सूरत : मकान मालिक को किराएदार से अपनी संपत्ति का कब्जा लेने 38 साल लग गए, सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा

सूरत : मकान मालिक को किराएदार से अपनी संपत्ति का कब्जा लेने 38 साल लग गए, सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा

1983 में शुरू इस विवाद का आज 38 साल बाद निर्णय आया

सूरत की स्थानीय अदालत से लेकर हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट तक 38 साल की कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार एक मकानमालिक ने अपने किराएदार से अपनी नानपुरा की संपत्ति पर कब्जा हासिल कर लिया। 1983 में शुरू इस विवाद का आज 38 साल बाद निर्णय आया। इतने लंबे समय बाद और लगातार विभिन्न अदालतों में मामला लड़ने के बाद में मकान मालिक को आखिरकार उस संपत्ति पर अधिकार मिला जिसे उसके किराएदार ने हथिया लिया था।
जानकारी के अनुसार, नानपुरा के वार्ड नंबर 1 में स्वामी गुणातीत नगर सोसायटी मकान नंबर 1 रमेश चंद्र के नाम पर रही संपत्ति उन्होंने वल्लभ देवराजभाई को किराए पर दी थी। लेकिन विजय ने नियमित किराया देने के बजाय बचूभाई भगत को किराए पर दे दिया। इसलिए वादी संपत्ति के मालिक रमेश चंद्र वंकावाला ने 1983 में स्मॉल कॉज कोर्ट में मूल किरायेदार और उप-किरायेदार के खिलाफ संपत्ति का कब्जा पाने के लिए मुकदमा दायर किया था। किराएदार की ओर से प्रस्तुत किया गया कि उसकी मां सुगराबेन उर्फ  सरोज बचूभाई भगत ने उसे काम पर रखा है। 1996 में, अदालत ने मकान मालिक की ओर से कुमार रमना की दलीलों को खारिज कर दिया और किरायेदार को संपत्ति खाली करने और बढ़े हुए किराए का भुगतान करने का आदेश दिया।
इसके बाद किरायेदार ने 2010 में जिला अदालत में इस आदेश के खिलाफ अपील की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। इसके बार मूल मकान मालिक ने वर्ष 2011 में स्मॉल कॉज कोर्ट में एक प्रस्ताव दायर किया। निचली अदालत ने किरायेदारों की आपत्ति याचिका को खारिज करते हुए और स्टे की मांग करते हुए निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। जिसके खिलाफ किराएदारों ने साल 2012 में हाई कोर्ट में दूसरी अपील दायर की थी। उन्होंने शीर्ष अदालत में अपील की और वहां भी सूरत की स्थानीय अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। ऐसे में किरायेदारों से संपत्ति पर कब्जा लेने के लिए मकान मालिक को 38 साल की कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी।
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