लड़कियां भी पितृ दोष से पीड़ित हो सकती हैं?

लड़कियां भी पितृ दोष से पीड़ित हो सकती हैं?

लड़कियां भी पितृ दोष से पीड़ित हो सकती हैं। जबकि मातृका दोष से अक्सर लड़कियां पीड़ित होती हैं या 12 साल से कम उम्र के छोटे लड़के पीड़ित होते हैं। 12 साल की आयु के पश्चात लड़कों का मातृका दोष समाप्त हो जाता है। 

क्या स्त्रियों में पितृ दोष होता है? नियम की मानें तो होता है, क्योंकि नियम में स्त्री-पुरुष का भेद नहीं बताया गया। पर क्या होना चाहिए? मान लेते हैं किसी स्त्री ने अपने पूर्वजों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया (अगर शास्त्रों के अनुसार यही पितृ दोष का कारण है), तो उसके अगले जन्म में उसके प्रतिफल उससे मिलने चाहिए। ऐसे में उसका अगला जन्म कहाँ होना चाहिए? अपने ही बेटे के घर या कहीं और? अगर अपने बेटे के घर हुआ तो वह तो उस घर की बेटी हो जायेगी और देश काल पात्र के अनुसार विवाह के बाद दूसरे घर चली जायेगी। ऐसे में उसको प्रतिफल कहाँ मिले। अगर वह किसी दूसरे घर में जन्मे और फिर अपने पुराने घर में शादी करके आये तो? तब शायद हो सकता है। (यह सब काल्पनिक है ताकि हम देश काल पात्र के अनुसार समझ सकें। इसका कर्म सिद्धान्त से कोई सीधा मेल नहीं है क्योंकि वह तो ईश्वर तय करता है, हम मनुष्य नहीं)। 

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इसका मतलब स्त्री की आत्मा कम से कम पितृ दोष के कारण तो पितृ लोक से नहीं आएगी, मातृ ऋण या स्त्री ऋण से आ सकती है। तो फिर अगर किसी लड़की की कुंडली में सूर्य राहु के साथ पंचम भाव में हुआ तो? तो उसके पति के वंश वृद्धि में परेशानी आए या उसकी संतान क्रूर स्वभाव की होगी। इससे शायद उसको उसके वृद्ध अवस्था में कोई सँभालने वाला न हो। तो ये तो पितृ दोष फलित हो गया। इसका मतलब पितृ दोष तो दोनों ही की कुंडली में होता है। चाहे कोई माने या न माने। कोई कुछ भी कहे पितृ दोष लड़कियों में भी होता है। 

पितृ दोष से कैसे बचा जा सकता है?

जन्म कुंडली में दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें भाव में सूर्य, राहु या सूर्य शनि की युति स्थित हो तो यह पितृदोष माना जाता है। सूर्य यदि तुला राशि में स्थित होकर राहु या शनि के साथ युति करे तो अशुभ प्रभावों में और ज्यादा वृद्धि होती है। इन ग्रहों की युति जिस भाव में होगी उस भाव से संबंधित व्यक्ति को कष्ट और परेशानी अधिक होगी तथा हमेशा परेशानी बनी ही रहेगी। लग्नेश यदि छठे, आठवें, बारहवें भाव में हो और लग्न में राहु हो तो भी पितृदोष बनता है।
 पितृदोष को खत्म करने के लिए हर अमावस्या पर अपने पूर्वजों और पितरों के नाम से जितना हो सके लोगों को दवा वस्त्र भोजन का दान करें।

पितृ दोष क्या होता है और उसके होने से क्या नुकसान और तकलीफें हो सकती हैं?

पीढी के अन्दर किसी का अकाल मर जाना या पीढी में किसी भी मरे हुए का तृपण ना होना, पिण्डदान ना हो पाना या किसी भी मरे हुए का कोई काम अधूरा रह जाए तब पितृदोष बन जाता है। 

पितृ दोष कैसे पहचानें एवं पितृ दोष कैसे दूर करें?

ब्रह्म पुराण में वर्णित है कि आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की मृत्यु के दिन यमराज भगवान सभी आत्माओं को स्वतंत्रता प्रदान करते हैं ताकि वे श्राद्ध के अवसर पर अपने बच्चों द्वारा बनाए गए भोजन को स्वीकार कर सकें और खा सकें। 
ब्रह्म पुराण में वर्णित है कि आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन जो लोग अपने पितरों के लिए श्राद्ध नहीं करते हैं, वे वही हैं जो पितृ दोष के शाप से पीड़ित हैं क्योंकि उनके पितर क्रोधित हो गए। 

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