सूरत : दूध में शक्कर की तरह घुले-मिले हैं सूरत में राजस्थानी : गणपत भंसाली

सूरत : दूध में शक्कर की तरह घुले-मिले हैं सूरत में राजस्थानी  : गणपत भंसाली

राजस्थान को जन्मभूमि और सूरत को कर्मभूमि बनाने वाले राजस्थानवासीओं का म्हारो मान राजस्थान भव्य कार्यक्रम आज

राजस्थान महासभा द्वारा आज परवत पाटिया मरूधर ग्राउन्ड में विशाल सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन
सिल्क सिटी व डायमंड सिटी तथा वीर कवि नर्मद की नगरी  के नाम से देश-विदेश में ख्यातनाम सूरत महानगर विभिन्नताओं से भरा वो बगीचा है । जहां हर किस्म के फूल खिले हुए है,  ये वो महानगर है जहां देश के अलग-अलग राज्यों से लोग आकर इस शहर को कर्मनगरी के रूप में अपनाया है।  इस शहर के वाशिंदों यानी सुरतियों ने सदैव बड़ा दिल रख कर इन्हें स्वीकारा है व इन्हें अथाह अपनापन दिया है। वैसे तो इस शहर में अधिकांश राज्यों से उद्यमी, व्यवसायी, श्रमिक, अधिकारी, शिक्षक गण, डॉक्टर, इंजीनियर, कलाकार, रंगकर्मी, विभिन्न विधाओं के विशेषज्ञ आए व सूरत को अपनाया, लेकिन बाहुल्यता के साथ जिन राज्यों के निवासी इस शहर में आकर बसे है उसमें राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा आदि राज्य है।  लेकिन मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बंगाल, तमिलनाडु, केरला, कर्नाटक, आंध्रा, तेलंगाना, आसाम, दिल्ली, उत्तराखण्ड आदि राज्यों  के निवासी भी इस शहर में कम ज्यादा तादाद में मौजूद हैं। वैसे गुजरात के सौराष्ट्र विस्तार के काठियावाड़ व कच्छ, पालनपुर,  उतर गुजरात आदि के निवासी भी सूरत में कई दशकों से बसे हुए हैं।  एक दृष्टि से सूरत में मिनी हिंदुस्तान बसा हुआ है व मूल सुरतियों के साथ सहकार से सभी प्रवासियों ने इस महानगर को गुजरात की आर्थिक राजधानी के रूप में पहचान दिलाने व स्थापित कराने में सराहनीय भूमिका निभाई है। और यही वजह है कि सूरत आज  सिल्क सिटी व डायमंड सिटी के रूप में सम्पूर्ण विश्व मे विशिष्ट पहचान बनाए हुए है व दुनिया भर मे यह शहर विकास के पथ पर तीव्रता के साथ आगे बढ़ते शहर के रूप में उभर कर नजर आ रहा हैं।
सूरत की प्रगति में राजस्थानियों की अहम भूमिका
सूरत व दक्षिण गुजरात में राजस्थानियों का आगमन कितने दशकों पूर्व हुआ व इस शहर से उनका नाता कितना पुराना है यह शोध व खोज का विषय है लेकिन एक अनुमान के अनुसार कुछ अपवाद मान लें तो राजस्थानियों का सूरत तथा गुजरात से नाता एक सदी अतार्थ लगभग 100 साल पुराना हैं। बताया जाता हैं कि इस शहर व दक्षिण गुजरात के बारडोली, नवसारी, बलसाड़, डूंगरी, अंकलेश्वर, भरूच, व्यारा  व सूरत विस्तार के कामरेज, कड़ोदरा, सचिन, चलथान आदि शहरों कस्बों में राजस्थान के मेवाड़ विस्तार से भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद, गोगुन्दा, सायरा, मोखुन्दा, राजा जी का करेड़ा व विभिन्न छोटे बड़े गांवों-कस्बा तथा मारवाड़ के सिवांची मालाणी विस्तार से सिवाना, मोकलसर, बालोतरा, समदड़ी आदि शहरों-कस्बों से व्यापारी सूरत तथा दक्षिण गुजरात के गांवों-नगरों में पहुंच कर किराणा, अनाज, तेल-तिलहन, बारदान आदि की दुकानें की, फिर वे जरी, कस्ब, रिबन, गोटा, किनारी आदि के कारोबार से जुड़े, चूंकि उस दौर में राणा समाज के अनेक बन्धु जरी-कस्ब के व्यापार में सलंग्न थे, अतः राजस्थान से अपने भाग्य चमकाने आए नागरिकों ने इस फील्ड में अपनी किस्मत चमकाई। 