सूरत: निमाया वेलफेयर और टवेन्टी फर्स्ट सेंचुरी हॉस्पिटल द्वारा बांझपन जोड़ों के लिए पहल
By Loktej
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इनफर्टिलिटी दंपत्तियों को एनजीओ की तरफ से सहायता मिलती नीं, ट्रस्ट अस्पताल और सरकारी अस्पतालों में उपचार किया जाता नहीं, ऐसे दंपत्तियों के लिए 21 फर्स्ट सेन्चुरी अस्पताल ने एक फंड शुरू किया
डॉ.पूर्णिमा नाडकर्णी मेमोरियल फंड का शुरूआत
इनफर्टिलिटी दंपत्तियों को एनजीओ की तरफ से सहायता मिलती नीं, ट्रस्ट अस्पताल और सरकारी अस्पतालों में उपचार किया जाता नहीं, ऐसे दंपत्तियों के लिए 21 फर्स्ट सेन्चुरी अस्पताल ने एक फंड शुरू कियाजो लायक दंपत्तियों की जांच किए जाने के बाद उचित लगे तो उनके इलाज के लिए कम से कम 35,000 रुपये खर्च किया जाएगा।आईवीएफ के क्षेत्र में मील का पत्थर बन चुकीं स्वर्गीय डॉ. पूर्णिमा नाडकर्णी की याद में उनके जन्मदिन 25 नवंबर को निमाया वेलफेयर फाउंडेशन और 21 फस्र्ट सेन्चुरी अस्पताल द्वारा बांझपन से पीडि़त दंपत्तियों के लिए आज से पूर्णिमा नाडकर्णी मेमोरियल फंड लॉन्च किया गया है। जो इनफर्टिलिटी से पीडि़त जोड़ों के लिए वरदान साबित होगा।
इस बारे में जानकारी देते हुए डॉ. पूजा नाडकर्णी सिंह और डॉ. प्रभाकर सिंह ने कहा कि 21 फर्स्ट सेन्चुरी अस्पताल सूरत और निमाया वेलफेयर फाउंडेशन ने डॉ. पूर्णिमा नाडकर्णी मेमोरियल फंड लॉन्च करने की घोषणा की है। बांझ दंपतियों को एनजीओ से सहायता नहीं मिलती है, ट्रस्ट अस्पतालों और सरकारी अस्पतालों में उनका इलाज नहीं होता है, इसलिए 21 फर्स्ट सेंचुरी हॉस्पिटल ने एक फंड शुरू किया है, जहां योग्य जोड़ों की जांच की जाती है और अगर वे योग्य पाए जाते हैं तो उनका इलाज केवल 35,000 की न्यूनतम लागत के साथ किया जाएगा। शुल्क में आईवीएफ के बाद 15 दिनों तक लेब परीक्षण, मेडिकल स्टोर दवाएं, सभी हार्मोन, आईवीएफ लेब शुल्क, सोनोग्राफी, अस्पताल में रहने और दवाएं जैसी सभी लागतें शामिल हैं। आईवीएफ का बाकी खर्च निमाया वेलफेयर फाउंडेशन वहन करेगा। उन्होंने कहा, हम गैर सरकारी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिला संगठनों, सरकारी संगठनों से अपील करते हैं कि इस संदेश को समाज में फैलाएं ताकि ज्यादा से ज्यादा मरीज इसका लाभ उठा सकें। फिलहाल इस फंड से हर महीने 10 मरीज लाभान्वित होंगे। लेकिन अगर भविष्य में गैर सरकारी संगठनों से
फंडिंग मिल जाती है तो इस कार्यक्रम के तहत इलाज कराने वाले मरीजों की संख्या में निश्चित रूप से इजाफा होगा। 25 नवंबर, 2021 को स्वर्गीय डॉ. पूर्णिमा नाडकर्णी की जयंती पर इस फंड की घोषणा करते हुए खुशी हो रही है।
डॉ. पूर्णिमा नाडकर्णी के बारे में...
