किसी भी महिला को काम करने को मजबूर नहीं किया जा सकता : हाई कोर्ट

भले ही महिला योग्य हो उसके बाद भी काम करना या न करना उसका खुद का निर्णय होना चाहिए

फैमिली कोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाले व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी महिला के महज शिक्षित होने के कारण उसे जीविका चलाने के लिए काम करने को मजबूर नहीं किया जा सकता है। इस मामले में फैमिली कोर्ट ने पत्नी को हर महीने 5,000 रुपये और अपनी 13 वर्षीय बेटी के भरण-पोषण के लिए 7,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था।
आपको बता दें कि अब इस मामले में अगली सुनवाई अगले हफ्ते की जाएगी। दो दिन पहले हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि हर एक महिला के पास 'काम करने या घर पर रहने का विकल्प है। भले ही महिला योग्य हो उसके बाद भी काम करना या न करना उसका खुद का निर्णय होना चाहिए। इसके लिए कोई उसे बाध्य नहीं कर सकता। इस पर कोर्ट ने कहा, "हमारे समाज ने अभी भी घर की महिलाओं को आर्थिक योगदान देना चाहिए। यह काम करने के लिए एक महिला की पसंद है। हाई कोर्ट की महिला जज ने अपना उदाहरण देते हुए कहा, "आज मैं इस अदालत की न्यायाधीश हूं। कल, मान लीजिए मैं घर पर बैठ सकती हूं। आप क्या कहेंगे कि मैं न्यायाधीश बनने के योग्य हूं और घर पर नहीं बैठना चाहिए?"
बता दें कि सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मुवक्किल की पत्नी पढ़ी-लिखी और काम करने योग्य है तो ऐसे में फैमिली कोर्ट द्वारा उसके मुवक्किल को भरण-पोषण का भुगतान करने वाला दिया गया निर्देश गलत और अनुचित है। वकील के माध्यम से दायर अपनी याचिका में, व्यक्ति ने यह भी आरोप लगाया कि उसकी पत्नी के पास वर्तमान में आय का एक स्थिर स्रोत था, लेकिन उसने इस तथ्य को अदालत से छिपाया था।