गुजरात के इफ्को ने किया पहली बार लिक्विड नैनो यूरिया का उत्पादन, सरकार और किसानों को होगा भारी फायदा

गुजरात के इफ्को ने किया पहली बार लिक्विड नैनो यूरिया का उत्पादन, सरकार और किसानों को होगा भारी फायदा

जून से उत्पादन होगा शुरू, सरकार के बचेंगे करोड़ो रुपए और पर्यावरण को भी लाभ

गुजरात की जनता ने दुनिया को कई बेहतरीन तोहफे दिए हैं। कृषि के क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं हैं। एकबार फिर गुजरात में एक क्रन्तिकारी खोज करते हुए पिछले हफ्ते दुनिया भर के किसानों को नैनो यूरिया दिया। इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर्स को-ऑपरेटिव लिमिटेड - इफको ने गुजरात के कलोल में इफको नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर में नैनो लिक्विड फर्टिलाइजर विकसित किया है। इसकी पहली खेप बाजार में आ चुकी है। अब यह बाजार में किसानों को आसानी से उपलब्ध होगा जो मौजूदा खाद से बहुत सस्ता हैं। 500 मिली नैनो लिक्विड यूरिया की कीमत 240 रुपये है जबकि 50 किलो कम्पोस्ट की बोरी 266 रुपये में मिल रही है।
जानकरी के अनुसार इसका प्रयोग 11,000 किसानों और संगठनों के खेतों में’ 94 फसलों पर परीक्षण किया गया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 20 संस्थानों में उत्पाद का परीक्षण किया गया। इसका प्रयोग गुजरात राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिक तरीके से किया जाता था। कृषि विज्ञान केंद्रों में 43 फसलों पर प्रयोग कर इसे बाजार में उतारा गया है। प्रत्येक मौसम में कुल 94 कृषि फसलों का परीक्षण किया गया। लगभग 11,000 खेतों को कवर किया गया था।
आपको बता दें कि नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर में दुनिया में पहली बार लिक्विड यूरिया का उत्पादन किया गया है। उत्पाद को इफको की 50वीं आम बैठक में प्रस्तुत किया गया था। इसका उत्पादन जून 2021 से शुरू होगा। इसकी कमर्शियल मार्केटिंग जल्द शुरू होगी। अब नैनो यूरिया को खान नियंत्रण अधिनियम के तहत प्रस्तुत किया गया है।
गौरतलब हैं कि 500 मिली यूरिया की एक बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है। जो एक सामान्य यूरिया बैग जितना ही नाइट्रोजन पोषक तत्व प्रदान करेगा। इससे खाद की खपत में 50 फीसदी की कमी आएगी। इससे सरकार और किसानों को 3,000 करोड़ रुपये की बचत होगी। साथ ही यूरिया खाद के अंधाधुंध प्रयोग की समस्या से निजात मिल सकेगी। इससे सरकार को बहुत बड़ा फायदा होगा।
राज्य में 98 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती होती है। जिसमें गुजरात में करीब 500 लाख टन कृषि उत्पादन होता है। यदि उत्पादन में 8 प्रतिशत की वृद्धि और 2 प्रतिशत लागत बचत पर विचार किया जाए, तो इसके प्रयोग से उत्पादन 5 मिलियन टन तक बढ़ सकता है। इसके अलावा भूगर्भजल की गुणवत्ता में सुधार होगा। उत्पादन में 8 प्रतिशत की वृद्धि होगी। 94 फसल परीक्षणों ने उपज में औसतन 8 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई। कृषि उपज की गुणवत्ता में सुधार होता है। साथ ही वायु प्रदूषण में कमी आएगी। इससे ग्लोबल वार्मिंग को कम कर सकते हैं। इसके प्रयोग से मौजूदा यूरिया की तुलना में खपत 50 फीसदी कम होगी। इस साल किसान इसका इस्तेमाल करेंगे। अगर उन्हें लगता है कि यह अच्छा और सस्ता है, तो अगले साल से मांग इतनी बढ़ जाएगी कि सरकारी सब्सिडी बच जाएगी।
जानकरी के अनुसार गुजरात में 10 लाख टन यूरिया का इस्तेमाल होता है। किसान 1300 रुपये प्रति बोरी की कीमत पर 33,000 करोड़ यूरिया का उपयोग करते हैं। सरकार इसे 3,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती है। इस प्रकार, गुजरात में किसान 6,000 करोड़ रुपये के यूरिया का उपयोग करते हैं। 2013 तक, खरीफ सीजन में कुल उर्वरक खपत का 64% यूरिया का उपयोग किया गया था। गुजरात में किसान प्रति हेक्टेयर 500 किलो रासायनिक खाद का प्रयोग करते हैं। 2010-11 में खपत 19.39 लाख टन थी। गुजरात में उर्वरक वर्षा अब 2012-13 में घटकर 13.42 लाख टन रह गई है। 2019-20 में यह फिर से गिरकर 10 लाख टन पर आ गया। भारत में सालाना 500 लाख टन उर्वरक का इस्तेमाल होता है।
जानकारी के लिए बता दें कि नीम के तेल कोटेड यूरिया का इस्तेमाल 7 साल से किया जा रहा है। ताकि सब्सिडी वाले यूरिया का इस्तेमाल फैक्ट्रियों में न हो। हालांकि, गुजरात में 3 कारखानों को जब्त कर लिया गया जहां नीम लेपित यूरिया को संसाधित किया गया और कारखानों में उपयोग के लिए बनाया गया। गुजरात में ऐसी कई फैक्ट्रियां हैं। जिसमें हर साल करोड़ों रुपये यूरिया खर्च होते हैं। इस तरह 6,000 करोड़ रुपये के यूरिया में से 300 करोड़ रुपये के घोटाले को बचाया जा सकता था। दो किलो दही में तांबे का टुकड़ा या तांबे का चम्मच डुबोकर 8 से 15 दिन के लिए ढककर छाया में रख दें। इसका उपयोग यूरिया के रूप में किया जाता है। दही की इस खेती से लागत का 95 प्रतिशत बचत होती है। कृषि उत्पादन में कम से कम 15 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
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