इस गाँव में श्मशान की राख़ से मनाई जाती है होली, पिछले 350 सालों से चली आ रही है अनोखी परंपरा

इस गाँव में श्मशान की राख़ से मनाई जाती है होली, पिछले 350 सालों से चली आ रही है अनोखी परंपरा

दो दिनों के बाद देश और दुनिया धूमधाम से होली का त्यौहार मनाया जाएगा। हालांकि कृष्ण नागरी मथुरा, वृंदावन और बरसाना में होली का यह त्यौहार काफी पहले ही शुरू हो जाता है। काशी में भी एकादशी के दिन से ही होली का त्यौहार शुरू हो जाता है। काशी में सबसे पहले भगवान शंकर के साथ महाश्मशान पर चीता की राख़ से होली मनाने के बाद ही होली के त्यौहार की शुरुआत की जाती है। 
काशी नगरी के महाश्मशान हरीशचंद्र घाट, जहां चीता की आग कभी भी ठंडी नहीं होती। हर समय वहाँ मातम ही छाया रहता है। पूरे साल में एक दिन ऐसा आता है जब इस श्मशान पर भी खुशी दिखाई देती है। इस साल भी कल 14 मार्च को श्मशान पर राख़ से होली खेलकर होली के त्यौहार का प्रारंभ कर दिया गया है। रंग, गुलाल के अलावा राख़ से पिक्यहले 350 सालों से इस अनोखी परंपरा के तहत होली खेली जा रही है। 
इस बारे में प्रचलित मानयाता के अनुसार, एकदशी के दिन जब भगवान शंकर माता पार्वती की विदाई कर के काशी पहुंचे, तो उन्होंने वहाँ अपने गणों के साथ होली खेली। पर रंग ना होने के कारण वह राख़ के साथ ही होली खेली थी। इसी मान्यता के अनुसार हर साल फागुन एकादशी के दिन पर राख़ की होली के बाद पाँच दिन की होली मनाई जाती है। इस होली की शुरुआत आरती द्वारा की जाती है। जिसके पहले शोभायात्रा निकाली जाती है।
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