सूरतः नई सिविल अस्पताल में म्युकोरमाइकोसिस के 43 मरीजों की आंखों पर गंभीर असर

हाल में 101 मरीज भर्ती हैं, दो मरीजों की आंखों में सुधार, 22 मरीजों की आंखों को बचाने के प्रयास जारी

सूरत में कोरोना की उपचार लेने वाले अनेक मरीजों में म्युकोरमाइकोसिस नामक रोग के मामलों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। म्युकोरमाइकोसिस  बहुत तेजी से फैल रहा हैं  जिससे लोगों में डर का माहौल है। कई मामलों में तो मरीज की जान बचाने के लिए उसकी आंख निकाल देने की नौबत आ पड़ रही है।  जबकि सिविल अस्पताल में भर्ती 101 में से 43 मरीज गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। सिविल डॉक्टरों द्वारा 22 मरीजों की आंखों को 'ट्रान्सेटैनियस रेट्रोबुलबार एम्फोटेरिसिन-बी' प्रक्रिया के जरिए बचाने की कोशिश की जा रही है। 'ट्रान्सटेटेनियस रेट्रोबुलबार एम्फोटेरिसिन-बी' प्रक्रिया के बाद सिविल में भर्ती दो मरीजों की आंख में सुधार दिखा। गंभीर आंखों के प्रभाव वाले 43 मरीजों में से 6 की आंखों की सर्जरी (आंख निकालने) निजी अस्पताल में हुई है और वे सिविल में आए हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि म्युकोरमाइकोसिस के लक्षण दिखने के बाद भी कई मरीज इलाज के लिए देरी से पहुंच रहे हैं, जिससे चेप अधिक फैल जाने से  मरीज की जान बचाने के लिए  आंख निकालने  की नौबत आ रही है। सिविल में भर्ती ऐसे 43 मरीजों की आंखों पर गंभीर असर देखा गया है। जिसका उपचार नेत्र विभाग के प्रमुख डॉ.  प्रीति कपाड़िया के मार्गदर्शन में डॉ. कुंजन पटेल, डॉ. ईशा पटेल व डॉ. संतोष बेसनिया कर रहे हैं।
डॉ कुंजन पटेल ने कहा कि कई मामलों में अगर मरीज देर से आता है और संक्रमण दिमाग में फैल जाता है तो मौत का खतरा रहता है और मरीज की जान बचाने के लिए आंख निकालने की नौबत आ जाती है। चेहरे के ऑपरेशन के छह-सात दिन बाद एमआरआई द्वारा आंख में संक्रमण की सीमा की जांच करके आंख को बचाया जा सकता है। 'ट्रांसफ्यूटेनियस रेट्रोबुलबार एम्फोटेरिसिन-बी' प्रक्रिया यानी हर छह दिनों में नेत्रगोलक के चारों ओर तीन इंजेक्शन (हर दूसरे दिन एक), ऐसे बाईस रोगी वर्तमान में इस प्रकार का उपचार प्राप्त कर रहे हैं। एक 60 वर्षीय महिला और एक 55 वर्षीय अधेड़ उम्र की महिला की आंखों में सुधार देखा गया है।
संक्रमण  मस्तिष्क तक फैलने से रोकने के लिए  निकालनी पड़ती है आंख
डॉ ईशा पटेल ने कहा कि संक्रमण  मस्तिष्क तक फैलने से रोकने के लिए रोगी की जान बचाने के लिए आंख निकालनी पड़ती है, ताकि दिमाग में संक्रमण न फैले। चूंकि ऑपरेशन के दौरान संक्रमण के साथ-साथ नसों को भी हटा दिया जाता है, ऐसे में इन मरीजों को आंख दान करके नई रोशनी नहीं दी जा सकती या यहां तक ​​कि कांच की आंख का भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। म्युकोरमाइकोसिस के मरीजों का पूरा ख्याल रखने के लिए ईएनटी विभाग के डॉ. राहुल पटेल, नेत्र विभाग के डॉ. कुंजन पटेल और मेडिसिन विभाग के डॉ. वितांत पटेल की एक टीम यानी म्युकोर बोर्ड  लगातार निगरानी कर रही है.
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