यूक्रेन पर रशिया की चढ़ाई का पश्चिमी देशों ने ऐसा जोरदार प्रतिकार किया है कि पुतिन ने सोचा भी नहीं था!
By Loktej
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रशिया और यूक्रेन की जंग अब अपने चरम पर पहुंचती दिख रही है। यूरोपीय देशों और नाटो के बढ़ते विस्तार पर लगाम लगाने के लिए रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भले ही यूक्रेन पर चढ़ाई करके अपना शक्ति प्रदर्शन किया हो लेकिन अब जो हालात उभर कर सामने आ रहे हैं उससे लगता है कि पुतिन का गणित फेल हो गया है।
यूक्रेन पर आक्रमण के बाद ऐसा लग रहा था कि नाटो समूह के देश यूक्रेन के समर्थन में आएंगे और रूस का सैन्य प्रतिकार करेंगे। लेकिन अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों ने रूस के दुस्साहस की निंदा तो अवश्य की लेकिन किसी प्रकार के सैन्य प्रतिकार से दूर रहे। सरसरी तौर पर ऐसा लगा मानो वे पुतिन का सामना नहीं करना चाह रहे हैं और इन सभी देशों ने यूक्रेन को धोखा दिया है, उसे रूस से जूझने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है। किंतु वर्तमान घटनाक्रमों को देखने के बाद अब लग रहा है की यूक्रेन पर चढ़ाई के रूस के दुस्साहस के बाद पश्चिमी देशों ने सैन्य प्रतिकार की जगह आर्थिक जंग छेड़ कर पुतिन को इतना बड़ा नुकसान पहुंचा दिया है, जिसके बारे में उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। हालात ऐसे बन रहे हैं कि अब रूस दो मोर्चों पर जंग लड़ रहा है। पहला मोर्चा है यूक्रेन में भेजे गए अपने सैनिकों को सुरक्षित रखना और मामला ऐसा दिखाना कि लगे कि उनकी हार नहीं हुई है. दूसरी ओर पश्चिमी देशों द्वारा लादे गए आर्थिक प्रतिबंधों के कारण रूस की इकोनामी को जो नुकसान पहुंच रहा है उसे संभालना।
अमेरिका और यूरोप के साथी देशों ने सबसे पहले तो रूस को स्विफ्ट नामक अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग सेवा से अलग कर दिया है। यानी अब रूस की कंपनियों और लोगों के लिए दुनिया के देशों के साथ व्यापार करना काफी कठिन हो जाएगा। आयात-निर्यात के मसले अटक कर रह जाएंगे। ऐसे प्रतिकूल हालात में रूस की सेंट्रल बैंक अब आर्थिक स्थिति को संभालने की कोशिश कर रही है। सेंट्रल बैंक ने ब्याज की दरें बढ़ाकर दोगुनी कर दी है। लेकिन रूस में जमीनी तौर पर इसका कोई समाधान होता नहीं दिख रहा है। आम उपभोग की वस्तुओं के दाम बढ़ रहे हैं और रूस के लोग बैंकों और एटीएम मशीनों के सामने नगद निकासी के लिए कतारें लगा रहे हैं। नागरिकों के पास बचत की राशि कम है और रूस की करेंसी रूबल के अवमूल्यन के बाद महंगाई भी लगातार बढ़ रही है।
पश्चिमी देश यहीं पर नहीं रुके हैं। कई देशों ने रूस के विमानों को अपनी वायु सीमा में प्रवेश नहीं करने देने का फरमान जारी कर दिया है। ऐसे में रूस के लोगों का अन्य देशों में आना-जाना भी बंद हो जाएगा। रूस के विमान भी अपने हवाई अड्डे से उड़कर अब कहां जाएंगे? रूस के धन्ना सेठों को भी अब अपने ही देश में रहना होगा। वही रूस के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री सहित बड़े लोगों की संपत्तियां भी जप्त करने के आदेश यूरोपीय यूनियन और अमेरिका के अलावा स्विट्जरलैंड ने दे दिए हैं।
रूस के नागरिक यूक्रेन के खिलाफ छेड़ी गई जंग से संतुष्ट नहीं है। अधिकांश लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर उनके देश ने यूक्रेन के खिलाफ यह जंग छेड़ी ही क्यों है? लोग विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं लेकिन एक अलोकतांत्रिक देश में ऐसे प्रदर्शन मायने भी नहीं रखते।
जानकारों का यह भी मानना है कि राष्ट्रपति पुतिन का जो स्वभाव है, उसे देखें तो वह एक बार जिस नीति पर चल पड़ते हैं उसके बाद उससे उलट वे काम नहीं करते। ऐसे में यदि आने वाले समय में वह यूक्रेन के प्रति अपनाए गए अपने रवैये में बदलाव नहीं करते हैं और अमेरिका सहित यूरोपीय देशों की पाबंदियां लागू रहती है तो आने वाले समय में रशिया के लिए स्थिति बहुत ही विकट हो जाएगी। रशिया के पास डॉलर और अन्य विदेशी करेंसी के रूप में रिजर्व अवश्य है लेकिन आर्थिक प्रतिबंधों की स्थिति में उस रिजर्व का कहां कितना उपयोग हो पाएगा, एक बड़ा प्रश्न है। सेंट्रल बैंक रूबल के अवमूल्यन के बाद अधिक करेंसी छाप अवश्य सकती है, लेकिन उसकी भी एक सीमा है। ऐसे में रशिया और यूक्रेन के बीच जंग सतही तौर पर भले ही 2 देशों की सेनाओं का आमना- सामना लगता हो, लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद वर्तमान हालात ऐसे 'तृतीय विश्वयुद्ध' के प्रतीत हो रहे हैं, जहां सैन्य की जगह आर्थिक जंग शुरू हो चुकी दिख रही है. यूक्रेन के वर्तमान झगड़े में केवल दो देश नहीं है, अपितु अमेरिका और यूरोपियन यूनियन सहित कई देश परोक्ष रूप से रशिया के खिलाफ हो चुके हैं।