ब्रोंको टेस्ट से खिलाड़ियों के चोटिल होने का खतरा बढ़ा : अश्विन
चेन्नई, 24 अगस्त (वेब वार्ता)। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व स्पिनर आर अश्विन ने कहा है कि आजकल जिस प्रकार से फिटनेस के लिए ब्रोंको टेस्ट को अनिवार्य बनाने पर बात हो रही है। वह सही नहीं है। अश्विन के अनुसार जब भी ट्रेनर बदलते हैं तो खिलाड़ियों के लिए नया फिटसेस टेस्ट आ जाता है।
उन्होंने टीम प्रबंधन को आगाह करते हुए कहा है कि ब्रोंको टेस्ट से खिलाड़ियों के चोटिल होने का खतरा काफी बढ़ने की आशंका है। ब्रोंको टेस्ट भारतीय टीम के नये ट्रेनर एड्रियन ले रॉक्स आये हैं। ब्रोंको टेस्ट एरोबिक सहनशक्ति और खिलाड़ी की कार्डियोवैस्कुलर क्षमता को चुनौती देने के लिए विकसित किया गया है।
रॉक्स टीम के स्ट्रेंथ और कंडीशनिंग कोच बने हैं और उन्होंने तेज गेंदबाजों से जिम-आधारित प्रशिक्षण पर निर्भर रहने की जगह पर अपने रनिंग वर्कलोड को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है। इंग्लैंड सीरीज में जिस प्रकार मोहम्मद सिराज के अलावा अन्य तेज गेंदबाजों की फिटनेस पर सवाल उठे थे। उसे देखते हुए ये टेस्ट लाया गया है।
अश्विन ने कहा कि जब-जब ट्रेनर बदलते हैं तो नये तरीके आते हैं जिससे क्रिकेटरों को अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अश्विन ने कहा, “मैंने हमेशा ट्रेनरों से पूछा है। जब ट्रेनर बदलते हैं, तो टेस्टिंग का तरीका बदल जाता है। ट्रेनिंग की योजनाएं बदल जाती हैं। इससे खिलाड़ियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।”
अश्विन ने कहा, “एक खिलाड़ी के रूप में अगर आप ट्रेनिंग का तरीका बार-बार बदलते हैं तो यह खिलाड़ियों के लिए बहुत कठिन हो जाता है। कई मामलों में इससे चोटें भी लग सकती हैं। मैं इसे नकार नहीं रहा हूं, इससे चोटें लगी हैं। साल 2017 से 2019 तक मैं अपनी ट्रेनिंग योजना की खोज कर रहा था। मैंने इसके परिणाम देखे हैं।”
वहीं जिस ब्रोंको टेस्ट को लेकर सारा बवाल हुआ है। वह रग्बी और फुटबॉल में इस्तेमाल होता है। ये टेस्ट एक खिलाड़ी की एरोबिक सहनशक्ति और रिकवरी क्षमता का आंकलन करता है।
इस टेस्ट को बिना ब्रेक के 20 मीटर, 40 मीटर और 60 मीटर की पांच शटल रन के साथ पूरा करना होता है। सभी पांच सेटों को पूरा करने से कुल 1,200 मीटर की दूरी तय होती है, और समय रिकॉर्ड किया जाता है। तेज समय उच्च फिटनेस स्तर को दिखाता है।”