सूरत : मकरसंक्राति पर पतंग और डोर के साथ इन अन्य एसेसरीज की भी डिमांड
आकाश रंगबेरंगी पतंगों से छा जायेगा, पुराने त्यौहार को नये जमाने के साधनों के साथ मनाया जायेगा
त्यौहार हमारे जीवन में नई जान फूंकते हैं। हमारे यहां हर उत्सव का धार्मिक महत्व भी होता है। इसलिए कई त्योहार हजारों सालों से मनाए जाते रहे हैं। हालांकि उन्हें मनाने के तरीके समय के साथ बदल गए हैं, लेकिन उत्साह वही बना हुआ है।
गुजरात और खास कर सूरत में मकरसंक्रांति यानि उत्तरायण पर पतंगबाजी की परंपरा है। पतंगें उड़ाना एक सामान्य का सबब हो सकता है, लेकिन इसमें भी समय के साथ नई-नई चीजें जुड़ती रही हैं। आइए जानते हैं कि उत्तरायण पर पतंगबाजी के साथ किन-किन एसेसरीज का लोग उपयोग करते हैं और उनमें समय के साथ क्या-क्या बदलाव आया है।
चरखी
वर्षों पहले केवल लकड़ी की सादी चरखी हुआ करती थी। लेकिन एक त्यौहार पर चरखी से डोर खतम हो जाती और अगले वर्ष फिर उसे खोजते तो लकड़ी की चरखी टूटी हुई मिलती। धीरे-धीरे स्टील और प्लास्टिक की चरखी का चलन बढ़ गया और अब इस साल इलेक्ट्रिक चरखी बाजार में आ गई है। अब पतंग कट जाए तो हाथों से डोर चरखी में लपेट ने के बजाय स्विच दबाते ही चरखी घूमने लगती और मांझा उसमें लिपटता चला जाता है।
चश्मे
उत्तरायण मनाने के लिए उत्सव प्रेमी सुबह से ही छत पर पहुंच जाते हैं। हालांकि, हवा और धूप में पूरे दिन छत पर रहने में मदद के लिये चश्मा पसंदीदा एसेसरीज़ रही है। पहले के ज़माने में व्यक्ति सिर्फ धूप से बचने और थोड़ा स्टाइलिश दिखने के लिए गॉगल्स पहनता था। हालांकि, आज लोग फैशन और ट्रेंड को ज्यादा महत्व देते हैं। इसलिए अलग-अलग स्टाइल और शेप के गॉगल्स पसंद किये जाते हैं।
टोपी
अगर आपको पतंग उड़ाना बहुत पसंद है तो आपको सूरज की परवाह क्यों करनी चाहिए? इसलिए सूरज की रोशनी पतंगबाजी में बाधा न आए, इसके लिए लोग टोपी पहनकर पतंगबाजी का लुत्फ उठाते हैं। हालांकि अब टोपी भी पुराना फैशन हो गया है और लोग अब सन हैट, काउबॉय हैट, पनामा हैट, बेसबॉल कैप, बोटर हैट, बकेट हैट , फैन कैप जैसी विभिन्न शैलियों की टोपियां पहनते हैं। इसके अलावा हाथों से पेंट की हुई टोपियां भी इन दिनों खूब चलन में हैं।
मांझा
पहले रस्सी को हाथ से रगड़ा जाता था और अनुपात से लपेटा जाता था। एक व्यक्ति डोरी को हाथ से घुमाता और दूसरा लपेटता। हालाँकि, समय के साथ मशीनों का उपयोग मांझा तराशने के लिये किया जाता है। पहले सिर्फ कच्ची और पक्की डोर मिलती थी और वह भी खासकर गुलाबी रंग की। लेकिन अब कई रंगों के साथ-साथ तिरंगा पसंदीदा रंग बन गया है। हालांकि, जिस प्रकार लोगों को पतंगें काटने में ही रुचि होती है, तो उसे देखते हुए बिते कुछ वर्षों से चीनी मांझा या नायलॉन डोर का उपयोग बढ़ा है। लेकिन सरकार ने अब उसे प्रतिबंध कर दिया गया है क्योंकि ये चीनी मांझे कभी-कभी मनुष्यों और जानवरों के लिए घातक साबित होते हैं।
पिपोडी, सीटी
कुछ साल पहले की बात करें तो बच्चे मनोरंजन के लिए पिपोड़ी इस्तेमाल करते थे जबकि पतंगबाज चिल्ला कर अपनी उत्तेजना जाहिर करते थे। लेकिन अब विभिन्न प्रकार की आवाज वाली सीटियां पतंग प्रेमियों के उत्साह को बढ़ाने के लिए बाजार में आ गई हैं।
नकाब, मास्क
वैसे भी उत्तरायण के दौरान डोर कहीं भी गिर जाती है और कभी-कभी गंभीर चोटों का सबब बन जाती है। कई बार पीड़ित के चेहरे पर चोटों के निशान हमेशा के लिए रह जाते हैं। इसलिए मास्क पहने जाते हैं। उसमें भी फिल्मी कलाकारों और राजनीतिज्ञों के चेहरे वाले प्लास्टिक के मास्क चलन में हैं।
पतंग
आज पतंगों में पहले की तुलना में अधिक से अधिक किस्में उपलब्ध हैं। अब बाजार में अलग-अलग आकार की पतंगें और गुब्बारे मिले हैं। पुराने ज़माने में फटी हुई पतंगों में चावल की लुग्दी लगाते थे, लेकिन अब लोग गोंद से भी चिपका देते हैं।
सुरक्षा छड़, सेफ्टी बेल्ट
सुरक्षा टेप का उपयोग शरीर के किसी भी अन्य भाग की तुलना में हाथों की चोटों को रोकने और कॉर्ड को लगातार रगडऩे के लिए किया जाता था, लेकिन अब सुरक्षा दस्ताने, दस्ताने आदि हाथों पर पहनने के लिए उपलब्ध हैं जो पहले से बेहतर सुरक्षा प्रदान करते हैं ।