1962 के आसपास सिवाना मूल के श्री हिराभाई मेहता ने 17-18 वर्ष की उम्र में सूरत आकर इस शहर को कर्मभूमि बनाया, वैसे मेहता परिवार के अन्य सदस्यगण लगभग एक शताब्दी पूर्व यानी 100 वर्ष पहले बारडोली में किराणा व अनाज व्यवसाय से जुड़ गए थे। श्री हिराभाई मेहता जो रेशमवाला मार्केट में फ्लोरा प्रिंट के संस्थापक है ने बताया कि हमारे से पहले अतार्थ 70-80 वर्ष पूर्व राजस्थान के बाड़मेर जिले के अंतर्गत सिवाना नगर से मोड़ा जी शंकरलाल, शम्भूमल तिलोकचंद,  गुमानमल हरकचंद आदि फर्में सूरत में स्थापित हुई थी, जो कि किराणा, अनाज व कपड़े की आढ़त से सलंग्न थी। इसी तरह सूरत महानगर की ख्यातनाम टेक्सटाइल्स फर्म व डाइंग प्रिंटिंग यूनिट वर्धमान ग्रुप के फूलचंद राठौड़ के अनुसार उनका परिवार राजस्थान के मेवाड़ प्रान्त के भानपुरा से आकर वर्ष 1962 अतार्थ 60 वर्ष पूर्व सूरत में बसा था व कपड़े की कारोबारी फर्म वक्तावर मल लालचंद का शुभारंभ किया था , अगले पड़ाव में राठौड़ परिवार ने 1965 में वर्धमान मिल्स की स्थापना की जो उस दौर में सूरत की टॉप-10 मिलों में से एक थी। बताया जाता है कि राजस्थान से आए व्यवसाही  गोपीपुरा, केलापीट,  राणीतलाब,  भागल, सग्राम पूरा, सलाबत पूरा व विभिन्न शेरियों में रहते थे व वहीं घरों में उनकी कपड़े के आढ़त व ट्रेडिंग फर्म संचालित होती थी। बताया जाता है कि उस दौर में गोडवाड़ के सादड़ी विस्तार से चंपालाल सम्पतराज आदि फर्में व्यापार व्यवसाय में जुड़ी हुई थी। 100 वर्ष के आसपास बारडोली में खूबचन्द जेठमल व्यवसायरत थी। 1971 से पहले अनेकों राजस्थानी व्यापारियों ने दक्षिण गुजरात में कृषि भूमि की जमीनें खरीद कर खेतीबाड़ी भी की थी। बताया जाता है कि 1962 के आसपास शेखावटी विस्तार से भी कुछ राजस्थानी व्यवसाही पहले व कुछ उसके बाद सूरत में आकर बसे व अगले पड़ाव में राजस्थानी व्यवसाही आर्ट सिल्क फेब्रिक्स से जुड़े।  वो दौर ऐसा था कि सूरत उत्पादित फेब्रिक्स की गुणवत्ता का अलबत्ता अभाव था अतः सूरत के आर्ट सिल्क के कपड़े का सिकुड़ जाना, रंग उड़ जाना आदि विकृतियां समाई हुई थी, लेकिन सम्पूर्ण भारत मे कॉटन आधारित फेब्रिक्स के चलन के बीच तथा प्योर सिल्क के विकल्प में आर्ट सिल्क का विकल्प खड़े हो जाना नए दौर का आगाज था, ग्राहक कॉटन के विकल्प में आकर्षक दिखने व चमचमाहट भरे फेब्रिक्स आधारित कपड़े सिला कर पहनने की महिलाओं व लड़कियों में चाहत रहती थी अतः आर्ट सिल्क कपड़े का चलन बढ़ा व राजस्थान से आए व्यापारियों में से कुछ ने ट्रेडिंग की तो कुछ ने कपड़ा आढ़त का व्यापार-व्यवसाय शुरू किया व जैसे जैसे तकनीक का विस्तार हुआ वैसे वैसे कपड़े की गुणवत्ता बढ़ने लगी, व सूरत उत्पादित फेब्रिक्स मि खपत में दिन दूना रात चौगुना इजाफा होता रहा। पहले हैंडलूम का दौर था, फिर सादे लूम्स चलन में आए,  फिर शटललेस लूम का दौर चला और वर्तमान में रेपियर, जेकार्ड व एयरजेट लूम्स बड़ी संख्या में उत्पादन रत है।
