गुजरात : दान-पुण्य के लिए श्रेष्ठ और गौरवशाली माना गया है मकरसंक्राति का महापर्व

गुजरात : दान-पुण्य के लिए श्रेष्ठ और गौरवशाली माना गया है मकरसंक्राति का महापर्व

गुजरात में जहां इस दिन पतंगबाजी की परंपरा है, वहीं दूसरी ओर श्रद्धालु अत्र, तत्र और सर्वत्र जीवनदायिनी गतिविधियों में लिप्त नजर आते हैं

सभी धर्मों में दान-पुण्य के लिए श्रेष्ठ और गौरवशाली माना गया है मकरसंक्राति का महापर्व। गुजरात में जहां इस दिन पतंगबाजी की परंपरा है, वहीं दूसरी ओर श्रद्धालु अत्र, तत्र और सर्वत्र जीवनदायिनी गतिविधियों में लिप्त नजर आते हैं। आबोल पक्षियों के लिए दाना, पानी की विशेष व्यवस्था की जाती है। इसके साथ ही भूदेवों, संतों, महंतों को वस्त्र और अनाज दान करने की भी अनुपम महिमा बताई गई है।

मकरसंक्रांति का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य के विस्तार की दिशा दो अयन, छह ऋतुएं और बारह मास हैं। वर्ष भर में सूर्य लगभग एक माह एक राशि में व्यतीत करता है और बारह राशियों में भ्रमण करता है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्राति कहलाता है। वर्तमान में सूर्य धन राशि में है इसलिए इसे धनारक कहा जाता है। 14 जनवरी शनिवार को सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करेगा। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को शुभ माना गया है। इसीलिये महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह की मृत्यु दक्षिणायन में हुई थी। लेकिन चूंकि वह काल शुभ नहीं था और इच्छामृत्यु भीष्म के लिए वरदान थी, इसलिए वे उत्तरायण तक दर्दनाक बाणों की शैय्या पर रहे। 

मकरसंक्रांति पर श्रद्धालुओं का क्रम

मकर संक्रांति के दिन सूर्य के गोचर से लगभग 10 घंटे तक की अवधि दान, दान और जीवनदायी गतिविधियों के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। गुजरात भर में श्रद्धालू इस दिन पवित्र नदी, जलाशय में स्नान कर पूजा-पाठ, तिल, गुड़, अनाज, गरीबों व ब्राह्मणों को गर्म वस्त्र दान करते हैं। साथ ही भूदेवों, संतों, महंतों को पीतांबरी धोती, शॉल, गमछा, राशिवार रंगे कपड़े, राम नाम लिखे शॉल, मुकुट व पैंट शर्ट दान में बांटे जाते हैं। गाय आदि को दाना, पानी, चना, पशु-पक्षियों को चारा देकर उनकी पूजा कराकर पुण्य कमाया जाता है। इसके साथ ही उत्तरायण के अवसर पर सुबह-सुबह ऐतिहासिक और प्राचीन तीर्थों के पास नदी, जलाशय में स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ता है।

सात धान खिचड़ा का सर्वोपरि महत्व

उत्तरायण में वर्षों से खिचड़ा का सर्वाधिक महत्व रहा है। ज्वार, चावल, मूंग, बाजरी, उड़द, चना और छोले को एक साथ मिलाकर सात अनाजों का खिचड़ो नमकीन और मीठा दो प्रकार से बनाया जाता है। बहन-बेटी को पका हुआ खिचड़ो भेजने की अनूठी परंपरा सालों से चली आ रही है। कुछ परिवार अपने रिश्तेदारों को भी खिचड़ो भेजते हैं। भाई बहन के घर खिचड़ो देने जाता है। उत्तरायण में खिचड़ो देने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि बेटी या बहन का घर धन-धान्य से भरपूर हो, भाई-बहन का रिश्ता भी बना रहता है।