेय, इंदिरा पांडेय, माधुरी पांडेय की देखरेख में महिला सदस्यों की खाना बनाने और सब्जी काटने के लिए पाली बंधती है। इस कार्य में जयलक्ष्मी पांडेय, प्रिया, शालिनी, प्रतिभा, रेखा, नीतू (उच्च शिक्षित सभी बहू)पूरा सहयोग करती हैं। खाना बनने के बाद भगवान शालिग्राम को भोग लगता है। इसके बाद परिवार के पुरूष सदस्य और बच्चे पहले भोजन करते हैं। इसके बाद परिवार की महिलाएं भोजन करती हैं।

संयुक्त परिवार में मिलती है आत्मिक सुख

शिक्षाविद सत्यनारायण पांडेय की बहन कल्पना पांडेय बताती हैं कि परिवार के सदस्यों में प्रेम, स्नेह, भाईचारा और अपनत्व का एक विशिष्ट माहौल, रिश्तों की गर्माहट देख आत्मिक खुशी मिलती है। हमारे परिवार में सबसे बड़े सदस्य श्याम नारायण पांडेय हैं। परिवार के मुखिया भी वहीं है। इतने बड़े परिवार को एक सूत्र में बांधना आसान भी नहीं रहा। परिवार को एकजुट रखने में बड़े भाई सत्यनारायण पांडेय की अह्म भूमिका है। पिछले पचास सालों से वे अनवरत इस कार्य को कर रहे हैं। बड़ों की कद्र, छोटे बड़े का कायदा भी सिखाते रहते हैं।

तीन पीढ़ियों से है संयुक्त

सत्यनारायण पांडेय ने बताया कि तीन पीढ़ियां पहले बाबा के समय से हमारा परिवार संयुक्त रूप से साथ रहता आया है। हमारे बाबा दुर्गा प्रसाद पांडेय तीन भाई थे। बाबा के दोनों भाइयों मुन्नू पांडेय,धूमावती पांडेय का परिवार भी एकसाथ ही रहता था। बाबा दुर्गा प्रसाद पांडेय के तीन पुत्रों में मेरे पिताजी स्व. डॉ गंगानाथ पांडेय के सात पुत्र बड़े भाई श्री नारायण पांडेय, श्याम नारायण पांडेय, हरिनारायण पांडेय, खुद (सत्यनारायण पांडेय),गोपाल नारायण पांडेय,अशोक पांडेय, विनोद पांडेय और बड़े पिताजी रामऔतार पांडेय के पुत्र रामनारायण पांडेय का परिवार एक साथ रहता है। परिवार में हम तीन भाइयों की अर्धांगिनी अब इस दुनिया में नहीं है। परिवार में हमारे लड़के,भाइयों के लड़के और पुत्रवधुओं के साथ उनके बच्चे साथ ही रहते हैं। परिवार के युवा सदस्य दूसरे शहरों में भी नौकरी और व्यवसाय कर रहे हैं।

पहले माँ लेती थी निर्णय, अब लेते हैं भईया

सत्य नारायण पांडेय ने कहा कि घर में किसी भी कार्य का निर्णय पहले मां अब इस दुनिया में नहीं है करती थी। अब बड़े भाई श्याम नारायण पांडेय करते हैं। निर्णय में किसी का रोक-टोक नहीं होता। उनके द्वारा जो भी निर्णय कर लिया जाता है, वह मान्य होता है।

संयुक्त परिवार के लिए 'स्व' केन्द्रित जीवन को त्यागना होगा

सत्यनारायण पांडेय ने कहा कि समाज में सम्पन्नता की निशानी परिवार की प्रतिष्ठा से लगाई जानी चाहिए। बदलते दौर में 'स्व' में केंद्रित जीवन को त्याग करना होगा। इसी निजता ने व्यक्ति को परिवार से दूर करने के लिए प्रेरित किया। जबसे व्यक्ति ने अपने भतीजे या भतीजी को छोड़कर अपने बेटे या बेटी के बारे में सोचना शुरू किया है, तब से संयुक्त परिवार टूटे हैं।

ज्यादा व कम योगदान की भावना से शुरू होते हैं दरार

लोग सोचते हैं कि परिवार में किसका योगदान ज्यादा है और किसका कम और यहीं से शुरू हुई संयुक्त परिवारों में दरार। लोग सोचते हैं कि कैसे मेरा बेटा सबसे आगे निकले और कैसे मैं अपनी कमाई के हिसाब से अपना जीवनस्तर जीना शुरू करूं और इसी सोच ने अपनत्व और भाईचारे की भावना को आघात पहुंचाया है। हमने अपने परिवार को समय एवं महत्व देना कम कर दिया। इसके चलते बुजुर्गों का तिरस्कार बढ़ा एवं बच्चों की अवहेलना और संयुक्त परिवार टूटने लगे। रिश्तों में दरारें आ गई। अंतत: लोग एकल परिवारों में विभक्त हो गए। ऐसे में लोगों को अपने सोचने का नजरिया बदलने के साथ घर परिवार के संबंधों में जुड़ाव, विश्वास, आपसी समझ बनाए रखने के लिए कुछ त्याग करने पड़ेंगे।

संयुक्त परिवार के लिए संवाद जरूरी

सोशल मीडिया में अधिक समय देने से भी बचना होगा। आज फेसबुक, वाट्सअप से भी परिवार में बातचीत बंद हो रही है। उन्होंने कहा कि एक छत के नीचे रहने भर से परिवार का अर्थ पूरा नहीं होता, एक दूसरे की भावनाओं को समझने के साथ ही एक दूसरे को समझना, सम्मान देना, सुख-दु:ख में भागीदारी के साथ परिवार के सदस्यों की मदद का भाव रखना भी जरूरी है।

उल्लेखनीय है कि हर साल 15 मई को परिवार दिवस मनाया जाता है। परिवार की उपयोगिता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिन को विश्व स्तर पर मनाने का फैसला लिया था।