ईडी ने फेमा मामले में आर-इन्फ्रा के 13 बैंक खातों से लेन-देन पर रोक लगाई

ईडी ने फेमा मामले में आर-इन्फ्रा के 13 बैंक खातों से लेन-देन पर रोक लगाई

नयी दिल्ली, 10 दिसंबर (भाषा) प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को कहा कि उसने फेमा मामले में अनिल अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर के एक दर्जन से अधिक बैंक खातों से लेन-देन पर रोक लगा दी है जिनमें लगभग 55 करोड़ रुपये की राशि जमा है।

वित्तीय जांच एजेंसी ने एक बयान में कहा कि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (आर-इन्फ्रा) ने अपनी विशेष प्रयोजन इकाइयों (एसपीवी) के जरिये भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा आवंटित राजमार्ग निर्माण परियोजनाओं से सार्वजनिक धन की हेराफेरी की और उसे अवैध रूप से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भेज दिया।

यह जांच 2010 में कंपनी को आवंटित एक निविदा से संबंधित है, जिसमें कंपनी को जेआर टोल रोड (जयपुर-रींगस राजमार्ग) के निर्माण के लिए ईपीसी (इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण) अनुबंध दिया गया था।

ईडी ने कहा कि उसने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के उल्लंघन के आरोप में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के 13 बैंक खातों से लेन-देन पर रोक लगा दी है। इन खातों में कुल 54.82 करोड़ रुपये की राशि जमा है।

आर-इन्फ्रा ने मंगलवार को शेयर बाजार को दी एक सूचना में कहा कि उसे ईडी से एक आदेश मिला है, जिसके तहत कंपनी के बैंक खातों पर 77.86 करोड़ रुपये के लिए रोक लगाया गया है। यह कार्रवाई फेमा के कथित उल्लंघन से जुड़ी है।

जांच एजेंसी ने पिछले महीने अनिल अंबानी (66) को इस मामले में पूछताछ के लिए तलब किया था लेकिन वह अपना बयान दर्ज कराने नहीं पहुंचे।

अंबानी के प्रवक्ता द्वारा पिछले महीने जारी एक बयान में कहा गया था कि यह "पूरी तरह से घरेलू अनुबंध था जिसमें किसी भी प्रकार का विदेशी मुद्रा घटक शामिल नहीं था।"

बयान में कहा गया था, "जेआर टोल रोड का निर्माण पूरी तरह से संपन्न हो चुका है और 2021 से यह एनएचएआई के अधीन है।"

कथित धोखाधड़ी के बारे में ईडी ने कहा कि फर्जी उप-अनुबंध व्यवस्थाओं की आड़ में मुंबई में फर्जी कंपनियों को धन का हस्तांतरण किया गया और ये कंपनियां एक योजना के तहत बनाई गई थीं और इसके लिए खास बैंक शाखाओं में फर्जी निदेशकों का इस्तेमाल किया गया।

एजेंसी के अनुसार, पैसे को अन्य फर्जी कंपनियों के नेटवर्क के ज़रिए और पॉलिश तथा अनपॉलिश हीरे आयात करने के नाम पर यूएई भेज दिया गया, जबकि इसके बदले में न तो कोई माल मिला और न ही उससे जुड़ा कोई दस्तावेज़ है।

इसने में कहा कि यूएई की जिन कंपनियों को धनराशि भेजी गई थी, उनके यूएई और हांगकांग दोनों में बैंक खाते थे। जांच में पाया गया कि ये संस्थाएं अंतरराष्ट्रीय हवाला लेनदेन में शामिल व्यक्तियों द्वारा नियंत्रित थीं।

ईडी ने कहा, "जिन फर्जी संस्थाओं के माध्यम से इस रकम का गबन किया गया, वे 600 करोड़ रुपये से अधिक के अंतरराष्ट्रीय हवाला लेनदेन में शामिल पाई गई हैं।"

इसने कहा कि परियोजना निधि के इस कथित दुरुपयोग के कारण प्रभावित एसपीवी में "गंभीर" वित्तीय संकट उत्पन्न हुआ, जिसके परिणामस्वरूप बैंक ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में परिवर्तित हो गए। इससे ऋणदाताओं को नुकसान हुआ और सार्वजनिक वित्तीय हितों को खतरा पैदा हुआ।