समाज के लिए मिसाल बनी इन अधिकारियों की शादी, आईपीएस तपस्या ने कन्यादान से किया मना, पिता से बोलीं- 'मैं बेटी, कोई दान की चीज नहीं!”
By Loktej
On
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की घटना, महिला आईएएस अधिकारी तपस्या परिहार की शादी आईएफएस अधिकारी गर्वित गंगवार से हुई
समाज में कभी-कभी घटित कोई घटना समाज के लोगों के लिए आदर्श बन जाता है। जब हम ऐसी घटनाओं से रूबरू होते हैं जो समाज का प्रतिबिंब होती हैं, तो हमें खुशी होती है। खासकर जब हम देखते हैं कि महिलाओं के प्रति हमारा नजरिया बदल रहा है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में एक आईएएस और एक आईएफएस अधिकारियों की शादी हुई थी। महिला आईएएस अधिकारी तपस्या परिहार की शादी आईएफएस अधिकारी गर्वित गंगवार से हुई। हालांकि इस जोड़े ने 6 महीने पहले शादी कर ली थी। इस शादी की खास बात यह है कि आईएएस अधिकारी ने शादी में एक मिसाल कायम की।
आपको बता दें कि हिन्दू समाज में शादी के दौरान वधु के पिता द्वारा वधु का कन्यादान करने की परंपरा है। तपस्या ने इस प्रथा को स्वीकार नहीं किया और अपने पिता को कन्यादान न करने को कहा। तपस्या ने समझाया कि मैं कोई दान करने वाली वस्तु नहीं आपकी बेटी हूं। तपस्या परिहार और गरवित गंगवार दोनों ट्रेनिंग के दौरान मिले और एक दूसरे को पसंद करने लगे। यूपीएससी परीक्षा में तपस्या परिहार ने 23वीं रैंक हासिल की है। शादी नरसिंहपुर जिले के जोवा गांव में हुई। शादी में दोनों पक्षों के रिश्तेदार और परिचित शामिल हुए थे।
तपस्या का बचपन एक संयुक्त परिवार में बड़े शौक से बीता।त पस्या बचपन से ही कन्यादान के खिलाफ थीं। उनका मानना है कि बेटी दान की चीज कैसे हो सकती है। कोई उनकी इच्छा के बिना उनका दान कैसे कर सकता है! यह बात उन्होंने अपने परिवार को बताई तो वे कन्यादान नहीं करने को राजी हो गए। उनके पति आईएफएस गर्वित गंगवार का परिवार भी उनकी बात से सहमत हो गया। तपस्या ने कहा कि जब दो परिवार आपस में मिलकर विवाह करते हैं तो फिर बड़ा-छोटा या ऊंचा-नीचा होना ठीक नहीं। क्यों किसी का दान किया जाए? जब मैं शादी के लिए तैयार हुई तो मैंने भी परिवार के लोगों से चर्चा कर कन्यादान की रस्म को शादी से दूर रखा। ओशो भक्त तपस्या के पिता विश्वास परिहार कहते हैं कि बेटे और बेटी में कोई अंतर न हो। बेटियों को दान करके उनके हक और सम्पत्ति से वंचित नही किया जा सकता। परिवार वालों ने कहा कि बेटी को हमेशा पूरे परिवार ने प्यार किया है। परिवार के सभी सदस्य खुश हैं। अभी उसकी खुशी ही हमारी खुशी है। ये बेटी को दान करके उनके हक से उन्हें वंचित करती हैं। बेटियों के मामले में दान शब्द ही उन्हें ठीक नहीं लगता।
इस बड़े फैसले के बारे में तपस्या ने कहा, "मुझे बचपन से ही ऐसी परंपरा पसंद नहीं हैं। परंपरा के नाम पर महिलाओं के खिलाफ अत्याचार ने मुझे आहत किया है। इस सब में मेरे परिवार का बहुत सहयोग रहा। मैंने अपने परिवार और अपने ससुराल को मना लिया। इस तरह हमने मिलकर कन्यादान की पुरानी परंपराओं को तोड़ दिया।"