बिना सहमति के पत्नी को गर्भवती करना भी 'वैवाहिक बलात्कार', पीड़िता को मिलेगा विशेष अधिकार

बिना सहमति के पत्नी को गर्भवती करना भी 'वैवाहिक बलात्कार', पीड़िता को मिलेगा विशेष अधिकार

इस मामले को अदालत ने गैर आपराधिक माना, पीड़ित महिला को गर्भपात के विशेष अधिकार

एक मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए पत्नी को जबरन गर्भवती करने को भी वैवाहिक बलात्कार की श्रेणी में रखते हुए ऐसे मामलों में पीड़ित महिला को 20 से 24 हफ्ते में ऐसे गर्भ को कानूनी रूप से समाप्त करवाने की अनुमति दी है।


आपको बता दें कि शीर्ष अदालत ने कहा कि बिना सहमति के गर्भवती होने वाली माहिलाओं को बलात्कार पीड़ित या रेप सर्वाइवर की श्रेणी में रखा जाएगा। वह चिकित्सीय गर्भपात कानून में उन महिलाओं की श्रेणी में आएगी जो 20-24 सप्ताह की अवधि में गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग कर सकती हैं। हालांकि कोर्ट ने इसे अपराध न मानते हुए कहा कि ये सिर्फ गर्भपात कराने तक ही सीमित रहेगा। इसे अपराध नहीं माना जाएगा, न ही इसके बारे में कोई आपराधिक शिकायत की जा सकेगी। यह फैसला इस मामले में अहम है कि सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में दंड संहिता की धारा 375 (रेप) के एक अपवाद (2) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रहा है, जो वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार के अपराध से छूट देता है।

क्या होता है वैवाहिक बलात्कार


सामान्य तौर पर बलात्कार बिना सहमति या इच्छा के खिलाफ किसी व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने को माना जाता है। विवाहोपरांत संबंध में भी, एक महिला पति द्वारा किए गए बिना सहमति संभोग के परिणामस्वरूप गर्भवती हो सकती है। इसे बलात्कार ही माना जाता है। केंद्र सरकार को इस बारे कोर्ट ने नोटिस दिया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने फैसले में कहा कि हम यह नहीं कह रहे वैवाहिक रेप अपराध है लेकिन महिला की प्रजननात्मक स्वायत्तता उसकी शारीरिक स्वायत्ता का अंग है। यदि वह गर्भ नहीं चाहती तो उसे जबरन गर्भवती नहीं किया जा सकता। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, विवाहित महिलाएं भी यौन उत्पीड़न या रेप सर्वाइवर की श्रेणी का हिस्सा बन सकती हैं। अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा एक हकीकत है और बलात्कार का रूप ले सकती है। पीठ ने कहा मौजूदा भारतीय कानूनों में पारिवारिक हिंसा के विभिन्न रूपों को पहले से ही मान्यता दी गई है।

क्या है एमटीपी एक्ट-1971


इंडियन मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (आईएमटीपी) एक्ट 1971 के अनुसार विवाहिता को गर्भधारण के 20 सप्ताह तक गर्भपात की इजाजत थी, जिसे वर्ष 2021 में इस समयसीमा को बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया। हालांकि इसके लिए दो डॉक्टरों की सहमति जरूरी है। साथ ही बलात्कार जैसे कुछ विशेष मामलों में भी गर्भपात की इजाजत मिलती है। इसमें महिला विवाहित और अविवाहित है इसका कोई बंधन नहीं होगा। 

दुनिया भर में है ऐसे नियम


दुनियाभर में महिला अधिकारों के तहत गर्भपात कानून में बदलाव भी हो रहा है। वर्ष 2000 के बाद दुनिया के 28 देशों ने गर्भपात कानून में बदलाव किया है। 24 देशों ने गर्भपात कानून में कुछ न कुछ कारण जोड़े हैं। 75 देशों में जरूरी प्रक्रिया पूरी करने पर गर्भपात की इजाजत मिलती है। यहां विवाहित और अविवाहित में कोई भेदभाव नहीं है। दुनियाभर में 50 ऐसे देश हैं जहां महिला की जान बचाने की खातिर गर्भपात की इजाजत है। युवा लड़कियों में गर्भपात अधिकरिपोर्ट के अनुसार गर्भपात की सबसे अधिक दर 20 से 24 साल की लड़कियों में थी। 20 साल की लड़कियां गर्भपात कराने के मामले में सबसे आगे थीं।