सूरत की लुप्त परंपरा 'घीस' को जीवंत रखने आगे आये पुलिस आयुक्त तोमर साहब, जानें क्या है प्लान

सूरत की लुप्त परंपरा 'घीस' को जीवंत रखने आगे आये पुलिस आयुक्त तोमर साहब, जानें क्या है प्लान

भक्त प्रहलाद से जुड़ी है घीस की प्रथा, सूरत पुलिस आयुक्त अजय तोमर ने लिया विलुप्त हो रही प्रथा को जीवित करने का जिम्मा

आज के समय में ऐसी बहुत सी परम्पराएँ है जो लुप्त होती जा रही है। युवा पीढ़ी को इन परंपराओं के बारे में अधिक ज्ञान न होने से धीरे धीरे ये परम्पराएँ समाप्ति की ओर बढ़ चली हैं। एक ऐसी ही परंपरा का नाम है घीस! सूरत के युवा वर्ग में से बहुत कम लोग घीस की सदियों पुरानी परंपरा के बारे में जानते होंगे। इस घीस में मसखरों और मस्ती करने वालों सहित हज़ारों लोगों का एक मज़ेदार जुलूस निकाला जाता है और शहर के इलाके में घूमते हुए ज़ोर से ढोल और अन्य वाद्ययंत्रों की धुनों के साथ होली का त्योहार खेलते है।
ऐसे में विलुप्त हो रहे इस परंपरा को बनाए रखने के लिए शहर की पुलिस आगे आई है। पारंपरिक जुलूस को उसके खोए हुए गौरव को वापस दिलाने के लिए पुलिस परेड ग्राउंड में अगले रविवार को पुलिस ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया है। इस प्रतियोगिता में 10-10 सदस्यों वाली कुल 10 टीमें हिस्सा लेंगी। युवाओं को सूरत के पारंपरिक होली समारोह के बारे में बताने के लिए शहर के पुलिस आयुक्त अजय तोमर ने इस कार्यक्रम को कराने के बारे में सोचा। इसके बाद तोमर को डालिया शेरी तक गए। डालिया शेरी शहर एक ऐसा इलाका है जिसने विभिन्न पारंपरिक त्योहारों को जीवित रखा हुआ है। तोमर के साथ इसी डालिया शेरी के निवासी पंकज कापड़िया और उनके दोस्त रोहित मारफतिया ने घीस का एक छोटा प्रदर्शन देखा। महिधरपुरा के डालिया शेरी में समूह शहर के उन आखिरी लोगों में से हैं, जिन्होंने परंपरा को निभाया है।
आपको बता दें कि बदलते समय के साथ लोगों ने घीस निकालना बंद कर दिया है। लेकिन शहर के पुलिस आयुक्त अजय तोमर ने इसे दिलचस्प पाया और साथ में इसे पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रसिद्ध गुजराती गद्य संग्रहों में होली, धुलेती उत्सव और घीस का वर्णन आसानी से मिल सकता था। होली के तीन से चार दिनों के भीतर घीस का आयोजन किया जाता था और इसके लिए लोग हफ्तों पहले से तैयारी शुरू कर देते थे। धार्मिक मान्यता की माने तो ऐसा कहा जाता है कि जब होलिका भक्त प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी थी तो हिरण्यकश्यप ने अपने आदमियों को ज़ोर से ढोल बजाने का आदेश दिया था, ताकि जलने पर कोई भी प्रह्लाद की चीखों को न सुन सके। ऐसा माना जाता है कि घीस की परंपरा उस पर से ली गई है।
इस घीस में लोग ड्रम/ढोल और अन्य संगीत वाद्ययंत्रों के साथ शामिल होते है। ये जुलूस शाम 4 बजे तक जोर-शोर से प्रदर्शन करते हुए शहर के विभिन्न क्षेत्र में घूमता रहता है। लोग तरह तरह के परिवेशों जैसी कि व्यवसायी, डॉक्टर, वकील और नगरपालिका अधिकारी की तरह कपड़े पहने हुए और अन्य हास्यक प्रतिरूपण करके इसमें भाग लेते है। 
टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए पुलिस आयुक्त तोमर ने बताया कि राज्य में सूरत एकमात्र शहर है जिसमें घीस की परंपरा थी। ये परंपराएं एक शहर की पहचान हैं। उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए इसलिए हम होली के बाद इस प्रतियोगिता का आयोजन करने जा रहे हैं।
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