सूरत : रूपाणी सरकार के पांच साल के जश्न के खिलाफ आप का समानांतर विरोध कार्यक्रम

3 लाख 10 हजार करोड़ के कर्ज में डूबी गुजरात सरकार उत्सव मना रही है : महेश सवाणी

गुजरात में पैदा होने वाले बच्चों पर भी होता है 46,000 रुपये का कर्ज 
रूपाणी सरकार द्वारा पांच साल पूरे करने पर कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। ज्ञान दिवस, रोजगार दिवस आदि दिन मनाए जा रहे हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी सरकार के खिलाफ विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए लोगों  के सामने लाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में आज आम आदमी की ओर से आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में आप नेता महेश सवानी ने सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाया।  महेश सवानी ने कहा, "राज्य सरकार ने विकास किया है जिसे हमने स्वीकार किया है और वह विकास राज्य को 3 लाख 10 हजार करोड़ रुपये के अनुमानित कर्ज में डुबोने वाला है।" आज गुजरात में पैदा हुआ एक बच्चा 46,000 रुपये के कर्ज के साथ पैदा होता है जो कि राज्य सरकार का कर्ज है।
भाजपा सरकार की विकास की परिभाषा बदलने की जरूरत है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें,रसोई गैस की कीमतें भाजपा नेताओं के घरों, राजनीतिक दलों के कार्यालयों को महत्वपूर्ण रूप से विकसित करने में सफल रहे हैं। आज युवा शिक्षा के लिए विदेश जाने के लिए कतार में खड़े हैं। संभवत: पूरे देश से अधिकांश युवा गुजरात में हैं जो विदेश जाना चाहते हैं। जिससे पता चलता है कि राज्य सरकार युवाओं को रोजगार और शिक्षा देने में विफल रही है।
महेश सवानी ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अगर राज्य सरकार जश्न मना रही है तो वह बधाई के पात्र हैं। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को एक बार फिर मंच से सार्वजनिक रूप से बोलना चाहिए कि आज गुजरात का कितना कर्ज है।  राज्य में भाजपा का कितना कर्ज था और उसके बाद से 27 वर्षों में भाजपा सरकार ने राज्य को 3 लाख 10 हजार करोड़ रुपये के अनुमानित कर्ज में धकेल दिया है। मैं विजय रूपाणी को भी चुनौती देता हूं कि राज्य के कर्ज के बारे में मंच से गर्व से बोलें। 
राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलने को लेकर महेश सवानी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भाजपा सरकार ऐसे मुद्दों को उठाकर लोगों को गुमराह करती रहती है। नाम बदलने की बजाय लोगों का काम अच्छे से करने की जरूरत है। सिर्फ शहरों के नाम, हवाई अड्डों के नाम, जगहों के नाम बदलकर राजनीतिकरण करने की जरूरत नहीं है। आज जनता विकास और सुविधा चाहती है। समाजोन्मुखी कार्य की आवश्यकता के स्थान पर सरकार तूफानों और नाम करण से सन्तुष्ट प्रतीत होती है।
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