'आजीविका'' बना राष्ट्र का मिशन तो ग्रामीण महिलाएं तेजी से होने लगी आत्मनिर्भर

राष्ट्रीय आजीविका मिशन ने नारी शक्ति को एक नई पहचान और दिशा दी है

'आजीविका'' बना राष्ट्र का मिशन तो ग्रामीण महिलाएं तेजी से होने लगी आत्मनिर्भर

पटना/बेगूसराय, 10 मई (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आजीविका मिशन को राष्ट्रीय मिशन बनाकर ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने का मंत्र दे दिया है। अवसरों का सृजन कर गरीबी दूर करने की दिशा में पहल बन चुकी दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय आजीविका मिशन करोड़ों ग्रामीण परिवारों की समृद्धि का श्रोत बन गया।

राष्ट्रीय आजीविका मिशन ने नारी शक्ति को एक नई पहचान और दिशा दी है। इसके साथ ही छोटे-छोटे समूहों के माध्यम से प्रशिक्षित, प्रेरित, मार्गदर्शित हुई महिलाएं स्वावलंबन की नई राह पर आगे बढ़ रही हैं। 2011 में शुरू राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों को लक्ष्य समूह बनाकर दायरे में रखा गया था।

2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बनी सरकार ने योजना का आकलन किया तो उसका दायरा भी बढ़ाया। नाम बदलकर दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) किया। अब सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना 2011 के डेटाबेस के अनुसार कम से कम एक तरह के अभाव वाले सभी परिवारों को मिशन के लक्ष्य समूह में शामिल कर लिया गया।

इससे महिला स्वयं सहायता समूहों की संख्या तेजी से बढ़ी। तब से अपने नाम और लक्ष्य को चरितार्थ कर रहा यह मिशन समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रहा है। आर्थिक प्रगति के कारण महिलाएं और उनका परिवार गरीबी से बाहर आने लगा है, उनके जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार हो रहा है। मिशन की आधारशिला समुदाय आधारित है और ग्रामीण महिलाएं इसके मूल में हैं।

मिशन ने महिला सशक्तीकरण के लिए एक बड़ा मंच प्रदान किया है। इसकी 2011 से 2014 तक की प्रगति को देखें तो पांच लाख स्वयं सहायता समूह बने थे और सिर्फ 50-52 लाख परिवारों को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा गया था। लेकिन 2014 के बाद से इसमें क्रांतिकारी परिवर्तन आया। पिछले नौ वर्षों में स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने में केंद्र सरकार ने हर प्रकार से मदद की है।

प्रधानमंत्री के इस योजना के प्रति विजन और लक्ष्य है कि हर ग्रामीण परिवार से कम से कम एक महिला इस अभियान से जुड़े। इसके लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह पहल कर रहे हैं। जिसके कारण नौ मई 2023 तक सदस्यों की संख्या 9.09 करोड़ को पार कर गई। बैंक लिंकेज 6.57 लाख करोड़ हो गया, एनपीए 1.85 प्रतिशत है। लखपति दीदी की संख्या 1.24 करोड़ हो गई तथा यह आंकड़ा प्रत्येक दिन तेजी से बढ़ रहा है।

बात बेगूसराय की करें तो यहां खेती, किसानी एवं व्यवसाय से जुड़कर तीन लाख 23 हजार 664 महिलाओं ने 27 हजार से अधिक स्वयं सहायता समूह बनाकर कई कीर्तिमान स्थापित किया। इन्होंने 110 करोड़ रूपये की बचत की हैं। इससे इन महिलाओं की दुनिया ही बदल गई है। इन तीन लाख से ज्यादा महिलाओं ने अपनी क्षमताओं को विकसित करने के लिए कृषि एवं गैर कृषि क्षेत्र में अपनी अभिरूची के अनुसार क्षेत्र चुना।

बेरोजगार का दंश झेलते हुए गृहिणी बनकर घर में बैठी महिलाएं एक तरफ जहां खुद को स्वावलंबी बना रही हैं। वहीं लोगों को भी रोजगार उपलब्ध करा रही हैं। कृषि एवं गैर कृषि क्षेत्र में स्वयं सहायता समूह बनाकर मधुमक्खी पालन, बकरी पालन, गो पालन के साथ साथ दीदी की रसोई का संचालन कर रहीं हैं, जो काफी लाभप्रद साबित हो रहा है। अचार, सत्तू, पापड़, अगरबत्ती, नीरा, मूर्ति कला, ग्रामीण कला सहित अन्य माध्यमों से खुद आर्थिक रूप से सबल हो रही है।

ये रोजगार के अवसर भी पैदा कर रही है। 2022-23 में 148 ग्राहक सेवा केंद्र के माध्यम से 60 करोड 46 लाख रुपए का लेन-देन महिलाओं ने किया है। जिससे सैकड़ों महिलाओं की मासिक आमदनी दस से 15 हजार रुपए हो गया। सदर अस्पताल, बरौनी रिफाइनरी टाउनशिप अस्पताल, आवासीय अनुसूचित जाति जनजाति विद्यालय, तेघड़ा अनुमंडलीय अस्पताल सहित पांच दीदी की रसोई का संचालन किया जा रहा है। जहां से 31 मार्च तक में एक करोड़ से अधिक का कारोबार हुआ है।

525 महिलाओं ने जिला में मधुमक्खी पालन कर 18 क्विंटल मधु तैयार किया, जिससे उनकी अच्छी आमदनी हुआ। बलिया, साहेबपुर कमाल, बखरी, बरौनी एवं गढ़पुरा प्रखंड के विभिन्न हिस्सों में ग्रामीण बाजार लगाकर करीब 45 लाख अर्जित किया गया। हरित खाद के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए भी इस मिशन से जुड़ी महिलाएं आगे आई। 244 दीदियों को हरित खाद बनाने के लिए प्रेरित किया गया तो करीब 250 टन हरित खाद बन चुका है।

केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने आजीविका के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाया है। बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाएं आजीविका से जुड़कर रोजगार खोजने वाली नहीं, रोजगार देने वाली बन रही है। ग्रामीण महिलाओं ने अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दिया है। अब जीविका से जुड़ी प्रत्येक दीदी की आय एक लाख करने के लक्ष्य पर कार्य किया जा रहा है। महिलाओं को प्रशिक्षण, बैंक ऋण, बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में लगातार कार्य किए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि जीविका से जुड़ी महिलाएं ना सिर्फ अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव कर रही है। बल्कि, इन्होंने सामाजिक संरचना को भी मजबूत करने में बड़ी पहल की है। स्वयं सहायता समूह से जो परिवर्तन प्रत्येक क्षेत्र में आ रहा है। उससे एक बेहतर समाज और सशक्त राष्ट्र बनाने में देश सफल होगा। अपने परिवार को बेहतर जीवन देने के साथ-साथ, देश के विकास को आगे बढ़ाने में जुटी करोड़ों महिलाएं आज स्वयं के साथ-साथ राष्ट्र के विकास की वाहक बन गई हैं।

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