गुप्तकाशी : भगवान शिव जहां करते हैं गुप्त रूप से वास

गुप्तकाशी : भगवान शिव जहां करते हैं गुप्त रूप से वास

रुद्रप्रयाग, 29 जून (वेब वार्ता)। देश की तीसरी काशी के रूप में गुप्तकाशी का भगवान शिव से सीधा संबंध जुड़ा है। द्वापर युग में यहां से गुप्त मार्ग से भगवान शिव केदारनाथ पहुंचे थे, जिस कारण इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ा। आज भी विश्वनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ गुप्त दान का विशेष महत्व है।

रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर जिला मुख्यालय से 41 किमी की दूरी पर स्थित केदारनाथ यात्रा के मुख्य पड़ाव गुप्तकाशी में भगवान शिव की विश्वनाथ के रूप में पूजा होती है। भगवान यहां स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। शंकराचार्यकालीन मंदिर में सभामंडप के साथ गर्भगृह है, जहां स्वयंभू शिवलिंग की प्रतिदिन तीन समय पूजा-अर्चना होती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, महाभारत के युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को गुरू हत्या, गोत्र हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान शिव के दर्शन की सलाह दी थी। तब, द्रोपदी के साथ पांचों पांडव हिमालय के लिए निकल पड़े। लेकिन भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे।

जब, पांडव इस स्थान पर पहुंचते तो भगवान शिव गुप्त मार्ग से केदारनाथ निकल गए, जिस कारण इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ा। यहां पर मंदिर परिसर में मणिकर्णिका घाट भी है, जिसमें गंगा व यमुना की जलधाराएं हैं, जिनमें स्नान से पुण्य की प्राप्त होती है। 

दूसरी तरफ यह भी धार्मिक मान्यता है कि, सदियों पूर्व केदारनाथ मंदिर 400 वर्ष तक बर्फ में ढका रहा, तब भगवान केदारनाथ की पूजा-अर्चना विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी में होती थी। इसलिए, इस स्थान को छोटा केदार के रूप में भी पूजा जाता है।

मंदिर के पुजारी शिव शंकर लिंग बताते हैं कि, केदारनाथ यात्रा का पुण्य तभी पूरी तरह से प्राप्त होता है, जब श्रद्धालु वापसी में विश्वनाथ के दर्शन भी करता है। इधर, वरिष्ठ तीर्थपुरोहित व बीकेटीसी के सदस्य श्रीनिवास पोस्ती का कहना है कि, गुप्तकाशी, राष्ट्रीय पहचान वाला धार्मिक कस्बा है। इसके विकास और यात्री सुविधाओं के लिए शासन, प्रशासन और मंदिर समिति के सहयोग से हरसंभव प्रयास किया जाएगा। है।