कोरोना की सीख; समृद्धि पैसों से नहीं स्वास्थ्य से है

कोरोना से सिखाया “पहला सुख निरोगी काया” का सही अर्थ

इन दो सालों के अंदर कोरोना महामारी ने मानव जीवन को आर्थिक, सामाजिक, मानसिक और अन्य सभी रूप से काफी नुकसान पहुंचाया है। साथ ही कोरोना ने दुनिया को अलग तरीके से सोचने और जीने पर मजबूर कर दिया है। इन सब के बीच जो बात खुलकर सामने आई हैं कि पैसा ही सबसे बड़ी दौलत नहीं हैं। 
हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार, धनवान लोग भी इस बात से सहमती रखते हैं कि पैसे ही सबसे महत्वपूर्ण नहीं और इसके साथ सब कुछ का आनंद लेने की संभावना सच नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे समृद्ध और प्रैक्टिकल देश में भी रिश्ते और स्वास्थ्य के प्रति लोगों के दृष्टिकोण नाटकीय रूप से बदल गए हैं। लोग अब मानाने लगे हैं कि स्वास्थ्य ही तो असली समृद्धि है। 
जानकारी के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में निवेशकों के बोस्टन निजी सर्वेक्षण में, 60 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया कि महामारी ने उन्हें धन के मुद्दे की अपनी सोच का पुनर्मूल्यांकन करने पर मजबूर कर दिया। जहाँ पहले लोग टैक्स और कई अन्य चीजों को लेकर चिंतित रहते थे वहीं अब स्वास्थ्य की देखभाल उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई है। बोस्टन प्राइवेट के मंडल अध्यक्ष गेराल्ड बेकर ने कहा कि सर्वेक्षण में शामिल लोगों के लिए अब धन का मतलब पैसे नहीं बल्कि वे जो भी काम कर रहे हैं उसमें सफलता है। महामारी ने खुशी और सफलता को फिर नए सिरे से परिभाषित करने का अवसर प्रदान किया है।
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