औरंगजेब ने ही दिया था काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश, इस किताब में मिला प्रमाण

औरंगजेब ने ही दिया था काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश, इस किताब में मिला प्रमाण

औरंगजेब की किताब 'मासिर-ए-आलमगिरी' से काशी विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस की जानकारी सामने आई

ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग नुमा पत्थर निकलने के बाद देश भर में राजनीति गरमा गई है। जिसके मिलने के बाद हिन्दू धर्म के लोगों का कहना है कि मस्जिद में मिला पत्थर शिवलिंग है। वहीं मुस्लिम समुदाय ने उस पत्थर को फब्बारे होने का दावा किया है। पत्थर मिलने के बाद मामला न्यायालय में पहुंच गया है और उस पत्थर को जांच एजेंसियों के हवाले करते हुए मामला न्यायलय में विचाराधीन है। ऐसे में काशी विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस के बारे में साहित्यिक प्रमाण मिल रहे हैं। लोग विभिन्न साहित्य के सहारे इस मंदिर के इतिहास को बताने की कोशिश कर रहे है। इस बीच औरंगजेब की किताब 'मासिर-ए-आलमगिरी' से काशी विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस की जानकारी सामने आई है।
इस किताब के मुताबिक, औरंगजेब ने 8 अप्रैल 1669 को बनारस में सभी पाठशालाओं और मंदिरों को तोड़ने का आदेश जारी किया था। इस किताब के अनुसार 2 सितंबर को औरंगजेब को काशी विश्वनाथ मंदिर टूट जाने की जानकारी मिल रही है। इस तथ्य के अनुसार 8 अप्रैल 1669 से 2 सितंबर 1669 के बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर को बीच तोड़ा गया था।
आपको बता दें कि मुस्ताईद खान द्वारा लिखी फारसी में लिखी गई मुगल शासक औरंगजेब की किताब 'मासिर-ए-आलमगिरी' को औरंगजेब की सबसे भरोसेमंद किताब माना जाता है। इस किताब में औरंगजेब के शासन के 1658 से लेकर 1707 तक की घटनाओं का जिक्र है। मुस्ताईद खान ने इसे 1710 ईस्वी में पूरा कर दिया था। 
सर जदुनाथ सरकार ने फारसी में लिखी गई इस किताब का अनुवाद किया था जो एशियाटिक सोसाइटी कोलकाता में भी उपलब्ध है। किताब के मुताबिक, औरंगजेब ने 8 अप्रैल 1669 को बनारस में सभी पाठशालाओं और मंदिरों को तोड़ने का आदेश जारी किया था। इसके बाद काशी विश्वनाथ मंदिर टूट जाने की जानकारी भी इस किताब में दी गई है। किताब 'मासिर-ए-आलमगिरी' का पहला भाग औरंगजेब के जिंदा रहते हुए लिखा गया था। औरंगजेब की मौत के बाद किताब को पूरा किया गया था। ब्रिटिश शासन के दौरान प्रसिद्ध इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार ने इसका अनुवाद किया था।
इस किताब के अनुसार मंगलवार 8 अप्रैल 1669 को जब ग्रहण लगा था तो प्रथा के मुताबिक, प्रार्थना सभा की गई और फिर भिक्षा का वितरण किया गया। इस दौरान जब औरंगजेब को पता चला कि बनारस में ब्राह्मण अपने गुरुकुल में अपनी झूठी किताब पढ़ाते थे। हिंदू और मुस्लिम समुदाय के छात्र दूर-दूर से इनके पास शिक्षा लेने के लिए आते थे। इसके बाद इस्लाम की स्थापना में जुटे औरंगजेब ने सभी प्रांतों के गवर्नरों को हिंदुओं (काफिरों) के स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दे दिया। साथ ही हिंदुओं के धर्म के शिक्षण संस्थानों को बंद करने को कहा।