1960 से आर्ट सिल्क कारोबार परवान पर होने लगा
1960-70 के आसपास से सूरत उत्पादित आर्ट सिल्क कपड़े की क्वालिटी में नए नए अनुसन्धान होते रहे व कपड़े की किस्मों में सुधार होता रहा आज सूरत में राजस्थान के शेखावटी आँचल के तारानगर निवासी मूल के गोविंद प्रसाद सरावगी ने लक्ष्मीपति मिल्स की स्थापना की अब उसका संचालन युवा उद्यमी श्री संजय सरावगी के हाथों में है व सूरत की प्रतिष्ठित इकाइयों में से ये यूनिट एक है यहां तक डिफेंस उपयोगी फेब्रिक्स इस इकाई में होता है, राजस्थान मूल के उद्यमियों द्वारा संचालित अनेक प्रोसेसिंग यूनिटें है जो भरपूर उत्पादन की पर्याय है। अन्य मिलों में  जे पी अग्रवाल जी के प्रबंधन में रचना मिल, मूंदड़ा समूह की मधुसूदन मिल्स, भूतड़ा समूह की एकलव्य व अन्य दो इकाइयां , रूपा ग्रुप, राठी ग्रुप संचालित महादेव व अन्य इकाइयां, पोरवाल ग्रुप की गगन मिल्स व सैकड़ो प्रोसेसिंग मिलें राजस्थानी उधमियों द्वारा संचालित है, बिल्डर समूहों में कुबेर जी, रूंगटा, सिध्दि विनायक रजस्थान के शेखावटी विस्तार से हैं। राजहंस बिल्डर समूह के देसाई एंड जैन ग्रुप में शिवलाल जैन राजस्थान के मेवाड़ प्रान्त से है। श्री संजय सुराणा के नेतृत्व में सुराणा बिल्डर सूरत के नामचीन बिल्डरों में से एक है व अगिनित बिल्डर राजस्थानी है। रिंग रोड़ विस्तार में 170 के करीब मार्केटों में अधिकांश दुकानें राजस्थानियों द्वारा संचालित है। यही नही सूरत में  ख्यातनाम व गुणवत्ता परक मिष्ठान शॉप्स माखन भोग, शिवशक्ति, श्याम भोग व चाट शॉप्स गणगौर आदि भी राजस्थानी समूह द्वारा संचालित है। यही नही नमकीन आदि के बड़े उत्पादक धरती नमकीन व महावीर नमकीन के प्रबन्धक राजस्थानी है। शहर में थोक किराणा, अनाज, कटलेरी आदि शॉप्स राजस्थानियों द्वारा संचालित है। सवेरा टाइम्स, विद्रोही आवाज, टेक्सटाइल्स ट्रेड, टेक्सटाइल्स दुनिया जैसे साप्ताहिक, मासिक आदि समाचार पत्रों के संचालक राजस्थान से हैं।  लायन्स क्लब, रोटरी क्लब, जेसीस इन्हरव्हिल आदि इंटरनेशनल सेवाभावी संगठनों में राजस्थानी बड़ी मात्रा में सदस्य है। सूरत में सबको प्यार, सबकी सेवा व जिओ और जीने दो के आदर्श भाव से सेवारत महावीर इन्टरनेशननल की चार शाखाओं में अधिकांश सदस्य राजस्थानी है, शहर की अग्रणी सेवा भावी संस्था सेवा फाउंडेशन के संस्थापक व सदस्य अधिकतया राजस्थानी मूल के है।  हजारों सदस्यों की संस्था सूरत जैन यूथ क्लब के अधिकांश सदस्य राजस्थानी है। यही नही अग्रवाल समाज, माहेश्वरी समाज, दिगम्बर व शेवताम्बर जैन समाज, विप्र समाज, राजपूत समाज, राजपुरोहित समाज, सीरवी समाज, जाट समाज, तेली समाज, घांसी समाज, गुर्जर समाज, गोस्वामी समाज,  सैनी माली समाज, प्रजापत समाज, रबारी समाज  तथा अनेकों विभिन्न समाजों के हजारों सदस्य राजस्थानी है तथा तमाम संगठनों से जुड़े सदस्य अपने सामाजिक दायित्वों के अलावा शहर में विभिन्न सेवाओं में रत रहते है। कोरोना काल में राजस्थान राज्य के आधिपत्य युक्त संस्थाएं लक्ष्मीनाथ सेवा समिति, बाबा भोलेनाथ का भंडारा, अग्रवाल समाज, माहेश्वरी समाज,  सूरत जैन यूथ क्लब,  दिगम्बर जैन समाज, तेरापंथ समाज, मूर्तिपूजक जैन समाज, स्थानकवासी जैन समाज, साधुमार्गी जैन समाज, श्रमण संघ, विप्र समाज, राजपुरोहित समाज, राजपूत समाज, जाट समाज, विप्र समाज आदि संगठनों द्वारा भोजन व राशन, तथा दवाइयों आदि की सेवा की गई। शहर में हिंदी कवि सम्मेलन सर्वाधिक रूप से राजस्थानियों द्वारा आयोजित होते हैं। शहर में श्याम धाम जैसे विशाल मंदिर का निर्माण भी राजस्थानी मूल के धर्म प्रेमियों द्वारा कराया गया। इसी तरह कड़ोदरा विस्तार में निर्माणाधीन माजी सा धाम भी राजस्थानियों द्वारा कराया जा रहा हैं। डाँग जिले के आदिवासियों की सेवा में जुटी वनबंधु परिषद व हरि सत्संग समिति आदि सेवाभावी संस्थाएं राजस्थानी मूल के सदस्यों द्वारा संचालित हैं। पूरे देश मे गौशालाओं के लिए आर्थिक पोषण सूरत में बसे राजस्थानियों द्वारा होता आ रहा हैं, सूरत में भी सोमोलाई गोशाला का संचालन भी राजस्थानियों द्वारा किया जा रहा हैं। वर्तमान में सूरत महानगर पालिका में विजय चौमाल, दिनेश राजपुरोहित, रश्मि साबू, सुमन गाड़िया आदि नगर पार्षद भी राजस्थान से हैं। अतीत में सुधा नाहटा, केसरदेवी, किशोर बिंदल आदि राजस्थानी नगर पार्षद के रूप में सेवाएं दे चुके हैं। राजस्थान के बालोतरा मूल के श्री किशोर बिंदल वर्तमान में सूरत महानगर भारतीय जनता पार्टी के महामंत्री पद पर आसीन हैं।  सूरत महानगर में राजस्थानी मूल के सैकड़ो चार्टेड एकाउंटेंट हैं। विशेष बिंदु यह भी है कि सूरत शहर में अध्ययन रत अनेकों राजस्थानी विद्यार्थी वरीयता सूची में नजर आते हैं।  सूरत में वर्तमान के प्रधानमंत्री तथा गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री  नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में हजारों राजस्थानियों ने इकठ्ठा होकर एक इतिहास बनाया था अब 27 मार्च 2022 को सूरत के गोड़ादरा विस्तार में राजस्थान महासभा द्वारा म्हारो मान राजस्थान कार्यक्रम का गुजरात के मुख्यमंत्री  भूपेंद्र पटेल तथा गुजरात प्रदेश भाजपा अध्यक्ष  सी आर पाटील की उपस्थिति में तथा ख्यातनाम लोक गायक प्रकाश माली व आशा वैष्णव की मौजूदगी में विशाल कार्यक्रम आयोजित होने जा रहा हैं। निश्चित रूप से इस आयोजन में राजस्थानी मूल के अग्रणी समाजसेवी संजय सरावगी,  सांवर प्रसाद बुधिया,  कैलाश हकीम,  विक्रमसिंह शेखावत , दिनेश राजपुरोहित,  विजय चौमाल तथा तमाम सेवा भावियों द्वारा किए जा रहे प्रयास सराहनीय है।, राजस्थान युवा संघ इस शहर में राजस्थानियों की अग्रणी प्रतिनिधि संस्था है व राजस्थानी गौरव में अभिवृद्धि कर रहे हैं। श्री सूरत में बसे राजस्थानियों ने सूरत में विकास के पथ पर सराहनीय व अनुकरणीय भूमिका निभाई है व राजस्थानी भी दूध में शक्कर की तरह घुल मिल गए हैं।





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