बहुत याद आएंगे सलीम दुर्रानी

आर.के. सिन्हा

बहुत याद आएंगे सलीम दुर्रानी

सलीम दुर्रानी के बीते रविवार को निधन से भारत ने अपना 1960 और 1970 के दशकों के एक बेहद लोकप्रिय और लाजवाब क्रिकेटर खो दिया। सलीम दुर्रानी ने गुजरात के जामनगर में आखिरी सांस ली। सलीम दुर्रानी जब मैदान में होते थे, तो कोई भी लम्हा नीरस नहीं होता था। सलीम दुर्रानी के लिए मशहूर था कि वे दर्शकों की मांग पर छक्का मारते थे। उन्हें भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल हरफनमौला क्रिकेटर माना जाता था। दर्शकों की छक्के की मांग को वे फौरन पूरा करते थे। वे राजधानी में सालों राजस्थान की तरफ से रणजी ट्रॉफी के मैच खेलने के लिए करनैल सिंह स्टेडियम में आया करते थे। राजस्थान की उस दौर की टीम में हनुमंत सिंह, लक्ष्मण सिंह तथा कैलाश गट्टानी जैसे स्टार प्लेयर होते थे। हनुमंत सिंह तो सेंट स्टीफंस कॉलेज के स्टूडेंट रहे थे। पर सलीम दुर्रानी की लोकप्रियता के सामने बाकी सब उन्नीस थे। उनकी बेखौफ बल्लेबाजी को देखने के लिए भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान लाला अमरनाथ विशेष रूप से स्टेडियम में आया करते थे। लाला अमरनाथ करनैल सिंह स्टेडियम के पीछे पचकुइयां रोड में रेलवे के बंगले में रहा करते थे। उन्हें घर से वसंत लेन होते हुए स्टेडियम पहुंचने में पांच मिनट से अधिक नहीं लगते थे। लाला अमरनाथ कहते थे कि सलीम दुर्रानी की बैटिंग देखकर दिल खुश हो जाता है। उन्हें दर्शकों का भरपूर प्यार मिलता था। उन्हें देखने और उनके आटोग्राफ लेने वालों की लंबी लाइन होती थी।

सलीम दुर्रानी ने भारत के लिए अपना पहला टेस्ट मैच पहली जनवरी, 1960 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ब्रेबोर्न स्टेडियम में खेला था। दुर्रानी ने लगभग 13 साल क्रिकेट खेला और भारत का जोरदार प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान उन्होंने खेले गए 29 टेस्ट में 25.04 की औसत से बल्लेबाजी करते हुए 1202 रन बनाए, जिसमें उनके बल्ले से एक शतक और सात अर्धशतक थे। वह एक ऐसे बल्लेबाज थे जो फैंस की मांग पर छक्का लगाया करते थे। इसके अलावा सलीम दुर्रानी ने गेंदबाजी में भी अपना खूब नाम किया है। उन्होंने अपने इंटरनेशनल करियर में 75 विकेट भी झटके हैं। वह एक लेफ्ट आर्म स्पिन गेंदबाज थे। सलीम दुर्रानी ने भारत का सिर्फ टेस्ट क्रिकेट में ही प्रतिनिधित्व किया है।