डॉ.पूर्णिमा नाडकर्णी की जीवन यात्रा नवंबर 1955से 22 अक्टूबर 2021 तक रही। वह किला पारडी, गुजरात में पिछले एक साल से बहादूरी से एड्वान्स लीवर कैंसर से लड़ रहे थे और 22 अक्टूबर, 2021 को उनका निधन हो गया। उनके पीछे उनके पति डॉ. किशोर, बच्चे डॉ. पूजा-डॉ.प्रभाकर,डॉ.अक्षय-डॉ.अदिति,डॉ.वैभव- डॉ. सौम्या, छह पोते-पोतियां, सास- ससुर मोहन-माधुरी, भाई-बहन डॉ. श्रीलता त्रासी और परिवार, डॉ. शशिकांत हेरंजल और उनका परिवार 21 फस्र्ट अस्पताल छोड़ गए है। वह गुजरात के एक बहुत ही सफल और प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ और बांझपन विशेषज्ञ थे, जिन्होंने पिछले 25 वर्षों में अपने मिडास टच के साथ 23 हजार से अधिक बांझपन जोड़ों को संतान सुख दिया है।
- कई पुरस्कारों से सम्मानित
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी महिला सशक्तिकरण पुरस्कार, श्रेष्ठ सलाहकार पुरस्कार, गुजरात राज्य, पावर 100 पीपल ऑफ गुजरात अवार्ड सहित अपने शानदार करियर के दौरान उन्हें कई सम्मान मिले। नारी शक्ति और नारी नेतृत्व अवार्ड और आईएसएआर, आईसीओजी और एफओजीएसआई जैसे विविध व्यवसायिक संस्थाओं की ओर से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 11/11/11 (एक दिन में) 11 आईवीएफ बच्चों को जन्म देने और 12/12/12 को 12 बच्चों की डिलीवरी जैसे कई रिकॉर्ड उनके नाम हैं। इतना ही नहीं, बल्कि 1995 में पारडी जैसे छोटे से शहर में पहला कम शुल्क वाला ग्रामीण आईवीएफ कार्यक्रम शुरू किया गया था। उन्होंने स्नातकोत्तर प्रशिक्षण संस्थान भी विकसित की जिसने भारत और विदेशों के 1600 से अधिक छात्रों को इनफर्टिलिटी के क्षेत्र में प्रशिक्षित किया। उन्होंने दक्षिण गुजरात में बांझपन पर 15 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन किया।
- प्रसिद्धि इस तरह मिली
डॉ.पूर्णिमा नाडकर्णी की प्रसिद्धि 1972 में शुरू हुई जब उन्होंने पार्ले तिलक विद्यालय से एसएससी बोर्ड पूना (बॉम्बे) में प्रथम रैंक प्राप्त किया। वह एक उत्साही खिलाड़ी, स्वीमर और मैराथनर भी थीं। वे शेठ जी.एस. मेडिकल कॉलेज एंड केईएम अस्पताल के गौरवशाली पूर्व छात्र थे। एस. मेडिकल कॉलेज और केईएम अस्पताल जहां से उन्होंने कई पुरस्कारों और स्वर्ण पदकों के साथ यूजी और पीजी चिकित्सा शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने अपने पति डॉ. किशोर नाडकर्णी के साथ ग्रामीण दक्षिण गुजरात में बसने के लिए मुंबई से आए और अपने तेजस्वी बच्चों और अपने सक्षम जीवनसाथी के साथ आगे बढ़े। पिछले 35 वर्षों में उन्होंने 350 से अधिक बेड और 400 कर्मचारियों और डॉक्टरों के साथ 7 अस्पतालों की अध्यक्षता की है। एक परोपकारी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचान बनाई डॉ.पूर्णिमा एक परोपकारी सामाजिक कार्यकर्ता थे, वे एक बहुत ही दयालु और मददगार व्यक्ति थे, एक माँ और एक देवी थीं जिन्होंने हजारों लोगों के जीवन में बदलाव किया। वे अपने पीछे एक बड़ी विरासत और खालीपन छोड़ गए हैं जिसकी भरपाई करना मुश्किल होगा। इनफर्टिलिटी, वंध्यत्व, बांझपन सभी शब्द हम जानते हैं। भारतीय संस्कृति और समाज परिवार में बच्चा पैदा करना बहुत महत्वपूण र्है। बदकिस्मती के यहां रवैया रहने वाला ही है। गर्भ धारण नहीं कर पाने वाली महिलाओं को समाज में निचा दिखाया जाता है और उनके साथ भेदभाव किया जाता है। ऐसी महिलाओं के लिए पूर्णिमा नाडकर्णी एक आशीर्वाद समान थी। सूरत में बांझपन की समस्या का रेशियो वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार 10 प्रतिशत जोड़े बांझपन से पीडि़त हैं। भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। 1.2 अरब 34 प्रतिशत आबादी के साथ, जिसमें 20 से 40 साल (1) प्रजनन आयु वर्ग में हैं, भारत दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार 10 प्रतिशत दंपत्ति को एक बांझपन विशेषज्ञ (2) की सेवाओं की आवश्यकता होगी, जिनमें से लगभग 400 मिलियन वयस्क प्रजनन आयु के हैं, और लगभग 20 मिलियन जोड़े बांझपन के साथ हैं। इस तथ्य पर विचार करें; भारत में 25,000 पंजीकृत स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं, जिनमें से केवल 5,000 इन्फर्टिलिटी प्रेक्टिशनर हैं। भारत में 718 जिलों के साथ, प्रति जिले में आईवीएफ विशेषज्ञों की संख्या 6 से कम है। सूरत और दक्षिण गुजरात की कुल आबादी 70 लाख से अधिक है, जिसमें बांझ दंपतियों का भारी बोझ है।
दुर्भाग्य से बीमा कंपनियों और पीएमजेएवाई, एमएए योजना या चिरंजीवी योजना जैसी लाभ योजनाओं में बांझपन के इलाज का कोई प्रावधान नहीं है। आधुनिक भारतीय परिवारों में बांझपन एक प्रमुख सामाजिक मुद्दा
है। चूंकि इस आईवीएफ उपचार की लागत लाखों तक पहुंच गई है, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के कई लोग इस उपचार से वंचित हैं। इसके परिणामस्वरूप निराशा, भावनात्मक उथल-पुथल और कई मामलों में गंभीर
अवसाद होता है। डॉ. पूर्णिमा नाडकर्णी इनफर्टिलिटी को लेकर जुनूनी थीं। अपनी शिक्षा के दौरान ही उन्होंने महसूस किया कि बांझपन का इलाज ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश करना है और इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने दक्षिण गुजरात के सबसे ग्रामीण हिस्से में किल्र्ला पारडी में अपना आईवीएफ केंद्र शुरू किया। उस समय 1995 में देश में मुश्किल से 20 आईवीएफ केंद्र थे और सभी मेट्रो शहरों में थे। किला पारडी में आईवीएफ केंद्र की स्थापना से
पता चलता है कि उन्होंने बांझपन की रोकथाम के लिए कितना ध्यान रखा और काम किया।
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