सुप्रीमकोर्ट : पति-पत्नी के बीच तलाक का अर्थ नहीं बच्चों से भी छुटकारा, निभानी होगी पूरी जिम्मेदारी

सुप्रीमकोर्ट : पति-पत्नी के बीच तलाक का अर्थ नहीं बच्चों से भी छुटकारा, निभानी होगी पूरी जिम्मेदारी

मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

पति-पत्नी का रिश्ता सबसे खास होता है जो आपसी प्रेम, विश्वास और समर्पण पर टिका होता है। अगर इस रिश्ते में इन बातों की कमी हो तो ये रिश्ता टूट जाता है। आजकल ऐसे बहुत से मामले सुनने को मिल जाते है जहाँ पति-पत्नी अपने रिश्ते से अलग होते हुए एक दुसरे से तलाक ले लेते है। ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के समय मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति से कहा कि भले ही वो कानूनन रूप से अपनी पत्नी को तलाक देकर उससे अलग हो रहा हो पर वह अपने बच्चों से अलग नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी एक दुसरे को तलाक दे सकते हैं, लेकिन अपने बच्चों को तलाक नहीं। इसके साथ ही अदालत ने समझौते के तौर पर उसे चार करोड़ रुपये के भुगतान का आदेश दिया।
आपको बता दें कि मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि भले ही आप अपनी पत्नी या साथी को तलाक दे सकते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप अपने बच्चों को भी तलाक देकर उनसे अलग हो रहे है। आपने ही उन्हें जन्म दिया है इसलिए आपको ही उनकी देखभाल करनी होगी। पत्नी और नाबालिग बच्चों के गुजारे के लिए आपको पैसे देने होंगे।
जानकारी के अनुसार शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत2019 से ही अलग-अलग रह रहे दंपती की आपसी सहमति से तलाक को भी मंजूरी दे दी हैं। हालांकि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने कहा कि दंपती के बीच अन्य शर्तों का पालन समझौते के अनुरूप किया जाएगा। आपको बता दें कि इस सुनवाई के दौरान दोनों पक्ष एक आपसी समझौते पर पहुंचे हैं लेकिन महामारी के चलते उनके कारोबार को भारी नुकसान झेल रहे पति के लिए कोर्ट द्वारा तय राशी के भुगतान के लिए पति के वकील ने कुछ और समय की मांग की है। हालांकि कोर्ट ने आर्थिक तंगी के तर्क को बेबुनियाद बताते हुए तलाक से पहले भुगतान की बात कही है।