सलीम दुर्रानी ने भारत को साल 1971 में वेस्टइंडीज की सरजमीं पर पहली टेस्ट जिताने में अहम रोल निभाया था। पोर्ट ऑफ स्पेन में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच में कुछ गेंदों के अंदर ही क्लाइव लॉयड और कप्तान गैरी सोबर्स को सस्ते में आउट कर दिया था। उस मैच की दूसरी पारी में उन्होंने 17 ओवर में सिर्फ 21 रन दिए थे। सलीम दुर्रानी 1961-62 में इंग्लैंड के खिलाफ मिली टेस्ट सीरीज जीत के हीरो रहे थे। उन्होंने कोलकाता और चेन्नई में खेले गए टेस्ट मैच में आठ और 10 विकेट हासिल किए थे। सलीम दुर्रानी साल 2005 से 2007 के बीच लगातार दिल्ली आने लगे थे। वे वसंत कुंज के एक फ्लैट में रहा करते थे। दरअसल यहां पर उनके नाम पर एक क्रिकेट चैंपियनशिप आयोजित हुई थी। तब उन्हें आयोजकों ने दिल्ली बुलाकर वसंत कुंज में रहने को फ्लैट दे दिया था। सलीम दुर्रानी दोस्ताना किस्म के इंसान थे। अमूमन उनकी शामें प्रेस क्लब में ही गुजरती थीं। वहां पर उन्हें दोस्त घेरे रहते। वे कैरम भी खेलते और आमतौर पर जीत जाते। उनके पास क्रिकेट की दुनिया से जुड़े तमाम किस्से थे। पर वे राजधानी में क्रिकेट कोचिंग के किसी भी प्रस्ताव को मानने के लिए तैयार नहीं होते थे। यह बात समझ नहीं आई कि सलीम भाई ने कभी कोचिंग क्यों नहीं की। सलीम दुर्रानी फक्कड़ किस्म के मनुष्य थे। उनके पुराने दोस्तों को याद आ रहे हैं उनके साथ गुजारे यादगार लम्हे। वे प्रेस क्लब में हमेशा बिल देने की जिद करते थे। फिर खुद ही अपने हाथ खींच लेते थे। बाद में बड़ी ही मासूमियत से कहते थे- ‘अच्छा हुआ बिल आपने दे दिया। मेरे पास तो पैसे हैं ही नहीं।’

सलीम दुर्रानी का जन्म 11 दिसंबर 1934 को हुआ था। उनका जन्म स्थल अफगानिस्तान की राजधानी काबुल था। लेकिन कुछ ही समय बाद परिवार आठ माह के सलीम दुर्रानी को लेकर पाकिस्तान के कराची में आकर बस गया था। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद परिवार भारत में आ गया। उनके पिता अब्दुल अजीज भी एक बेहतरीन क्रिकेटर थे। उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व दिग्गज बल्लेबाज हनीफ मोहम्मद को भी कोचिंग दी थी।

घरेलू क्रिकेट में सलीम दुर्रानी ने सौराष्ट्र (1953) से शुरुआत की थी। फिर वह 1954 से 1956 तक गुजरात की ओर से खेले। तत्पश्चात लम्बे समय तक (1956 से 1978 ) राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया था। दुर्रानी फैंस के बीच काफी पॉपुलर थे, इसका नजारा साल 1973 में इंग्लैंड के खिलाफ कानपुर टेस्ट में देखने को मिला। उनको प्लेइंग इलेवन में शामिल नहीं किया गया।इसके बाद फैंल ने मैच के दौरान साइन बोर्ड पर 'नो दुर्रानी नो टेस्ट' लिखकर इसका विरोध किया।

सलीम दुर्रानी का व्यक्तित्व सुदर्शन था। आकर्षक लगने वाले, खुशमिजाज व्यक्तित्व के धनी सलीम दुर्रानी ने बॉलीवुड फिल्म में भी अपना दांव लगाया था। 1973 में सलीम दुर्रानी ने 'चरित्र' नाम की एक फिल्म में एक्टिंग की थी। इस फिल्म में सलीम दुर्रानी ने उस समय की स्टार अभिनेत्री परवीन बॉबी के साथ काम किया था। हालांकि फिल्म पिट गई थी। सलीम दुर्रानी आखिरी दिनों में आर्थिक संकट स जूझ रहे थे। उनके पास भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की पेंशन के अलावा आय का कोई दूसरा स्रोत नहीं था। उनके करीबी कहते हैं कि सलीम दुर्रानी ने वक्त रहते पैसा सही से इनवेस्ट नहीं किया। इस कारण से उन्हें जीवन के संध्याकाल में कष्ट हुए। उन्होंने क्रिकेट को छोड़ने के बाद कहीं कोई नौकरी भी नहीं की। जाहिर है उन्हें दिक्कतें आईं। बहरहाल, सलीम दुर्रानी जैसा प्यार बहुत कम खिलाड़ियों को अपने चाहने वालों से नसीब होता है। भारतीय क्रिकेट के चाहने वालों के दिलों में वे हमेशा जिंदा रहेंगे।

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

Tags: