सूरत में आयोजित कला प्रदर्शनी में इस कच्छी कलाकार ने सबका ध्यान खींचा

सूरत में आयोजित कला प्रदर्शनी में इस कच्छी कलाकार ने सबका ध्यान खींचा

400 साल पुरानी हस्तकला रोगन आर्ट को बचाने की जद्दोजहद में है!

सूरत में आयोजित क्राफ्ट रूट प्रदर्शनी में विभिन्न कलाकारों ने हिस्सा लेते हुए अपनी अपनी कला का प्रदर्शन किया। इन सब में कच्छ के निरोना गामा शिल्पकार रिजवान खत्री ने भी भाग लिया है।रिजवान 400 साल पुरानी रोगन कला में महारथ रखते है। रोगन एक फ़ारसी शब्द है। फारसी भाषा में ‘रोगन’ शब्द का अर्थ ‘तेल’ होता है।
इस कला की बात करें तो ये मूल रूप से ईरान की कला है। इस कला ‘रोगन चित्रकला’ का लगभग 400 वर्ष पूर्व भारत के गुजरात के कच्छ क्षेत्र में आगमन हुआ था। इस कला में सूती व रेशमी वस्त्रों का ही प्रयोग किया जाता है। इसकी मुख्य सामग्री के रूप में अरंडी के तेल का प्रयोग किया जाता है। ये तेल कच्छ क्षेत्र में पाई जाती है। इस तेल में कुछ चमकीले प्राकृतिक रंगों को मिलाकर एक पेस्ट तैयार किया जाता है तथा चित्रकार धातु की कलम द्वारा वस्त्र पर चित्रकारी करता है। लगभग दो दिनों तक अरंडी के तेल को उबालकर और फिर वनस्पति रंजक और एक बाध्यकारी एजेंट जोड़कर रोगन पेंट का उत्पादन किया जाता है ; परिणामी पेंट मोटा और चमकदार होता है। जिस कपड़े पर पेंट या प्रिंट किया जाता है वह आमतौर पर गहरे रंग का होता है, जो गहरे रंगों को अलग बनाता है। इस कला में फूल-पत्तियों तथा मोर, हाथी जैसे जानवरों के ज्यामितीय चित्र वस्त्रों पर अंकित किये जाते हैं। आधे डिजाइन को पेंट किया जाता है, फिर कपड़े को आधे में मोड़ा जाता है, दर्पण की छवि को कपड़े के दूसरे आधे हिस्से में स्थानांतरित किया जाता है। ट्री ऑफ लाइफ की संरचना इस चित्रकला का सबसे प्रसिद्ध रूपांकन है। यह चित्रकला पूर्णतः चित्रकार की कल्पना पर आधारित होती है।
फिलहाल ये कला विश्व स्तर पर विलुप्त होने के कगार पर है। 20 वीं शताब्दी के अंत में शिल्प लगभग समाप्त हो गया। वर्तमान में मात्र कच्छ क्षेत्र के ‘निरोना गाँव’ के रिजवान और उनका सिंधी-मुस्लिम-खत्री परिवार इस कला का एकमात्र संरक्षक है। कच्छ के निरोना गाँव के कारण यह कला निरोना रोगन चित्रकला के नाम से भी जानी जाती है। अब्दुल गफ्फूर दाऊद खत्री, जब्बर अरब खत्री आदि प्रसिद्ध रोगन चित्रकार हैं। इन चित्रकारों को पद्म पुरस्कारों सहित विभिन्न राष्ट्रीय व राजकीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। 2014 में जब तत्कालीन और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूएस में व्हाइट हाउस का दौरा किया था तब राष्ट्रपति ओबामा को जीवन के पेड़ सहित दो रोगन पेंटिंग दीं थी।
इस कला को जीवंत रखने के लिए रिजवान लगभग 45 महिलाओं को ये कला सीखा रहे है। इस कला को सीखने में लगभग 1 साल लगता था। इस कला के चित्र की कीमत लगभग 15 सौ से लाख रुपये तक हो सकती है।
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