सूरत : मैने जो छोडा वह कुछ भी नहीं है, इन दीक्षार्थिओं ने जो छोड़ा है वह एक अद्भुत घटना है: विजयभाई रूपाणी

सूरत : मैने जो छोडा वह कुछ भी नहीं है, इन दीक्षार्थिओं ने जो छोड़ा है वह एक अद्भुत घटना है: विजयभाई रूपाणी

रविवार को सूरत में आए पूर्व मुख्यमंत्री विजयभाई रुपाणी ने कहा कि मैंने जो पद छोड़ा है वह कुछ भी नहीं है, 75 दीक्षित जो छोड़ रहे है उसके सामने वह सब गौण है

 पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने वेसु अघ्यात्मा नगरी में सिंहसत्वोत्सव के 7 मुमुक्षुओं की पुस्तक का अनावरण किया
रविवार को सूरत में 75 दीक्षा महोत्सव के कार्यक्रम में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और जैन समाज के गौरवान्वित व्यक्ति विजयभाई रूपाणी ने सूरत का दौरा किया। अध्यात्म नगरी में पुस्तक वितरण के बाद दीक्षार्थिओं की स्वीकृति देते हुए उन्होंने कहा कि मैने जो छोडा  वह कुछ भी नहीं है, ये दीक्षित जो छोड़ रहे हैं वह एक अद्भुत घटना है। 
श्री शांतिकनक श्रमणोपसाक ट्रस्ट अध्यात्म परिवार एवं सूरीरामचंद्र एवं सूरीशांतिचंद्र समुदाय सूरी भगवंतो आदि तथा दीक्षा धर्म के महान नायक और परोपकारी योगतिलक्षुरीश्वरजी महाराजा के गौरवशाली भाषण के प्रभाव से अध्यात्म नगर स्थित वेसु बलार हाउस में आयोजित होने वाले 75वें सामूहिक दीक्षा महोत्सव में रविवार को पूर्व मुख्यमंत्री विजयभाई रुपाणी उपस्थित रहे। ढोल-नगाड़ों की ध्वनि से उनका स्वागत किया गया। उनके साथ शिक्षा मंत्री जीतूभाई वाघानी और राज्य मंत्री विनुभाई मोरडीया, विधायक कांतिभाई बलार, सूरत के पूर्व उप महापौर एवं जैन नेता नीरवभाई शाह, केतनभाई मेहता सहित कई जैन अग्रणी भी मौजूद थे। विजयभाई ने सबसे पहले जिनालय में भगवान के दर्शन किए और बाद में प्रवचन मंडप में 75 दीक्षार्थियों के निर्माता श्री योगतिलक्षुरीश्वरजी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किए। उसके बाद उनके द्वारा एक हिंदी पुस्तक 'मुमुक्षुसिंहो की सात्विक कथा' का विमोचन किया गया। अपने उपदेश में विजयभाई ने कहा कि सूरत एक जैन शहर है। 75 दीक्षा एक खुशी और ऐतिहासिक अवसर है। दीक्षा कोई छोटी बात नहीं है, दुनिया छोड़ने की ताकत गुरु महाराज के आशीर्वाद से ही आती है। जैन फिलोसोफी में त्याग बहुत महिमामय है।  उन्होंने आगे कहा कि मैंने जो पद छोड़ा है वह कुछ भी नहीं है,  75 दीक्षित जो छोड़ रहे है उसके सामने वह सब गौण है। यह बहुत अच्छी बात है कि अमीर लोग, युवा, स्नातक सब कुछ होते हुए भी संसार त्याग कर जा रहे हैं। जो दीक्षा छोड़ रहे हैं वे महान हैं। इसलिए मैं इन दीक्षार्थिओं को सलाम करता हूं। संन्यास का अर्थ केवल परिवार या धन का त्याग करना ही नहीं है, बल्कि अपने भीतर के काम, क्रोध, लोभ, वासना का भी त्याग करना है। भगवान महावीर की यह राह दीक्षार्थिओं को प्रबुद्ध करेगी। इस अवसर पर शिक्षा मंत्री जीतूभाई वघानी ने जिन शासन की सराहना की और कहा कि इस अवसर पर हम यहां आए हैं और धन्यता का अनुभव कर रहे हैं। अभी 3 दिन के बाद अलौकिक दीक्षा पर्व के लिए पूरे भारत से भक्त सूरत पधार रहे हैं।

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