एनआईए कोर्ट बनाएं नहीं तो आरोपियों को दे दी जाएगी जमानत

सुप्रीम कोर्ट का केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को दी चेतावनी

एनआईए कोर्ट बनाएं नहीं तो आरोपियों को दे दी जाएगी जमानत

नई दिल्ली, 19 जुलाई (वेब वार्ता)। आतंकवाद के साथ गंभीर अपराधों से जुड़े एनआईए जांच के लंबित मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि मौजूदा अदालतों को विशेष एनआईए अदालतें बनाना अस्वीकार्य है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को इन मामलों में 15 सितंबर तक मुकदमों के लिए नई विशेष अदालतें बनाने की चेतावनी दी है। कोर्ट ने सरकार से कहा है कि एनआईए कोर्ट बनाएं नहीं तो आरोपियों को जमानत दे दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि दीवानी और फौजदारी मामलों की सुनवाई कर रही मौजूद अदालतों पर एनआईए मामलों का अतिरिक्त बोझ नहीं डाला जा सकता।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आप एनआईए जांच सुनवाई में तेजी लाना चाहते हैं, तो आपको नई अदालतें स्थापित करनी होंगी। इसके साथ ही कोर्ट ने वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति करने, उन्हें स्टाफ और पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने पर भी जोर दिया।

बता दें वरिष्ठ वकील त्रिदीप पेस ने दलील दी कि उनके मुवक्किल कैलाश रामचंदानी को एनआईए ने यूएपीए मामले में गिरफ्तार किया था और पिछले छह सालों में बिना किसी मुकदमे के जेल में बंद रखा गया, क्योंकि विशेष अदालत में कार्यरत न्यायिक अधिकारी के पास मामले को प्रोसेस करने का समय नहीं था।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजकुमार बी ठाकरे से कहा कि केंद्र और महाराष्ट्र सरकार के लिए एनआईए मामलों की विशेष रूप से सुनवाई के लिए नई विशेष अदालतें स्थापित करने का यह आखिरी मौका है।

पीठ ने कहा कि अगर ऐसे कदम नहीं उठाए गए, तो अदालतें मुकदमे में देरी के आधार पर इन मामलों में आरोपियों को जमानत देने पर विचार करने को बाध्य होंगी।

एनआईए के हलफनामे को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि अधिकारियों ने कोई प्रभावी या स्पष्ट कदम नहीं उठाया है। एनआईए ने अपने हलफनामे में मौजूदा अदालतों को नामित करके विशेष अदालतों की स्थापना के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन करने का दावा किया था।