अजब-गजब : एक ऐसा गाँव जहाँ है दुर्योधन और कर्ण के मंदिर, सुबह-शाम की जाती है पूजा

अजब-गजब : एक ऐसा गाँव जहाँ है दुर्योधन और कर्ण के मंदिर, सुबह-शाम की जाती है पूजा

महाभारत में नकारात्मक किरदार माने जाते हैं दुर्योधन, कर्ण ने निभाई थी दुर्योधन से मित्रता

महाभारत और उससे जुड़े पात्रों के बारे में हम सभी जानते हैं. खासकर कौरवों और पांडवों के बारे में हर कोई जानता है. कौरवों के प्रमुख दुर्योधन की भूमिका एक खलनायक की तरह थी। मामा शकुनि की सलाह मानने वाले दुर्योधन के घमंडी, जिद्दी और ईर्ष्यालु स्वभाव के कारण पड़वों को युद्ध लड़ना पड़ा। ऐसे में शायद ही कोई होगा जो दुर्योधन को सही मानता होगा। इस पर भी उसकी पूजा करना तो बहुत दूर की बात है। पर आश्चर्य की बात ये है कि एक ऐसा मंदिर स्थित है जहाँ दुर्योधन की पूजा होती है।

इस कारण बना है दुर्योधन का मंदिर

आपको बता दें कि उत्तराखंड राज्य में हरिद्वार से 20 किलोमीटर दूर नेतवार गांव में लोग सुबह और शाम दुर्योधन के मंदिर में पूजा करते हैं। दुर्योधन स्वयं एक बुद्धिमान और बहादुर व्यक्ति था। उसे यह भी समझ थी कि धर्म और अधर्म किसे कहते हैं। हालाँकि, वह धर्म के बारे में भूल गया क्योंकि वह मामा शकुनी जैसे सलाहकारों से घिरा हुआ था। धर्म की समझ होने के बाद भी वह उसका अभ्यास नहीं कर सका। इसी पहलू को ध्यान में रखते हुए गांव में दुर्योधन का मंदिर बनाया गया है।

कोई नहीं जानता इस मंदिर का इतिहास

यह मंदिर कितना पुराना है यह कोई नहीं जानता। जब भी किसी बाहरी को दुर्योधन के मंदिर के बारे में पता चलता है तो वे भी उत्सुकतावश मंदिर में आते हैं। ऐसा ही एक मंदिर दुर्योधन के मित्र और माता कुंती के बड़े बेटे कर्ण का भी है। ये जानते हुए भी कि कौरव अधर्म कर रहे हैं कर्ण ने अपनी मित्रता निभाने के आड़ में  कौरवों के पक्ष में लड़ाई लड़ी। कर्ण भी महाभारत का एक पात्र है जिसके पास मार्शल आर्ट और बुद्धिमत्ता थी जो किसी और के पास नहीं थी। यदि कर्ण ने पांडवों का साथ दिया होता तो वह बहुत ही सम्मानीय पात्र  होता। महाभारत में उसकी भूमिका कुछ और होती। कर्ण का मंदिर हर की दून से 12 किमी दूर सोर नामक गांव में स्थित है। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है इसी देवभूमि में दुर्योधन और कर्ण की भी पूजा की जाती है।